NSG: कैसे बनते हैं ब्लैक कैट कमांडो? पढ़िए ट्रेनिंग से लेकर फौलाद बनने की पूरी कहानी

एनएसजी गृह-मंत्रालय के तहत सात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) में से एक है। एनएसजी का गठन भारत की विभिन्न फोर्सेज से विशिष्ट जवानों को छांटकर किया जाता है।

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जब भी देश के एलीट कमांडोज का नाम आता है, सबसे जांबाज सिपाही कहे जाने वाले एनएसजी (नेशनल सिक्योरिटी गार्ड) या ब्लैक-कैट कमांडोज का नाम जरूर आता है।

जब भी देश के एलीट कमांडोज का नाम आता है, सबसे जांबाज सिपाही कहे जाने वाले एनएसजी (नेशनल सिक्योरिटी गार्ड) या ब्लैक-कैट कमांडोज का नाम जरूर आता है। तो जानते हैं कि आखिर किस भट्ठी से तपकर ये कमांडोज निकलते हैं। एनएसजी गृह-मंत्रालय के तहत सात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) में से एक है। एनएसजी का गठन भारत की विभिन्न फोर्सेज से विशिष्ट जवानों को छांटकर किया जाता है। एनएसजी में 53 प्रतिशत कमांडो सेना से आते हैं जबकि 47 प्रतिशत कमांडो 4 पैरामिलिट्री फोर्सेज- सीआरपीएफ, आईटीबीपी, आरएएफ और बीएसएफ से आते हैं। इन कमांडोज की अधिकतम कार्य सेवा पांच साल तक होती है। पांच साल भी सिर्फ 15 से 20 प्रतिशत को ही रखा जाता है, बाकी कंमाडोज के तीन साल के पूरे होते ही उन्हें उनकी मूल फोर्सेज में वापस भेज दिया जाता है।

भारत के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा और आतंकवादी हमलों से बचाव का जिम्मा एनएसजी का होता है। एनएसजी कमांडोज हमेशा काले कपड़े, काले नकाब और काले ही सामान का इस्तेमाल करते हैं इसलिए इन्हें ब्लैक-कैट कमांडो कहा जाता है। साल 1984 में एनएसजी का गठन किया गया था। अति-विशिष्ट लोगों की सुरक्षा के अलावा आतंकी हमलों से बचाव का जिम्मा भी एनएसजी पर होता है। एनएसजी का ध्येय वाक्य है- ′सब के लिए एक, एक के लिए सब′। इन कमांडोज की ट्रेंनिग बहुत ही कठिन होती है जिसका सबसे बड़ा मकसद यह होता है कि योग्यतम लोगों का चयन हो सके। सीधी भर्ती एनएसजी में नहीं होती है। इसकी ट्रेनिंग के लिए भारतीय सेना और अर्ध-सैनिक बलों के सर्वश्रेष्ठ जवानों को चुना जाता है। उनका चयन कई चरणों से गुजर कर होता है।

अंत में ये सैनिक ट्रेनिंग के लिए मानेसर एनएसजी के ट्रेनिंग सेन्टर पहुंचते हैं। ये देश के सबसे जांबाज सैनिक होते हैं। लेकिन जरूरी नहीं है कि ट्रेनिंग सेंटर पहुंचने के बाद भी कोई सैनिक अंतिम रूप से कमांडो बन ही जाए। 90 दिन की कठिन ट्रेनिंग के पहले भी एक हफ्ते की ऐसी ट्रेनिंग होती है जिसमें 15-20 फीसदी सैनिक अंतिम दौड़ तक पहुंचने से वंचित रह जाते हैं। लेकिन इसके बाद जो सैनिक बचते हैं, अगर उन्होंने 90 दिन की ट्रेनिंग कुशलता से पूरी कर ली तो फिर वो देश के सबसे ताकतवर कमांडो बन जाते हैं। ये कमांडोज सबसे आखिर में मनोवैज्ञानिक टेस्ट से गुजरते हैं। जिसे पास करना अनिवार्य होता है। हर किसी को ब्लैक कैट कमांडो बनने का मौका नहीं मिलता है। इसके लिए आर्मी, पैरा मिलिट्री फोर्स या पुलिस में होना जरूरी है। फिजिकल ट्रेनिंग के लिए उम्र 35 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।

