खुलासा: खत्म हो रहा माओवाद आंदोलन, अस्तित्व बचाने के लिए लेवी वसूल रहे बड़े नक्सली नेता

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्य से लगभग साफ हो जाने के बाद अब नक्सली महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में अपने अस्तित्व को बचाने की जंग में जुटे हैं। एजेंसियों के मुताबिक, नक्सली संगठनों में सर्वोच्च स्तर के चार नेता आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के हैं।

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नक्सली अब खानाबदोश की तरह जिंदगी गुजार रहे हैं। पैसों की कमी की वजह से वो कंगाली के दौर से गुजर रहे हैं और हालात यह हो गई है कि बड़े नक्सली नेता भी अब उगाही के धंधे में लग गए हैं।

नक्सली (Naxali) अब खानाबदोश की तरह जिंदगी गुजार रहे हैं। पैसों की कमी की वजह से वो कंगाली के दौर से गुजर रहे हैं और हालात यह हो गई है कि बड़े नक्सली (Naxali) नेता भी अब उगाही के धंधे में लग गए हैं। इतना ही नहीं इन नक्सलियों को अब अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए स्थानीय बदमाशों का सहारा भी लेना पड़ रहा है।

जी हां, जमींदोज होने के कगार पर पहुंच चुके माओवादियों को लेकर खुफिया एजेंसियों ने बड़ा खुलासा किया है। लाल आतंक के मिटते नामोनिशान को लेकर देश की खुफिया एजेंसी ने बड़ी बात कही है। सुरक्षाबलों की सख्ती और सरकार द्वारा इन्हें मुख्यधारा में लाने के प्रयास अब काफी हद तक नक्सलवाद पर लगाम लगाने में कामयाब हो रहे हैं।

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्य से लगभग साफ हो जाने के बाद अब नक्सली महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में अपने अस्तित्व को बचाने की जंग में जुटे हैं। एजेंसियों के मुताबिक, नक्सली (Naxali) संगठनों में सर्वोच्च स्तर के चार नेता आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के हैं। लाल आतंक के ठेकेदार बने इन चारों में तेलंगाना के हरि भूषण और रमन्ना हैं, तो आंध्र प्रदेश के बासवराज और आर.के. हैं। लाल आतंक की पूरी बागडोर इन्हीं के पास है, लेकिन इनके पास नक्सली कैडर नहीं हैं। हैरानी की बात है कि इन चार नक्सल नेताओं को छोड़ दें तो बाकी सारे नक्सली छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, झारखंड, ओडिशा और दूसरे राज्यों के आदिवासी हैं। इनमें एक भी तेलुगु नहीं है।

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संगठन के पास संगठन को चलाने के लिए लोगों की भारी किल्लत हो गई है। लिहाजा नक्सली (Naxali) अब स्थानीय युवक-युवतियों को संगठन में भर्ती करने पर लगे हैं। खुफिया एजेंसियों की पड़ताल में ये बात भी सामने आई है कि नक्सली अब स्थानीय मुद्दों पर खुद को केंद्रित कर रहे हैं। स्थानीय मुद्दों में बांध निर्माण और विस्थापन जैसी बातें हैं। कभी चंदे से रकम इकठ्ठा कर नक्सली संगठन को चलाते थे लेकिन अब स्थिति यह आ गई है कि लोग नक्सलियों को चंदा देने से भी पीछे हटने लगे हैं। ऐसे में नक्सलियों के बड़े नेता ट्रांसपोर्ट, होटल और रियल स्टेट कारोबारियों से किसी तरह लेवी वसूलने में जुटे हैं।

स्थानीय अपराधियों से सांठगांठ करना नक्सलियों की मजबूरी होती जा रही है। दरअसल कैडर की कमी ने नक्सलियों को मुश्किल में डाल दिया है। स्थानीय स्तर पर छोटे-मोटे अपराध करने वाले बदमाशों को नक्सली (Naxali) अपने संगठन में शामिल करने की जुगत में लगे हैं। सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि नक्सलियों की ऐसी हालत विकास कार्यों में आई तेजी की वजह से हुई है। ज्यादातर नक्सल प्रभावित इलाकों में सरकार की तरफ से विकास योजनाओं की भरमार कर दी गई है। लिहाजा स्थानीय युवा भी अब नक्सली विचारधारा को छोड़ मुख्यधारा की तरफ लौट रहे हैं।

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