लाला हरदयाल जयंती: विदेशी धरती से भारत की आजादी का झंडा बुलंद करने वाले महान क्रांतिकारी, जिसने प्रवासी भारतीयों में जगाई देशप्रेम की अलख

गदर पार्टी की स्थापना 1 नवम्बर 1913 को हुई थी। हरदयाल (Lala Har Dayal) इसके मार्ग-दर्शक थे। वे अमेरिकी पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए और तत-पश्चात् छूटने पर उन्होंने स्विट्जरलैंड जाकर फ्रायड हाउसवर्थ के साथ रहने की सोची।

Lala Har Dayal लाला हरदयाल

Lala Har Dayal Birth Anniversary II लाला हरदयाल जयंती

Lala Har Dayal Birth Anniversary: 19वीं सदी में विद्वत्ता के चरम शिखर के मिसाल के रूप में जिनका नाम हर किसी के होंठों पर था वह थे हरदयाल। उनके नाम के साथ हमेशा महान शब्द लगाया जाता था। वे महान हरदयाल थे। छात्र के रूप में उनकी महानता की कहानी बढ़ती ही चली गई थी। उनकी याददाश्त असाधारण थी, वे किसी किताब को बस एक बार पढ़ते और फिर उसकी विषय-वस्तु को शब्द-प्रतिशब्द ज्यों-का-त्यों दुहराते चले जाते। वे न केवल सभी विषयों के ‘टॉपर’ थे बल्कि हर परीक्षा में उन्होंने पहले के बनाए गए सभी रिकार्डों को भारी-भरकम अन्तराल से ध्वस्त किया था। हालाँकि यह बात पूरी तरह सच नहीं है क्योंकि कभी-कभी दूसरे परीक्षार्थियों ने भी उन्हें पछाड़ा था और वे द्वितीय स्थान पर रहे थे, पर लोग-बाग इस बात पर विश्वास नहीं कर पाते।

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हरदयाल (Lala Har Dayal) की यह ख्याति इसलिए अजेय थी क्योंकि वे एक क्रान्तिकारी भी थे, जिन्होंने सरकारी संरक्षण को ठुकरा दिया था। वे संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में शुरुआती दिनों में, गदर आंदोलन की अगुवाई की और प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश राज्य के विरुद्ध जर्मन सरकार के विद्रोह को हवा देने के प्रयास को उत्प्रेरित करने में मुख्य सलाहकार की भूमिका में रहे। लेकिन बाद में अपने समतुल्य विशिष्ट समकालीन, वीर सावरकर की तरह पूर्णतः कलाबाजी खाते हुए अपनी पिछली सभी गलतियों के लिए माफी माँग ली और उनके प्रति पूर्णतः भक्त बने रहने की प्रतिज्ञा की। हममें से कोई यह सहज ही पूछ सकता है कि संसद भवन में यदि वीर सावरकर का चित्र लटकाया जा सकता तो फिर हरदयाल का क्यों नहीं?

हरदयाल (Lala Har Dayal) की इस तथाकथित महानता के पीछे का सच क्या था? आखिरकार उनकी पोती और उसके पति द्वारा लिखी एक जीवनी ‘हरदयाल : द ग्रेट रिवाल्यूशनरी’, लेखक ई. जयवन्त एवं शुभ पॉल (रोली बुक्स) छपकर आई है, जिसमें कल्पना से तथ्यों को छानकर बाहर निकाला गया है।

