झारखंड: चिलखारी गांव में हुए इस नक्सली हमले की बरसी पर आज भी कांप जाता है दिल, मारे गए थे 20 लोग

घटना गिरिडीह जिले के देवरी प्रखंड के चिलखारी गांव की है। यहां के ग्रामीण आज भी 26 अक्टूबर 2007 की आधी रात को नक्सलियों द्वारा मचाए गए तांडव को नहीं भूले हैं।

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गांव का वो मैदान, जहां हुआ नरसंहार

Jharkhand: घटना गिरिडीह जिले के देवरी प्रखंड के चिलखारी गांव की है। यहां के ग्रामीण आज भी 26 अक्टूबर 2007 की आधी रात को नक्सलियों द्वारा मचाए गए तांडव को नहीं भूले हैं।

झारखंड (Jharkhand) राज्य में नक्सलियों के खिलाफ लगातार अभियान चलाया जा रहा है। इसके बावजूद इस राज्य को नक्सलियों ने कुछ ऐसे घाव दिए हैं, जिन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।

घटना गिरिडीह जिले के देवरी प्रखंड के चिलखारी गांव की है। यहां के ग्रामीण आज भी 26 अक्टूबर 2007 की आधी रात को नक्सलियों द्वारा मचाए गए तांडव को नहीं भूले हैं।

दरअसल यहां के मैदान में एक फुटबॉल प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। इस मौके पर विजेता टीम को पुरस्कृत करने और संथाली यात्रा को निकालने का कार्यक्रम रखा गया था, जिसमें शामिल होने के लिए झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के पुत्र अनूप मरांडी और अनुज नुनुलाल मरांडी के साथ कई जाने-माने नेता आए थे।

कार्यक्रम देर शाम शुरू हुआ था, इसलिए रात तक चल रहा था। अचानक नक्सलियों ने मैदान को चारों तरफ से घेर लिया और अंधाधुंध गोलियां बरसाईं। इस भीषण फायरिंग में बाबूलाल मरांडी के पुत्र अनूप मरांडी समेत 20 लोग मारे गए थे।

कार्यक्रम में शामिल होने वाले लोग ये नहीं समझ पा रहे थे कि गोलियां चला कौन रहा है। इस घटना ने झारखंड (Jharkhand) समेत पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। नक्सलियों ने कई माताओं से उनके बेटे छीन लिए और कई पत्नियों से उनका सुहाग छीन लिया। आज हालात ये हैं कि अक्टूबर महीना आते ही यहां के लोगों का जख्म ताजा हो जाता है।

आज से लगभग 13 साल पहले जब ये घटना हुई थी, तो पूरे राज्य में खलबली मच गई थी। इस घटना ने राज्य सरकार को हिला कर रख दिया था। घटना की जानकारी पर तत्कालीन मुख्यमंत्री मधु कोड़ा, तत्कालीन डीजीपी बीडी राम, तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष आलमगीर आलम, पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, रविंद्र कुमार राय, झारखंड मुक्ति मोर्चा सुप्रीमो शिबू सोरेन सहित प्रदेश व गिरिडीह जिले के कई आला अधिकारी और नेता मौके पर पहुंचे थे। इस दौरान मृतकों के परिजनों को सांत्वना देते हुए कई वादे किए गए थे, जिसमें मृतक के परिजन को एक सरकारी नौकरी और एक-एक लाख का मुआवजा समेत सरकारी योजनाओं का फायदा देने की बात कही गई थी।

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हालांकि कुछ दिनों के बाद मुआवजा और नौकरियां मिलीं, लेकिन नक्सलियों के डर से आज भी इस क्षेत्र में समुचित विकास नहीं हो पाया है।

आज भी नेताओं द्वारा किए गए आदर्श गांव बनाने के वादे पूरे नहीं हो पाए हैं। आज तक कोई भी नेता, उस घटना में मारे गए लोगों की याद में ना ही वरसी मनाते हैं और ना ही श्रद्धांजलि सभा का आयोजन करते हैं।

हालांकि सरकार और जिला प्रशासन क्षेत्र के विकास के लिए निरंतर प्रयास कर रही है। अब देखना होगा कि चिलखारी गांव कब तक आदर्श ग्राम बन पाएगा।

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