लॉकडाउन में नक्सलियों की करतूत, गरीब आदिवासियों से वसूल रहे लेवी

जो गरीब पहले से ही कई समस्याओं से जूझ रहे थे इस लॉकडाउन (Lockdown) में उनकी मुसीबतें और बढ़ गई हैं लेकिन नक्सलियों (Naxalites) अब इन गरीबों से भी रंगदारी वसूलने का काम करने लगे हैं।

Naxalites

सांकेतिक तस्वीर।

देश पर इस वक्त कोरोना (Coronavirus) का आफत घिरा है और नक्सली (Naxali) इस नाजुक घड़ी में भी अपनी अमानवीय करतूतों से बाज नहीं आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने इस मुश्किल घड़ी में किसी तरह गुजारा कर रहे आम आदिवासी लोगों से लेवी वसूलनी शुरू कर दी है। जो गरीब पहले से ही कई समस्याओं से जूझ रहे थे इस लॉकडाउन (Lockdown) में उनकी मुसीबतें और बढ़ गई हैं लेकिन नक्सलियों (Naxalites) अब इन गरीबों से भी रंगदारी वसूलने का काम करने लगे हैं।

लॉकडाउन (Lockdown) के कारण बाहरी तेंदूपत्ता ठेकेदारों के ना आ पाने से लेवी की वसूली नक्सली नहीं कर पाए। नकदी संकट से जूझ रहे नक्सलियों के अबूझमाड़ डिवीजन कमेटी ने अब गरीब आदिवासियों से टैक्स वसूली शुरू की है। वनोपज के बदले नक्सली (Naxali) किसी गांव में हर घर से 50 तो कहीं 60 रुपये की वसूली कर रहे हैं।

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कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो छत्तीसगढ़ और झारखंड इन दोनों राज्यों में निर्माण स्थलों और इंडस्ट्री से जो अवैध वसूली होती थी, वह अब लॉकडाउन (Lockdown) की वजह से बंद हो गई है। खाने-पीने के सामान और पैसे की सप्लाई चेन टूट चुकी है, इसलिए अब नक्सलियों (Naxals) ने ग्रामीणों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। वहां से खाने-पीने का सामान और पैसा लूटा जा रहा है।

ग्रामीणों को धमकी दी जा रही है कि उन्हें सामान या रुपये-पैसे देने से इंकार किया तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। हर घर से दो सौ रुपये मांगे जा रहे हैं। नक्सलियों (Naxalites) की जरूरी वस्तुओं की सप्लाई चेन पूरी तरह टूट गई है। पहले ये लोग एक माह का अग्रिम राशन जमा कर लेते थे, लेकिन लॉकडाउन के चलते इस बार उनके राशन की सप्लाई नहीं हो सकी। नतीजा, जंगलों में बहुत अंदर रह रहे नक्सलियों को खाने-पीने के सामान की किल्लत महसूस होने लगी है।

यह बात पहले भी खुलकर सामने आ चुकी है कि पिछले एक साल से लेवी का पैटर्न नक्सलियों (Naxalites) ने बदला है। पहले एक मोटी रकम उद्योग समहु और ठेकेदारों से आ जाया करती थी। नई सरकार आने के बाद इसमें रोक लगी। तेंदूपत्ता की सरकारी खरीदी होने लगी तो बाहरी ठेकेदार आने बंद हो गए। इसलिए नुकसान की भरपाई ग्रामीणों की कमाई से करना शुरू किया है।

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