Rani Lakshmibai Birth Anniversary: झांसी की वह तलवार जो आखिरी सांस तक काटती रही अंग्रेजों के सिर

आजादी की लड़ाई की पहली वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई (Rani Lakshmibai) का जन्म 19 नवंबर, 1835 को वाराणसी में हुआ था। पिता का नाम मोरेपन्त था और माता भागीरथी बाई थीं। बचपन में नाम मणिकर्णिका था, प्यार से सब मनु बुलाते थे।

Rani Lakshmibai

Remembering the Veerangana Rani Lakshmibai on her birth anniversary

Remembering the Queen of Jhansi, Rani Lakshmibai :

चमक उठी सन् सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।

सुभद्रा कुमारी चौहान की ये कविता हम सब ने बचपन में पढ़ी और सुनी है। यह कविता, भारत की वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई (Rani Lakshmibai) की वीरता का बखान है। शौर्य, साहस और वीरता से भरी वह रानी जिसने अकेले अंग्रेजी हुकूमत की ईंट से ईंट बजा डाली। जिनकी बिजली सी चलती तलवार ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। अपनी झांसी, अपने स्वाभिमान और देश की स्वतंत्रता के लिए झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने आज के ही दिन यानि 17 जून, सन् 1858 में अंग्रेजी सेना से लड़ते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

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आजादी की लड़ाई की पहली वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई (Rani Lakshmibai) का जन्म 19 नवंबर, 1835 को वाराणसी में हुआ था। पिता का नाम मोरेपन्त था और माता भागीरथी बाई थीं। बचपन में नाम मणिकर्णिका था, प्यार से सब मनु बुलाते थे। 4 साल की उम्र में मनु पिता के साथ बिठूर चली आयीं। पिता बिठूर के पेशवा के यहां रहते थे। मनु भी साथ रहती थीं। बचपन नाना साहब के साथ बीता। नाना उन्हें अपनी बहन मानते थे और प्यार से उन्हें छबीली बुलाते थे। नाना के साथ-साथ मनु घुड़सवारी, तलवारबाजी और युद्ध कौशल सीखने लगीं। मनु जब 14 साल की थीं, उनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव से हो गया। विवाह के बाद महराज गंगाधर राव ने उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा। 1851 में लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन महज 4 महीने बाद ही उनके पुत्र की मृत्यु हो गई। अंग्रेजों से अपने राज्य को बचाने के लिए गंगाधर राव ने एक बच्चे को गोद लिया। बच्चे का नाम दामोदर राव रखा गया। लेकिन गंगाधर राव बीमार रहने लगे और कुछ ही दिनों में उनकी भी मृत्यु हो गई।

अपनी संतान नहीं होने के कारण अंग्रेजी हुकूमत ने रानी लक्ष्मीबाई (Rani Lakshmibai) को झांसी छोड़ने का फरमान जारी कर दिया। गवर्नर जनरल लार्ड डालहौजी ने झांसी पर कब्जा और रानी को गद्दी से बेदखल करने का आदेश दिया। लेकिन स्वाभिमानी रानी ने फैसला कर लिया था कि वो अपनी झांसी अंग्रेजों को नहीं देंगी। जब अंग्रेजी दूत रानी के पास किला खाली करने का फरमान ले कर आये तो रानी ने गरज कर कहा “मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी”। जनवरी, 1858 में अंग्रेजी सेना झांसी पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़ी। लक्ष्मीबाई युद्ध के मैदान में कूद पड़ीं और उनकी सेना ने अंग्रेजों को आगे बढ़ने से रोक दिया। लड़ाई दो हफ़्तों तक चली और अंग्रेजी सेना को पीछे हटना पड़ा। लेकिन अंग्रेज बार-बार दोगुनी ताकत के साथ वापस आ जाते। झांसी की सेना लड़ते-लड़ते थक गई थी। आखिरकार अप्रैल, 1858 में अंग्रेजों ने झांसी पर कब्जा कर लिया।

रानी लक्ष्मीबाई (Rani Lakshmibai) अपने कुछ भरोसेमंद साथियों के साथ अंग्रेजों को चकमा दे किले से निकलने में सफल हो गईं। रानी और उनकी सेना कालपी जा पहुंची और ग्वालियर के किले पर कब्जा करने की योजना बनाई गई। ग्वालियर के राजा किसी भी ऐसे हमले की तैयारी में नहीं थे। 30 मई, 1858 को रानी अचानक अपने सैनिकों के साथ ग्वालियर पर टूट पड़ीं और 1 जून को ग्वालियर के किले पर रानी का कब्जा हो गया। ग्वालियर अंग्रेजी हुकूमत के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। ग्वालियर के किले पर रानी लक्ष्मीबाई (Rani Lakshmibai) का अधिकार होना अंग्रेजों की बहुत बड़ी हार थी। अंग्रेजों ने ग्वालियर के किले पर हमला कर दिया। रानी ने भीषण मार-काट मचाई। बिजली की भांति लक्ष्मीबाई अंग्रेजों का सफाया करते हुए आगे बढ़ती जा रही थीं।

