संगीतकार प्यारेलाल जयंती: परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए बजाया वॉयलिन, फिल्म ‘पारसमणि’ से चमकी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी

लक्ष्मी-प्यारे (Laxmikant–Pyarelal) ने कल्याणजी-आनंदजी, शंकर-जयकिशन, खय्याम, एस. डी. बर्मन और आर.डी. बर्मन के साथ भी काम किया। पहला ब्रेक बतौर संगीत -निर्देशक फिल्म ‘पारसमणि’ में उन्हें मिला।

Pyarelal

Music Director Laxmikant Pyarelal

Music Composer Pyarelal Birth Anniversary: शंकर-जयकिशन की तरह लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल (Laxmikant–Pyarelal) अत्यंत सफल संगीत निर्देशक रहे। इसका कारण शायद यही रहा कि दोनों अलग-अलग पृष्ठभूमि के थे। लक्ष्मीकांत कुलादलकर बंबई से थे, जबकि प्यारेलाल रामप्रसाद शर्मा उत्तरी भारत से आए थे। दोनों पहले नौशाद, कल्याणजी-आनंदजी और अन्य संगीतकारों के साथ उनके सहायक के रूप में काम करते थे।

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लक्ष्मीकांत महाराष्ट्र से थे, इसलिए उन्हें मराठी लोकगीतों में इस्तेमाल होने वाले ढोलक के बारे में विशेषज्ञता हासिल थी और उन्होंने अपनी संगीत रचनाओं में इसका बेहतरीन प्रयोग भी किया। हालांकि लक्ष्मी-प्यारे (Laxmikant–Pyarelal) को सफलता की ऊंचाइयां छूने के लिए काफी इंतजार व संघर्ष करना पड़ा क्योंकि दोनों को आगे बढ़ाने वाला कोई ‘गॉड फादर’ नहीं था उन्हें अपने करियर के शुरुआती दौर में बी ग्रेड की फिल्मों में काम करना पड़ा। इनमें से कई फिल्में रिलीज ही नहीं हुईं। 37 वर्षों तक श्रोताओं को दीवाना बनाकर रखने वाली इस संगीत जोड़ी ने 500 से भी अधिक फिल्मों में अनगिनत सुपरहिट गीत दिए।

3 सितंबर 1940 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में जन्में प्यारेलाल (Pyarelal) का बचपन बेहद संघर्ष भरा रहा ।उनकी मां का देहांत छोटी उम्र में ही हो गया था। उनके पिता पंडित रामप्रसादजी ट्रम्पेट बजाते थे और चाहते थे कि प्यारेलाल वायलिन सीखे। उनके सभी भाई म्यूजिक कंपोजर और अरेंजर थे। संगीत उनकी रगों में बह रहा था और धुनों में उन्हें जीवन का अर्थ अल्पायु में ही समझ आने लगा था। पिता के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे। वे घर-घर जाते थे, जब भी कहीं उन्हें बजाने का मौका मिलता था और साथ में प्यारे को भी ले जाते। उनका मासूम चेहरा सबको आकर्षित करता था।

एक बार पंडितजी उन्हें लताजी के घर लेकर गए। लताजी प्यारे के वायलिन वादन से इतनी खुश हुईं कि उन्होंने प्यारे को 500 रुपए इनाम में दिए, जो उस जमाने में बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। वह घंटों वायलिन का रियाज करते। अपनी मेहनत के दम पर उन्हें बंबई के रंजीत स्टूडियो’ के आर्केस्ट्रा में नौकरी मिल गई, जहां उन्हें 85 रुपए मासिक वेतन मिलता था। अब उनके परिवार का पालन इन्हीं पैसों से होने लगा। उन्होंने एक रात्रि स्कूल में सातवें ग्रेड की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया, पर 3 रुपए की मासिक फीस उठा पाने की असमर्थता के चलते इसे छोड़ना पड़ा।

लक्ष्मी-प्यारे (Laxmikant–Pyarelal) ने कल्याणजी-आनंदजी, शंकर-जयकिशन, खय्याम, एस. डी. बर्मन और आर.डी. बर्मन के साथ भी काम किया। पहला ब्रेक बतौर संगीत -निर्देशक फिल्म ‘पारसमणि’ में उन्हें मिला। दोनों की पहली फिल्म ‘पारसमणि’ और इस जोड़ी को स्थापित करने वाली फिल्म ‘दोस्ती’ थी। उनकी बनाई धुनें बेहद कामयाब रहीं। उनकी जोड़ी हिट हुई और इसके बाद वे लगातार सफलता की सीढियां चढ़ते चले गए।

इस जोड़ी (Laxmikant–Pyarelal) ने शोमैन राजकपूर से लेकर मनमोहन देसाई, ओम प्रकाश, मनोज कुमार, राज खोसला, यश जौहर, सुभाष घई, डेविड धवन, देवानंद, महेश भट्ट, विजयानंद, यश चोपड़ा और शक्ति सामंत जैसे निर्माताओं के साथ काम किया। ‘दोस्ती’, ‘इज्जत’, ‘आए दिन बहार के’, ‘मिलन’, ‘शागिर्द’, ‘जीने की राह’, ‘दो रास्ते’, ‘मेरा गांव मेरा देश’ और ‘रोटी कपड़ा और मकान’ से लेकर ‘खलनायक’, ‘परवरिश’, ‘नसीब’, ‘कुली’, ‘सुहाग’ और ‘धर्मवीर’ आदि फिल्मों में उनका संगीत हिट रहा।

फिल्म ‘ओम शांति ओम’ संगीत से प्यारेलाल (Pyarelal) के प्यार का जीवंत उदाहरण है। प्यारेलाल अब वर्ल्ड म्यूजिक पर काम कर रहे हैं। इसमें वे लोकसंगीत, शास्त्रीय संगीत और वेस्टर्न संगीत को मिलाकर फ्यूजन करेंगे।

प्यारेलाल जी (Pyarelal) के चार कमरे अवॉर्ड से भरे हुए हैं। इस जोड़ी को 7 फिल्मफेयर अवॉर्ड, 68 गोल्डन जुबली अवॉर्ड, 100 सिल्वर जुबली अवॉर्ड मिले। ‘दोस्ती’ फिल्म में ‘फिल्मफेयर अवॉर्ड’ मिलना उनकी बहुत बड़ी उपलब्धि थी, क्योंकि उस समय दो बड़ी रंगीन फिल्में ‘संगम’ और ‘वो कौन थी’ नामित की गई थीं।

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