
सरेंडर करने वाले नक्सलियों के लिए नीति में संशोधन। सांकेतिक तस्वीर।
नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने के लिए, केंद्र सरकार ने नक्सल प्रभावित राज्यों में आत्मसमर्पण और पुनर्वास के लिए दिशा-निर्देशों में संशोधन किया है। इसको तैयार करते समय नक्सल प्रभावित राज्यों की भौगोलिक और सामाजिक स्थिति को ध्यान में रखा गया है। आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लिए बनाई गई समग्र नीति का हिस्सा है। इसका मकसद है लाल आतंक से ग्रस्त इलाकों में शांति बहाली। साथ ही विकास के पहिए को गति भीदेनी है।
दरअसल, नक्सली क्रांति के नाम पर मासूमों को बरगलाकर उन्हें हथियार थमा दिए जाते हैं। उनका शोषण किया जाता है। लिहाजा, सरकार की मंशा है कि सरेंडर कर चुके नक्सलियों को रोजगार मुहैया कराया जाए, साथ ही उन्हें स्वरोजगार के मौके भी दिए जाएं। इस तरह उनके लिए नक्सलवाद के अंधेरे गलियारों से मुख्यधारा की रौशन जिंदगी में वापसी आसान हो जाएगी।
संशोधित नीति के तहत पुनर्वास पैकेज में अन्य बातों के साथ ही उच्च रैंक वाले नक्सलियों हेतु तत्काल 5 लाख रुपए का अनुदान तथा मध्य एवं निम्न रैंक वाले नक्सलियों हेतु 2.5 लाख रुपए का त्वरित अनुदान शामिल है। यह राशि सरेंडर करने वाले संबंधित नक्सलियों के नाम से तीन साल के लिए फिक्स डिपॉजिट कर दी जाएगी। तीन साल की इस अवधि में उनका व्यवहार अच्छा होने पर ही वो इस राशि का लाभ उठा सकेंगे।
तीन साल की इस अवधि के दौरान उन्हें उनके पसंदीदा व्यवसाय की ट्रेनिंग दी जाएगी। इसके लिए हर महीने इन्हें 6000 रुपए का मानदेय दिया जाएगा। इसके अलावा, योजना के तहत हथियारों व अन्य विस्फोटकों के समर्पण पर उन्हें प्रोत्साहन राशि भी दी जाएगी। केंद्र सरकार इस नीति की एसआरई योजना के तहत नक्सल प्रभावित राज्यों को उस राशि की प्रतिपूर्ति करती है, जो सरेंडर करने वाले नक्सलियों के पुनर्वास पर खर्च होता है।
साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल (SATP) पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, साल 2019 में जुलाई के पहले हफ्ते (7 जुलाई, 2019) तक 6 नक्सल प्रभावित राज्यों में कम से कम 157 नक्सलियों ने हथियार डाले हैं। साल 2018 में इसी अवधि में 286 नक्सलियों ने पुलिस के सामने सरेंडर किया था। अब जरूरी ये है कि सरकार इस बाबत उपाय करे कि मुख्यधारा में लौट चुके नक्सली फिर वापस दहशत की अंधेरी दुनिया में ना लौटें। साथ ही सरेंडर कर चुके नक्सली उन साथियों के लिए वापसी की प्रेरणा बनें जो अब भी जंगलों में बंदूक उठाए भागते-फिर रहे हैं।
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