फाइल फोटो
Indian Army: शंभूराम (Shambhuram) की बहादुरी के किस्से उनके इलाके के लोग आज भी एक दूसरे को सुनाते हैं। उन्होंने इस युद्ध में पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को ध्वस्त करने में अहम भूमिका निभाई थी।
भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 में इंडियन आर्मी का पराक्रम देखने लायक था। इस युद्ध को दुनिया के चुनिंदा सबसे बड़े टैंक युद्धों में गिना जाता है। युद्ध में हर जवान की भूमिका अहम होती है, लेकिन कुछ जवान ऐसे होते हैं जो अपनी अलग ही छाप छोड़कर जंग के मैदान में शहीद हो जाते हैं।
ऐसे ही एक जवान राजस्थान के पाली जिले में स्थित कला पिपल की धनि के शंभूराम भी थे। उनकी बहादुरी के किस्से उनके इलाके के लोग आज भी एक दूसरे को सुनाते हैं। उन्होंने इस युद्ध में पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को ध्वस्त करने में अहम भूमिका निभाई थी।
22 जुलाई 1945 को जन्मे शंभूराम (Shambhuram) सिर्फ 18 साल की उम्र में ही इंडियन एयरफोर्स में शामिल हो गए थे। 1965 के भारत-पाक युद्ध में वे जामनगर (जामनगर) में दुश्मन के हमले में शहीद हो गए थे। उन्हें दुश्मनों ने घेर लिया था और फिर उन पर हमला किया गया था।
जंग के मैदान में विपरीत परिस्थितियां आने के बावजूद वह कतई पीछे नहीं हटे। हालांकि उनका पार्थिव शरीर उनके परिजनों को कभी नहीं मिला। ऐसा क्यों है यह भी अबतक साफ नहीं हो सका है।
हालांकि शंभूराम के शहीद होने का प्रमाण पत्र 19 सितंबर 1999 को एयर चीफ मार्शल दे चुके हैं, जो आज भी परिजनों के पास है। 20 साल की उम्र में देश के लिए शहीद होने वाले इस जवान के योगदान को हमेशा ही याद किया जाता रहेगा।
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