सबसे पहले फिजिकल और मेंटल टेस्ट होता है। 12 सप्ताह तक चलने वाली यह सबसे कठिन ट्रेनिंग होती है। शुरूआत में जवानों में 30-40 प्रतिशत फिटनेस योग्यता होती है, जो ट्रेनिंग खत्म होने तक 80-90 प्रतिशत तक हो जाती है। इनकी ट्रेनिंग में कठिन एक्सरसाइज करवाई जाती है ताकि ये शारीरिक रूप से सक्षम हो सकें। किसी भी मुश्किल हालात को देखते ही फौरन एक्शन लिया जा सके, इसके लिए जिग-जैग रन की ट्रेनिंग दी जाती है। जिस्म के ऊपरी हिस्से को मजबूत बनाने के लिए एक्सरसाइज करवाई जाती है, जिसमें हाथ सबसे खास होते हैं। 60 मीटर की स्प्रिंग दौड़ के लिए सिर्फ 11 से 13 सेकेंड का वक्त दिया जाता है और 100 मीटर की स्प्रिंग दौड़ के लिए केवल 15 सेकेंड का वक्त दिया जाता है। ट्रेनिंग को और अधिक कठिन बनाने के लिए हाथों में हथियार और पीठ पर वजन भी लाद दिया जाता है।

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एक बंदर की तरह रस्सी के सहारे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना भी कमांडोज की ट्रेनिंग का जरूरी हिस्सा है। इसके बाद बारी आती है इनक्लाइंड पुश-अप्स करने की। फिर कॉन्फिडेंस बढ़ाने के लिए इन्हें 9 फुट के गढ्ढे को फांदना होता है। किसी मिशन पर जाते समय न जाने कैसी स्थिति सामने आ जाए। इससे निपटने के लिए हाई बैलेंस भी कराया जाता है। पैरलल रोप के जरिए कमांडोज के शरीर को और अधिक मजबूत बनाया जाता है। स्पाइडर वेबनेट के जरिए ऊपर चढ़ना और फिर दूसरी ओर से नीचे उतरना हाथों की पकड़ मजबूत बनाने का काम करता है। रस्सी के सहारे चढ़कर 26 फुट ऊंची दीवार फांदना भी जरूरी होता है। 60 फीट ऊंची दीवार पर चढ़ने की यह प्रैक्टिस पहाड़ पर चढ़ने का एहसास कराती है। आसमान से सीधे किसी कमरे में घुसना हो, तो उसके लिए भी ट्रेनिंग दी जाती है।

इसके बाद बारी आती है एक्शन की। भले ही हाथों में हथियार न हो, लेकिन कमांडो दुश्मन को मार गिराने की ताकत रखते हैं। इसमें कई तरह की मार्शल आर्ट की कलाएं भी सिखाई जाती हैं। दुश्मन के हाथों से चाकू छीनकर कैसे उससे उसी का गला काटना है, ये खतरनाक तरीका भी इन कमांडोज को सिखाया जाता है। किसी विमान के हाइजैक हो जाने की स्थिति से कैसे निपटना है इसके लिए भी एक खास तरह की ट्रेनिंग दी जाती है। एक बनावटी विमान की मदद से ऐसी स्थिति से निपटने की ट्रेनिंग दी जाती है। एनएसजी कमांडोज को एक गोली से एक जान लेने की ट्रेनिंग दी जाती है। यानी यह कहा जा सकता है कि आपातकालीन स्थिति में ये कमांडो सिर्फ एक गोली चलाकर किसी आतंकवादी को ढेर कर सकते हैं।

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इन कमांडोज को आंख बंद करके निशाना लगाने, अंधेरे में निशाना लगाने और बहुत ही कम रोशनी में निशाना लगाने की भी ट्रेनिंग दी जाती है। बैटल असाल्ट ऑब्सटेकल-कोर्स और सीटीसीसी काउंटर टेररिस्ट कंडिशनिंग कोर्स का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। एनएसजी कमांडो को आग के बीच से गुजरते हुए मुकाबला करने और गोलियों की बौछार के बीच से गुजरकर अपना मिशन पूरा करने की ट्रेनिंग दी जाती है। इतना ही नहीं, हथियार के साथ और हथियार के बिना, दोनों तरह से मुकाबले की ट्रेनिंग दी जाती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ड्राइविंग एनएसजी की सुरक्षा व्यवस्था का अभिन्न अंग है। इनमें से कुशल ड्राइवर चुनने के लिए अलग से प्रक्रिया अपनायी जाती है।

और तो और, इनको खतरनाक रास्तों, बारूदी सुरंग वाले रास्तों, हमलवारों से घिर जाने की स्थिति में ड्राइविंग की ट्रेनिंग दी जाती है। देश का इकलौता नेशनल बॉम्ब डेटा सेंटर भी एनएसजी के पास है। इस सेंटर में आतंकवादियों द्वारा किए गए बम धमाकों और अलग-अलग आतंकी गुटों के हमला करने के तरीकों पर रिसर्च की जाती है। एनएसजी को आतंकवादी हमले की स्थिति में आतंकवादियों पर काबू पाना, बंधक बनाए गये लोगों को छुड़ाना, बम की पहचान कर निष्क्रिय करना आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है। 26/11 के मुंबई हमलों में ब्लैक-कैट कमांडोज ने स्थिति को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

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