‘घातक कमांडो’ से कांपते हैं आतंकी, सेना के इस प्लाटून ने अब तक कई ऑपरेशंस किए

घातक कमांडो मुख्य रूप से एक ‘Shock Troop‘ यानी दुश्मन को चौंका देने वाली टुकड़ी की तरह काम करती है। इसके जवान बटालियन की सबसे अगली पंक्ति में तैनात रहते हैं।

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घातक प्लाटून या घातक कमांडो स्पेशल ऑपरेशन को अंजाम देने वाली भारतीय सेना की एक इन्फेंट्री प्लाटून है।

घातक प्लाटून या घातक कमांडो के नाम से आतंकी यूं ही नहीं थर्राते हैं। वे मौत बन खामोशी से दुश्मन के इलाके में घुसते हैं और फिर अचानक धमाकों से दुश्मन को दहला कर उसका काम तमाम कर देते हैं । वे स्पेशल ऑपरेशन्स करने के लिए तैयार किए जाते हैं। 2016 में हुए सर्जिकल स्ट्राइक में उनका बहुत बड़ा योगदान था। ये कोई और नहीं बल्कि भारत के सबसे खतरनाक कमांडो फोर्सेज में से एक ‘घातक कमांडो’ हैं। घातक प्लाटून या घातक कमांडो स्पेशल ऑपरेशन को अंजाम देने वाली भारतीय सेना की एक इन्फेंट्री प्लाटून है। इस तरह की एक प्लाटून भारतीय सेना की हर इन्फेंट्री बटालियन में होती है। जो जरूरत पड़ने पर हर तरह के ऑपरेशन को अंजाम दे सकती है। भारतीय सेना के इस स्पेशल फोर्स को यह नाम पूर्व आर्मी चीफ जनरल बिपिन चंद्र जोशी ने दिया था।

घातक कमांडो मुख्य रूप से एक ‘Shock Troop‘ यानी दुश्मन को चौंका देने वाली टुकड़ी की तरह काम करती है। इसके जवान बटालियन की सबसे अगली पंक्ति में तैनात रहते हैं। घातक प्लाटून में अमूमन 20 जवान होते हैं। इसमें एक कमांडिंग कैप्टन होता है। दो नॉन कमीशंड अफसर होते हैं। इसके अलावा मार्क्समैन, स्पॉटर जोड़े, लाइटमशीन गनर, मेडिक और रेडियो ऑपरेटर होते हैं। बाकी बचे सैनिक असॉल्ट ट्रूप के तौर पर काम करते हैं। सेना के सबसे तेजतर्रार सैनिकों को घातक प्लाटून में शामिल किया जाता है। घातक का रोल ट्रूप्‍स के साथ दुश्‍मन के ठिकानों पर बटालियन की मदद के बिना हमला करना है। इनका ऑपरेशनल रोल अमेरिका की स्‍काउट स्‍नाइपर प्‍लाटून, यूएस मरीन की एसटीए प्‍लाटून और ब्रिटिश आर्मी की पैट्रोल्‍स प्‍लाटून की तरह ही होता है।

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घातक के कमांडोज को बटालियन या फिर ब्रिगेड कमांडर की ओर से दुश्‍मन की खास जानकारी हासिल करना, दुश्‍मन के हथियार के ठिकानों, उसकी एयरफील्‍ड, उनके सप्‍लाई एरिया और हेडक्‍वार्ट्स को निशाना बनाना है। इंफेंट्री बटालियन के शारीरिक तौर पर सबसे फिट और सबसे उत्‍साहित सैनिक को ही घातक प्‍लाटून में जगह मिलती है। इन्‍हें कर्नाटक के बेलगाम में ट्रेनिंग दी जाती है। कमांडोज को यहां पर हेलीबॉर्न असॉल्‍ट, पहाड़ों पर चढ़ने, माउंटेन वॉरफेयर, विध्‍वंस, एडवांस्‍ड वेपंस ट्रेनिंग, करीबी मुकाबलों का सामना करने और इंफेंट्री की रणनीति सिखाई जाती है। इस प्‍लाटून के सदस्‍यों को ऊंचाई पर स्थित वॉरफेयर स्‍कूल, काउंटर-इनसरजेंसी और जंगल वॉरफेयर स्‍कूल में भेजा जाता है। उन्हें इस तरह से ट्रेनिंग दी जाती है कि फिर वो फौलाद बन कर निकलते हैं।

