Chhattisgarh: इस धुर नक्सल प्रभावित इलाके के लोग छोड़ चुके थे गांव, सुरक्षाबलों के आने से जगी आस

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के नक्सल प्रभवित इलाकों (Naxal Area) में सुरक्षाबलों की तैनाती से धीरे-धीरे विकास की बयार भी बहने लगी है। कोयलीबेड़ा विकासखंड के महला गांव की गिनती पंखाजूर जिले के धुर नक्सल प्रभावित गांवों में होती थी।

Naxal Terror

महला में बीएसएफ (BSF) ने कैंप खोला जिसके बाद गांव में नक्सल आतंक (Naxal Terror) कमजोर पड़ा जिसके बाद पखांजूर में शरणार्थी बनकर रहने वाले ग्रामीणों का अपने गांव लौटने का सिलसिला शुरू हो गया।

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के नक्सल प्रभवित इलाकों (Naxal Area) में सुरक्षाबलों की तैनाती से धीरे-धीरे विकास की बयार भी बहने लगी है। कोयलीबेड़ा विकासखंड के महला गांव की गिनती पंखाजूर जिले के धुर नक्सल प्रभावित गांवों में होती थी। अंदरुनी क्षेत्रों में महला से भी अधिक संवेदनशील और भी गांव थे।

लेकिन साल 2009 में नक्सल आतंक (Naxal Terror) के चलते उजड़ कर वीरान होने वाला यह जिले का एकमात्र गांव था। इस गांव की पूरी आबादी ने पखांजूर में शरण ले ली थी। गांव में अपने घरों तथा खेतों के मालिक इस गांव के लोग पखांजूर में शरण लेने के बाद मजदूर बन गए थे।

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साल 2018 में महला में बीएसएफ (BSF) ने कैंप खोला जिसके बाद गांव में नक्सल आतंक (Naxal Terror) कमजोर पड़ा जिसके बाद पखांजूर में शरणार्थी बनकर रहने वाले ग्रामीणों का अपने गांव लौटने का सिलसिला शुरू हो गया। अब तक आधे से अधिक परिवार अपने गांव महला लौट चुके हैं तथा खेती-बाड़ी शुरू कर चुके हैं।

अब तो गांव का साप्ताहिक बाजार भी भरने लगा है। बता दें कि साल 2009 में जब क्षेत्र में नक्सली आंतक चरम पर था। तब 10 दिनों में महला गांव के चार लोगों की हत्या नक्सलियों ने कर दी थी। इस घटना का गांव में ऐसा आंतक छाया कि पूरा का पूरा गांव रातोरात खाली हो गया और यहां के सभी ग्रामीणों ने पखांजूर में शरण ले ली थी।

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इस गांव के लोगों ने यह सोचना तक बंद कर दिया था कि वे कभी वापस अपने गांव लौट पाएंगे क्योंकि वहां हालात दिन प्रति दिन बिगड़ते जा रहे थे। इसके बाद, एक दशक बाद महला में बीएसएफ कैम्प शुरू किया गया जिसका नक्सलियों ने बहुत विरोध किया, कई वारदातें भी की लेकिन बीएसएफ पीछे नहीं हटी। धीरे धीरे महला में नक्सल आतंक कमजोर पड़ने लगा जिसके बाद एक एक कर ग्रामीण महला लौटने लगे।

 

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