जयंती विशेष: अभिनय के कारण नहीं बल्कि फिल्मों की कहानी के कारण याद आते हैं मनोज कुमार

आप जब भी मनोज कुमार (Manoj Kumar) को याद करेंगे तो उनसे ज्यादा उनकी फिल्मों के दूसरे चरित्र ज्यादा याद आते हैं, जो उनसे ज्यादा सशक्त दिखाई देते हैं उनकी सबसे ज्यादा लोकप्रिय फिल्म ‘उपकार’ का उदाहरण लीजिए। उपकार को याद करने पर मनोज कुमार नहीं, प्राण ज्यादा याद आते हैं। वह ईमानदार, भावुक, साहसी और अपंग चरित्र।

Manoj Kumar मनोज कुमार

Veteran actor and filmmaker Manoj Kumar II अभिनेता मनोज कुमार जयंती

मनोज कुमार (Manoj Kumar) उर्फ भरत कुमार’! मनोज कुमार (Manoj Kumar) ऐसे अभिनेता हैं जो अपनी देशभक्ति से जुड़ी फिल्मों के कारण जाने जाते हैं, अपने अभिनय के कारण नहीं। इसके पीछे कई कारण भी हैं।

दिलीप कुमार ‘ट्रेजिडी किंग’ इसलिए कहलाए, क्योंकि उन्होंने अपनी फिल्मों में एक उदास, दु:खी और हमेशा असफल, अवसाद से भरे प्रेमी की भूमिकाएं कीं। एक बार हिंदी के कवि विष्णु खरे ने उन्हें ‘सन्नाटा बुनने वाला अभिनेता’ कहा था। यानी वे अपनी देहभाषा से, उठने-बैठने और देखने के खामोश तरीके से, अपने फेशियल एक्सप्रेशन से किसी खास मन:स्थिति को इतने भावपूर्ण ढंग से अभिव्यक्त करते थे कि संवाद की जरूरत नहीं पड़ती थी।

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वह परदे पर अपनी खामोशी से ऐसा अभिनय करते थे कि सन्नाटा पसर जाता था, जिसमें दर्शक एक प्रेमी के दुःख की तमाम आवाजें सुन लिया करते थे। अपने अभिनय कौशल और कल्पनाशीलता से, अपनी खास संवाद अदायगी से, अपनी आवाज के बेहतर इस्तेमाल से दिलीप कुमार ने यह संभव कर दिखाया था।

लेकिन मनोज कुमार (Manoj Kumar) अपनी देशभक्ति से भरी फिल्मों की वजह से जाने जाते हैं। आप दिलीप कुमार का नाम लेंगे तो इसके साथ ही आपके जेहन में उनकी अभिनीत फिल्में और भूमिकाएं एकाएक याद आ जाएंगी। इसी तरह से राज कपूर को भी याद किया जा सकता है।

राज कपूर अपनी फिल्मों की कथावस्तु और अपनी फिल्मों के गीत-संगीत के कारण ही नहीं, बल्कि अपने एक निर्दोष, भोले और दिल को छू जाने वाली सहज आत्मीयता और मानवीयता के कारण याद आ जाते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण उनका अभिनय ही है। लेकिन यही बात मनोज कुमार (Manoj Kumar) के बारे में नहीं की जा सकती। मनोज कुमार का नाम लेंगे तो उनकी फिल्में याद आएंगी, लेकिन उनके अभिनय के कारण नहीं, इसके कारण दूसरे होंगे। यानी मनोज कुमार (Manoj Kumar) अपने अभिनय के कारण नहीं बल्कि अपनी फिल्मों की कथावस्तु के कारण याद आते हैं। शहद’ से लेकर ‘उपकार’ तक, ‘पूरब-पश्चिम से लेकर ‘क्रांति’ तक।

आप जब भी मनोज कुमार (Manoj Kumar) को याद करेंगे तो उनसे ज्यादा उनकी फिल्मों के दूसरे चरित्र ज्यादा याद आते हैं, जो उनसे ज्यादा सशक्त दिखाई देते हैं उनकी सबसे ज्यादा लोकप्रिय फिल्म ‘उपकार’ का उदाहरण लीजिए। उपकार को याद करने पर मनोज कुमार (Manoj Kumar) नहीं, प्राण ज्यादा याद आते हैं। वह ईमानदार, भावुक, साहसी और अपंग चरित्र। यही अपंग चरित्र। पूरी फिल्म में जेहन से अपंग लोगों को बताता है कि मानवीयता क्या होती है, मूल्य क्या होते हैं और रिश्तों का अर्थ क्या होता है। इसी तरह से ‘शोर’ में आपको मनोज कुमार (Manoj Kumar) से ज्यादा जया भादुड़ी का चरित्र याद आएगा। ‘संन्यासी’ को याद करेंगे तो हेमा मालिनी या प्रेमनाथ याद आएंगे। ‘पूरब-पश्चिम को याद करेंगे तो सायरा बानो याद आएंगी। ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ को याद करेंगे तो जीनत अमान याद आएंगी और ‘क्रांति’ को याद करेंगे तो दिलीप कुमार याद आएंगे, मनोज कुमार (Manoj Kumar) शायद याद न आएं।

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मनोज कुमार (Manoj Kumar) याद क्यों नहीं आते, इसके कुछ और भी कारण हैं, जैसे उनकी फिल्मों का गीत संगीत। आप ‘उपकार’ को याद करिये तो मन्ना डे का वह कालजयी गाना याद आता है- ‘कसमें वादे प्यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या’ कितना ताकतवर बोल हैं, और कैसी कशिश भरी आवाज और क्या विरल धुन। और इसी फिल्म का वह गीत जो आजादी की हर वर्षगांठ पर बजता है-‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती, मेरे देश की धरती’। आपको महेंद्र कपूर याद आएंगे जो यह गाना गाकर हमेशा के लिए अमर हो गए। फिर ‘पूरब-पश्चिम’ का वह प्रेम गीत ‘कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे, तड़पता हुआ जब कोई छोड़ दे, तब तुम मेरे पास आना प्रिये, मेरा दर खुला है खुला ही रहेगा तुम्हारे लिए।’ आवाज है मुकेश की। एक दर्दीला गीत। जेहन में हमेशा ठहरा हुआ और ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ के गीत भी याद किए जा सकते हैं। ‘हाय-हाय ये मजबूरी, ये मौसम और ये दूरी, तेरी दो टकियों की नौकरी में मेरा लाखों का सावन जाए। और वह युगल गीत भी जिसके बोल हैं- ‘मैं ना भूलूंगा, मैं ना भूलूंगी।’ इसके बाद ‘शोर’ फिल्म को याद करिए। आपको याद आएंगे उसके बेहतरीन गीत। संतोष आनंद के लिखे गीत- ‘एक प्यार का नगमा है, मौजों की रवानी है, जिंदगी और कुछ भी नहीं, तेरी मेरी कहानी है।’ मनोज कुमार (Manoj Kumar) की फिल्मों के हिट गीतों की लंबी फेहरिस्त बनाई जा सकती है, लेकिन उनकी लाजवाब भूमिकाओं की नहीं। इसलिए मनोज कुमार  याद आते हैं तो सिर्फ इसलिए कि अभिनय के नाम पर वे अपना चेहरा छिपाते हैं।

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