ग्वालियर की लड़ाई का दूसरा दिन था। रानी (Rani Lakshmibai) अंग्रेजों से चारों तरफ से घिर गईं थीं। वह लड़ते-लड़ते एक नाले के पास आ पहुंचीं। आगे जाने का कोई रास्ता नहीं था और घोड़ा नया था वह नाले को पार नहीं कर पा रहा था। पीछे दुश्मन की पूरी फौज थी। रानी पूरी तरह से फंस चुकी थीं। रानी अकेली थीं और सैकड़ों अंग्रेज सैनिक। सबने मिल कर रानी पर वार शुरू कर दिए। रानी घायल हो कर गिर पड़ीं। लेकिन अंग्रेज सैनिकों को जाने नहीं दिया और मरते-मरते भी उन्होंने उन सभी अंग्रेजों को मार गिराया। लक्ष्मीबाई नहीं चाहती थीं कि उनके मरने के बाद उनका शरीर अंग्रेज छू पाएं। वहीं पास में एक साधु की कुटिया थी। साधु उन्हें उठा कर अपने कुटिया तक ले आए। लक्ष्मीबाई ने साधु से विनती की कि उन्हें तुरंत जला दिया जाए और इस तरह 18 जून 1858 को ग्वालियर में रानी वीरगति को प्राप्त हो गईं।

सुभद्रा कुमारी चौहान की उनके जीवन पर लिखी कविता से अच्छी शौर्य गाथा इस वीरांगना की हो ही नहीं सकती। उनकी कविता की ये अंतिम पंक्तियां रानी लक्ष्मीबाई बाई के बलिदान को सच्ची श्रद्धांजलि हैं-

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।

रानी लक्ष्मीबाई (Rani Lakshmibai) से जुड़ी ये खास बातें 

  1. रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर, 1828 को वाराणसी में हुआ था। उनके पिता का नाम ‘मोरोपंत तांबे’ और माता का नाम ‘भागीरथी बाई’ था।
  2. रानी लक्ष्मी बाई का बचपन का नाम ‘मणिकर्णिका’ था लेकिन प्यार उन्हें ‘मनु’ पुकारा जाता था।
  3. मनु अभी चार साल की ही थीं कि उनकी मां का निधन हो गया। पिता मोरोपंत तांबे एक साधारण ब्राह्मण और अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में अपनी सेवा देते थे।
  4. मां की मृत्यु हो जाने पर वह पिता के साथ बिठूर आ गई थीं। यहीं पर उन्होंने मल्लविद्या, घुड़सवारी और शस्त्रविद्याएं सीखीं।
  5. घर में मनु की देखभाल के लिए कोई नहीं था इसलिए पिता मनु को अपने साथ बाजीराव के दरबार में ले जाते थे। वहां चंचल और सुंदर मनु ने सबका मन मोह लिया था इसीलिए बाजीराव मनु को प्यार से ‘छबीली’ बुलाते थे।
  6. मनु बचपन से ही मानती थीं कि वह लड़कों के जैसे सारे काम कर सकती हैं। एक बार उन्होंने देखा कि उनके दोस्त नाना एक हाथी पर घूम रहे थे। हाथी को देखकर उनके अंदर भी हाथी की सवारी की जिज्ञासा जागी।
  7. नाना ने मनु को हाथी की सवारी कराने से मना कर दिया। इससे मनु दुःखी होकर बोलीं कि एक दिन मेरे पास भी अपने खुद के हाथी होंगे, वो भी दस-दस। गे जब वह झांसी की रानी बनी तो यह बात सच हुई।
  8. 1834 में 14 साल की उम्र में उनकी शादी झांसी के राजा गंगाधार राव से हुआ जिसके बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई हो गया।
  9. 1851 में उनको एक बेटा पैदा हुआ था जिसकी चार महीने की उम्र में ही मौत हो गई थी। उसके बाद उन्होंने आनंद राव नाम के एक पुत्र को गोद लिया जिसका नाम बदलकर बाद में दामोदर राव रख दिया गया।
  10. 21 नवंबर, 1853 को लक्ष्मी बाई के पति गंगाधर की भी मौत हो गई। पति के निधन के बाद 27 फरवरी 1854 को लार्ड डलहौजी ने गोद की नीति के अंतर्गत दत्तकपुत्र दामोदर राव की गोद अस्वीकृत कर दी।
  11. अंग्रेजों ने झांसी को अंग्रेजी राज्य में मिलाने की घोषणा कर दी। लक्ष्मी बाई ने इस चीज को मंजूर नहीं किया और अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया।
  12. लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया। दोनों हाथों में तलवार लेकर घोड़े पर सवार और पीठ पर बच्चे को बांधकर झांसी की रानी अंग्रेजों पर टूट पड़ीं।
  13. रानी की किलाबंदी और उनका जज्बा अंग्रेजों पर भारी पड़ने लगा था। लेकिन अंग्रेजों की विशाल सेना के मुकाबले झांसी की सेना भला कब तक टिकती। आखिर में अंग्रेजों का झांसी पर कब्जा हो गया।
  14. इस लड़ाई में रानी लक्ष्मी बाई बुरी तरह घायल हो गईं। वह चाहती थीं कि उनके शव को अंग्रेज हाथ न लगाए। उनकी इच्छा के मुताबिक उनके कुछ सैनिकों ने लक्ष्मी बाई को बाबा गंगादास की कुटिया में पहुंचाया।
  15. बाबा गंगादास की कुटिया में ही 18 जून, 1858 को लक्ष्मी बाई ने दम तोड़ दिया। वहीं उनका अंतिम संस्कार किया गया।

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