मेरठ के मामूली टीचर ने बॉलीवुड में ऐसी धाक जमाई, पोस्टर पर छपे इनके नाम से होती थी फिल्मों की कमाई

पंडित मुखराम शर्मा (Mukhram Sharma) ने बॉलीवुड में लेखक के काम को प्रतिष्ठा दिलाई। उनकी लिखी हिट फिल्मों की बदौलत उनका नाम इतना प्रसिद्ध हो गया कि फिल्म के क्रेडिट में उसे प्रमुखता दिया जाने लगा। उनके नाम से दर्शक सिनेमाघर की ओर खिंचे चले आते थे। इतनी शोहरत पाने के बावजूद वह सादा जीवन और उच्च विचार में यकीन रखते थे।

Mukhram Sharma

फिल्मों के बारे में कहा जाता है कि फिल्में पटकथा की बदौलत चलती हैं। फिल्म की स्क्रिप्ट जितनी अच्छी होगी, उतनी ही ज्यादा दर्शकों को लुभाएगी। लेकिन फिर भी अधिकतर फिल्मों को या तो अभिनेता या फिर निर्देशक के नाम से जाना जाता है। स्क्रिप्ट राइटर का नाम कम ही लोगों की जुबान पर आता है। लेकिन 60 और 70 के दशक में एक लेखक ऐसे हुए जिन्होंने बॉलीवुड में लेखकों को पहचान दिलाई। वो थे पंडित मुखराम शर्मा (Mukhram Sharma)। आज इनकी पुण्यतिथि है। ′औलाद′, ′एक ही रास्ता′, ′साधना′, ′धूल का फूल′, ′वचन’, दुश्मन′, ′अभिमान′ और ′संतान′ आदि हिट फिल्मों की कथा-पटकथा, संवाद लेखक पंडित जी का नाम फिल्मों के पोस्टर पर ‘पंडित मुखराम शर्मा की फिल्म’ लिखा कर छपता था। सिनेमाघरों में फिल्म आरम्भ होने पर ऐसे ही पंडित मुखराम शर्मा की फिल्म के साथ फ़िल्म का टाइटल लिखा जाता था।

पंडित मुखराम शर्मा (Mukhram Sharma) का जन्म 30 मई, 1909 को मेरठ के किला परीक्षितगढ़ क्षेत्र के गांव पूठी में हुआ था। हिन्दी और संस्कृत में शिक्षक के तौर पर करियर की शुरुआत हुई। फिल्में देखने और कहानी लेखन का शौक उन्हें था। उनके एक मित्र उन्हें 1939 में मुंबई ले आये, लेकिन वहां काम नहीं मिला। उस दौर में पूना में भी फिल्में बनती थीं। वहां की ′प्रभात फिल्म कंपनी′ में मराठी कलाकारों का हिन्दी उच्चारण सुधारने का काम मिला। कुछ समय बाद फिल्म ′दस बजे′ के गीत और संवाद लिखने का मौका मिल गया। सामाजिक समस्याओं पर उनकी लिखी कहानी ′आज का सवाल′ पर बनी मराठी फिल्म को काफी सराहना मिली। इसी कहानी पर हिन्दी में ‘औरत तेरी यही कहानी’ शीर्षक से फिल्म बनी। इस फिल्म ने खासी सफलता पाई। इसकी सफलता उन्हें मुम्बई ले आई और एक के बाद एक हिट फिल्में उनके द्वारा लिखी जाने लगीं।

1959 में आई ′धूल का फूल′ यश चोपड़ा की बतौर निर्देशक पहली फिल्म थी। इसकी कथा-पटकथा और संवाद पंडितजी (Mukhram Sharma) ने लिखे थे। 60 के दशक में दक्षिण में बनी पारिवारिक हिन्दी फिल्मों को बहुत पसंद किया जाता था। पंडित मुखराम शर्मा ने वहां के प्रसिद्ध ′जेमिनी बैनर′ की ′घराना′, ′गृहस्थी′, ′प्यार किया तो डरना क्या′ और ′हमजोली′ जैसी हिट फिल्में लिखीं। एलवी प्रसाद के बैनर के लिए ′दादी मां′, ′जीने की राह′, ′मैं सुन्दर हूं′, ′राजा और रंक′ और एवीएम के लिये ′दो कलियां′ जैसी जुबली हिट फिल्में उन्हीं की कलम से निकली थीं। उन दिनों तक ′दादा साहब फाल्के′ पुरस्कार शुरू नहीं हुआ था और कला क्षेत्र में ′संगीत नाट्य अकादमी′ पुरस्कार की बड़ी प्रतिष्ठा थी। 1961 में तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें ′संगीत नाट्य अकादमी′ पुरस्कार से नवाजा।

1950 से 1970 तक उनके उल्लेखनीय पुरस्कारों में तीन फिल्मफेयर पुरस्कार भी थे, जो उन्हें फिल्म ′औलाद′, ′वचन′ और ′साधना′ के लिए मिले थे। पंडित मुखराम शर्मा (Mukhram Sharma) ने बॉलीवुड में लेखक के काम को प्रतिष्ठा दिलाई। उनकी लिखी हिट फिल्मों की बदौलत उनका नाम इतना प्रसिद्ध हो गया कि फिल्म के क्रेडिट में उसे प्रमुखता दिया जाने लगा। उनके नाम से दर्शक सिनेमाघर की ओर खिंचे चले आते थे। इतनी शोहरत पाने के बावजूद वह सादा जीवन और उच्च विचार में यकीन रखते थे। उन्होंने तय कर रखा था कि 70 साल की उम्र के बाद बॉलीवुड को अलविदा कह देंगे और 1980 में उन्होंने यही किया। खास बात यह रही कि उनकी लिखी अंतिम दो फिल्में ′नौकर′ और ′सौ दिन सास के′ भी सुपर-डुपर हिट रहीं। फरवरी 2000 में उन्हें ′जी लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड′ से नवाजा गया। 25 अप्रैल, 2000 को उन्होंने मेरठ में अंतिम सांस ली।

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