भारतीय सेना अपने दुश्मनों के मानवाधिकार की भी रक्षा करती है: जनरल रावत

General Bipin Rawat

जनरल रावत (General Bipin Rawat) ने कहा कि सेना मुख्यालय ने 1993 में ‘मानवाधिकार प्रकोष्ठ’ बनाए थे और मौजूदा समय में युद्ध नीति में बदलाव होना और तकनीक का आविष्कार होना एक बड़ी चुनौती है।

General Bipin Rawat

सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत (General Bipin Rawat) ने कहा कि सशस्त्र बल मानवाधिकार कानूनों का अत्यधिक सम्मान करते हैं और उन्होंने न केवल देश के लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा की है, बल्कि अपने दुश्मनों के मानवाधिकारों की रक्षा भी की है।

जनरल बिपिन रावत (General Bipin Rawat) दिल्ली के मानवाधिकार भवन में ‘‘युद्धकाल में और युद्धबंदियों के मानवाधिकारों का संरक्षण’ विषय पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के प्रशिक्षुओं और वरिष्ठ अधिकारियों को संबोधित कर रहे थे। एक दिन पहले सेना प्रमुख ने संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन का नेतृत्व करने वालों की सार्वजनिक तौर पर आलोचना की थी और कहा था कि नेतृत्व करना लोगों को आगजनी और हिंसा के लिए उकसाना नहीं होता है। उनके इस बयान की काफी आलोचना हुई थी।

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एनएचआरसी के कार्यक्रम में रावत (General Bipin Rawat) ने कहा कि सशस्त्र बलों के स्वभाव में ‘इंसानियत’ और ‘शराफत’ है और कहा कि वे ‘पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष’ हैं। उन्होंने कहा, चुनौती युद्ध नीति में बदलाव होना और तकनीक का आविष्कार होना है। जनरल रावत ने कहा कि सेना मुख्यालय ने 1993 में ‘मानवाधिकार प्रकोष्ठ’ बनाए थे, जिसे अब निदेशालय स्तर तक उन्नयन किया जा रहा है, जिसके प्रमुख अतिरिक्त महानिदेशक होंगे।

जनरल बिपिन रावत (General Bipin Rawat) ने कहा कि सशस्त्र बलों के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायतों का समाधान करने के लिए इसमें पुलिसकर्मी भी होंगे और वे संबंधित जांच में सहयोग करेंगे। रावत ने कहा कि इसके अलावा अक्टूबर में सैन्य पुलिस बल में महिला कर्मियों की भर्ती करने की नई पहल शुरू की गई। सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफ्सपा) का जिक्र करते हुए सेना प्रमुख ने कहा कि यह कानून सेना को वहीं ताकत देता है जो पुलिस और सीआरपीएफ को तलाशी और जांच अभियानों में मिलती है।

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