सोमनाथ चटर्जी: कभी सुप्रीम कोर्ट का जज बनने का मिला था ऑफर, पर हंसी में उड़ा दिया

राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते कानून मंत्री शिव शंकर ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखर नेता सोमनाथ चटर्जी से कहा कि सरकार उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाना चाहती है। विपक्ष के बड़े नेता को सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने की पेशकश मिलना बड़ी बात थी।

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पूर्व लोकसभा स्पीकर और दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी का आज जन्मदिन है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व नेता सोमनाथ चटर्जी 10 बार लोकसभा के सांसद रहे थे। वह पश्चिम बंगाल के बर्धमान, जादवपुर और बोलपुर से लोकसभा सांसद रहे। कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए-1 सरकार में 2004 से 2009 तक लोकसभा के अध्यक्ष रहे। इसके साथ ही 1996 में उन्हें उत्कृष्ट सासंद पुरस्कार से भी नवाजा गया था। चटर्जी CPI (M) के केंद्रीय समिति के सदस्य रहे थे। उन्हें प्रकाश करात के धुर विरोधी के रूप में जाना जाता था। वामपंथी वटवृक्ष की जड़ रहे सोमनाथ चटर्जी ने राजनीति में कभी अपने उसूलों से समझौता नहीं किया। संसदीय लोकतंत्र की मजबूती उनकी पहली प्राथमिकता रही।

सोमनाथ चटर्जी का जन्म 25 जुलाई, 1929 को बंगाली ब्राह्मण निर्मलचन्द्र चटर्जी और वीणापाणि देवी के घर में असम के तेजपुर में हुआ था। निर्मल चंद्र अखिल भारतीय हिंदू महासभा के संस्थापक भी थे। उनकी शुरुआती पढ़ाई कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से हुई। आगे की पढ़ाई कोलकाता यूनिवर्सिटी से की। उन्होंने कैंब्रिज के जीसस कालेज से कानून में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की। राजनीति में आने से पहले उन्होंने कोलकाता के हाईकोर्ट में वकालत की। सोमनाथ चटर्जी ने सीपीएम के साथ राजनीतिक करियर की शुरुआत 1968 में की और 2008 तक इस पार्टी से जुड़े रहे। 1971 में वह पहली बार सांसद चुने गए और इसके बाद राजनीति में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1971 में सीपीआईएम के समर्थन से निर्दलीय सांसद बने।

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इन्हें सिर्फ 1984 में ममता बनर्जी से हार का सामना करना पड़ा। उस समय वह जाधवपुर सीट से चुनाव मैदान में थे। लेकिन उसके बाद एक बार फिर जीत का जो सिलसिला कायम हुआ, वह 1989 से 2004 तक चला। सोमनाथ चटर्जी को सुप्रीम कोर्ट का जज बनने की पेशकश भी मिली थी। राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते कानून मंत्री शिव शंकर ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखर नेता सोमनाथ चटर्जी से कहा कि सरकार उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज बनाना चाहती है। विपक्ष के बड़े नेता को सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने की पेशकश मिलना बड़ी बात थी। सोमनाथ ने इस प्रस्ताव को हंसी में उड़ा दिया था, क्योंकि उन्हें यह प्रस्ताव महज एक मजाक लगा था। लेकिन शिव शंकर ने उन्हें बताया यह सच है, तब सोमनाथ चटर्जी ने यह कहकर प्रस्ताव ठुकरा दिया कि उन्हें इस पद में दिलचस्पी नहीं है।

साल 2004 में 14 लोकसभा में वह दसवीं बार सांसद बने। 4 जून, 2004 को उन्हें 14वीं लोकसभा के लिए अध्यक्ष चुना गया। सोमनाथ चटर्जी लोकसभा में सांसदों के हंगामे पर बहुत ही भावुक तरीके से नाराजगी जाहिर किया करते थे। साल 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर यूपीए से सीपीएम द्वारा समर्थन वापस लेने के दौरान सोमनाथ चटर्जी ने स्पीकर पद से इस्तीफा देने से इंकार दिया था। जिसके बाद उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। सीपीएम चाहती थी कि वे स्पीकर पद से इस्तीफा दें और विश्वास प्रस्ताव में सरकार के खिलाफ वोट करें। पर सोमनाथ चटर्जी ने इससे इंकार कर दिया और कहा कि स्पीकर पार्टी से अलग होता है। सोमनाथ के लिए ये सबसे दुख भरा दिन था। उन्होंने भविष्य के स्पीकर को सलाह देते हुए कहा कि यह दिन उनके लिए सबसे दुखी दिन है।

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भविष्य के स्पीकर अपने दल से इस्तीफा देकर ही इस पद पर बैठें। इस पद पर रहते हुए उन्होंने लोकसभा के शून्य काल का लाइव टेलीकास्ट शुरू करवाया। चटर्जी की पहल पर “शून्यकाल” की कार्यवाही का 5 जुलाई, 2004 से सीधा प्रसारण किया गया। श्री चटर्जी का मानना था कि यह कदम लोगों के जानने के अधिकार को ध्यान में रख कर शुरू किया गया है। संसदीय कार्यवाही को अधिक व्यापक मीडिया कवरेज प्रदान करने के लिए 24 जुलाई, 2006 से पूरे 24 घंटे के लिए लोकसभा का एक टेलीविजन चैनल शुरू किया गया। इसके परिणामस्वरूप सभा की दर्शक दीर्घा का विस्तार वास्तव में पूरे देश में हो गया। इससे आम जन को संसद से जोड़ने का प्रयास हुआ, जो काफी सफल रहा।

लोकसभा अध्यक्ष रहते हुए उनकी पहल पर ही भारत की लोकतांत्रिक विरासत पर अत्याधुनिक संसदीय संग्रहालय की स्थापना की गई। 14 अगस्त, 2006 को इस संग्रहालय का उद्घाटन भारत के राष्ट्रपति ने किया। यह संग्रहालय आम लोगों के लिए खुला है। सोमनाथ चटर्जी ने वंचित लोगों के मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाकर उनके हितों के लिए आवाज बुलंद करने का कोई भी अवसर नहीं गंवाया। सोमनाथ चटर्जी का वाद-विवाद कौशल, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों की स्पष्ट समझ, भाषा के ऊपर पकड़ और जिस नम्रता के साथ वे सदन में अपना दृष्टिकोण रखते थे उसे पूरा सदन एकाग्रचित्त होकर सुनता था। साल 2009 में सोमनाथ चटर्जी ने राजनीति से संन्यास ले लिया। उन्होंने अपना शरीर मेडिकल रिसर्च के लिए दान कर दिया था। 13 अगस्त, 2018 को लम्बी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया।

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