इन्हें हर तरह की विषम और भयावह परिस्थितियों से लड़ने के लिए तैयार किया जाता है। स्पेशल फोर्स में शामिल होने के लिए सबसे पहले जवानों को 2 महीने के प्रोबेशन पीरियड पर रखा जाता है। यानी इन दो महीनों में यह परखा जाता है कि जवान आगे जाकर सेना के सर्जिकल स्ट्राइक जैसे ऑपरेशन को अंजाम दे सकेगा या नहीं। प्रोबेशन पीरियड के दौरान उन्हें हर दिन 20 से 22 घंटे की कठोर ट्रेनिंग दी जाती है। जैसे हथेलियों के बल रोड पर चलना, 3 से 4 किलोमीटर तक सड़क पर रोल करके जाना आदि जैसे टॉस्क अहम होते हैं। ट्रेनिंग के दौरान उसे मेंटल लेवल पर भी टॉर्चर किया जाता है ताकि जवान को सिर्फ शारीरिक तौर पर नहीं बल्कि मानसिक स्तर पर भी मजबूत बनाया जा सके। प्रोबेशन पीरियड के दौरान दी जाने वाली ट्रेनिंग में जवानों को कांच खाने की भी प्रैक्टिस करवाई जाती है।

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सांप को हाथ से पकड़ना सिखाया जाता है। इसके बाद उन्हें हर दिन 25 किलोग्राम तक वजन के साथ 40 किलोमीटर भागना होता है। इस दौड़ को पूरा करने का भी समय तय होता है। ट्रेनिंग के दौरान ही यह तय किया जाता है कि किस जवान को क्या काम देना है। यह चार स्तर पर तय किया जाता है। तय करने के लिए जवानों को ड्राइविंग, डिमोलिशन, बैटल फील्ड नर्सिंग असिस्टेंस, कम्यूनिकेशन सिखाया जाता है। प्रोबेशन का टाइम खत्म होने से पहले जवानों की नेविगेशनल स्किल देखी जाती है। इसके लिए हर जवान को 40 किलोमीटर दूर तक के जंगल-झाड़ियों में बिना जीपीएस, कंपास के छोड़ दिया जाता है। इन्हें एक टारगेट दिया जाता है। जो इन्हें पूरा करना होता है। इतना ही नहीं अगर किसी जवान से टारगेट पूरा करने में गलती हो गई तो उसे वापस वहीं जाना होता है जहां से उसने शुरुआत की थी।

‘घातक’ प्लाटून अपने नाम की तरह ही IWI Tavor TAR-21, Dragunov SVD, Heckler & Koch MSG 90, ग्रेनेड, राकेट लांचर, एके-47 जैसे ‘घातक’ हथियारों इस्तेमाल करते हैं। हथियारों के अलावा घातक कमांडो नाइट विज़न डिवाइस, बॉडी आर्मर और पर्वतारोहण सामग्री जैसे सामान भी अपने साथ रखते हैं। घातक कमांडो मुख्य रूप से दुश्मन के इलाकों में जाकर उनके बंकर्स, आर्टिलरी बेस, आयुध भंडार, एयरफील्ड जैसे ठिकानों पर हमला कर उन्हें नेस्तनाबूद कर दुश्मन की कमर तोड़ देते हैं। हर घातक कमांडो पैराग्लाइडिंग, तरह-तरह के हथियार चलाना, छद्म युद्ध, आमने-सामने की लड़ाई में पूरी तरह निपुण होता है। ट्रेनिंग के दौरान उन्हें शारीरिक एवं मानसिक क्षमताओं को चरम तक ले जाया जाता है ताकि ज़रूरत पड़ने पर कमांडो हर मुश्किल से उबर सकें।

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साल 1999 में कारगिल युद्ध के समय 18 ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव घातक प्‍लाटून के कमांडो थे और टाइगर हिल पर फतह में उनका अहम योगदान रहा। योगेंद्र सिंह को देश के सर्वोच्‍च सैनिक सम्‍मान परमवीर चक्र से सम्‍मानित किया गया था। साल 2011 में लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह भी 15 मराठा लाइट इंफेंट्री रेंजीमेंट के घातक प्‍लाटून कमांडर थे। 20 अगस्‍त, 2011 को जम्‍मू कश्‍मीर के गुरेज सेक्‍टर में 17 आतंकियों से मोर्चा लेते हुए लेफ्टिनेंट नवदीप शहीद हो गए थे। उन्‍हें सर्वोच्‍च शांति पुरस्‍कार अशोक चक्र से सम्‍मानित किया गया था। कैप्‍टन चंदर चौधरी भी ग्रेनेडियर रेजीमेंट की घातक प्‍लाटून के कमांडर थे। 9 सितंबर, 2002 को उधमपुर के डुबरी गांव में आतंकियों के खिलाफ सीक एंड डेस्‍ट्रॉय ऑपरेशन में वह शहीद हो गए थे।

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