हरदयाल (Lala Har Dayal) का जन्म दिल्ली में 14 अक्टूबर 1884 को भोती और गौरी दयाल माथुर, जो कि जिला न्यायालय में रीडर थे, के घर छठवें सन्तान के रूप में हुआ था। उनकी स्कूली शिक्षा कैम्ब्रिज मिशन स्कूल में सम्पन्न हुई थी। स्नातक की पढ़ाई उन्होंने सेंट स्टीफंस विद्यालय से पूरी की और उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर में दाखिला लिया। अंग्रेजी भाषा व साहित्य और इतिहास में एम.ए. की परीक्षा में उच्चतम अंक प्राप्त करते हुए उन्होंने विश्वविद्यालय के पूर्व स्थापित रिकार्डों को तोड़ा था। सेंट जांस कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में उन्हें छात्रवृत्ति भी प्रदान की गई। हिंदुस्तान में रहते हुए ईसाई मिशनरियों के निःस्वार्थ समर्पण भाव से कार्य और हिन्दू धर्म को व्यर्थ की धार्मिक औपचारिकताओं एवं अंधविश्वास के चंगुल से मुक्त कराने के आर्य समाज एवं ब्रह्मसमाज के प्रयासों से वे अत्यंत प्रभावित थे। वो लाला लाजपत राय के मुक्त प्रशंसक थे और भाई परमानंद के दोस्त।

सन् 1905 में हरदयाल (Lala Har Dayal) ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। इक्कीस वर्ष की आयु में उनकी शादी हो गई थी। वे उन दिनों कोई भी सरकारी नौकरी बड़े मजे से कर सकते थे, पर उस समय वे देशभक्ति के कीड़े से संक्रमित थे। ‘आई.सी.एस. भाड़ में जाए’ ऐसा कहते हुए वे उसकी परीक्षा में बैठे ही नहीं। वो दादा भाई नौरोजी और श्यामजी कृष्ण वर्मा के संपर्क में आए और स्वयं को स्वतंत्रता आंदोलन में झोंकने का निश्चय किया उन्होंने सरकार द्वारा दी गई वजीफे की राशि लौटा दी और ऑक्सफोर्ड से कूच कर गए।

हरदयाल (Lala Har Dayal) काफी कुछ एक योगी जैसे थे उन्होंने न तो जीवन में कभी शराब पी और न ही कभी धूम्रपान नहीं किया। वे शाकाहारी बन गए, यूरोपीय परिधानों का त्याग किया और धोती-कुर्ता धारण करने लगे। वे हमेशा नीचे जमीन पर सोते। उन्होंने विविध धर्मों का अनुशीलन किया और भगवान बुद्ध को अपना आदर्श माना। उन्होंने भाई परमानंद के साथ मिलकर एक नए धर्म के सूत्रपात की संभावना पर भी विचार-विमर्श किया, पर भाई परमानंद ने उन्हें ऐसा करने से यह कहते हुए रोक दिया कि मेरी दृष्टि से तो सभी प्रकार के धर्म इंसानियत के प्रति महज एक छलावा हैं और तुम इन छलावों में एक और छलावे की वृद्धि कर दोगे।

भारतीय दर्शन पर व्याख्यान देकर और लेख लिखकर हरदयाल (Lala Har Dayal) जैसे-तैसे अपनी जीविका चलाते रहे। उन्होंने मैडम कामा के ‘ वंदे-मातरम्’ और ‘तलवार का संपादन-कार्य किया। सन् 1911 में अमेरिका जाकर वहां के हॉवर्ड विश्वविद्यालय में उन्होंने ‘बौद्ध-धर्म’ की पढ़ाई की स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय ने उन्हें भारतीय दर्शन पढ़ाने के लिए आमन्त्रित किया था। उनकी परिवर्तनवादी दृष्टि-‘स्वच्छन्द प्यार की वकालत’ ने स्टैनफोर्ड में उनके कार्यकाल को परिसीमित कर दिया। ‘स्विस-बाला-फ्रायड हाउसवर्थ के साथ भी उनके चर्चे चले थे, जिससे उनके अमेरिकी और भारतीय प्रशंसक नाराज हो उठे थे। स्टैनफोर्ड में रहते हुए ही हरदयाल ने पश्चिमी तट के भारतीय मजदूरों से संपर्क साधा और वहां पहुंचकर उन्होंने गदर पार्टी की स्थापना में सहयोग दिया। जब उन लोगों ने 23 दिसम्बर सन् 1912 को दिल्ली में वायसराय हार्डिंग के ऊपर हुई जानलेवा हमले की कोशिश के बारे में सुना तो ‘स्कूल’ में अन्य भारतीयों के साथ हरदयाल ने भी इस मौके पर जश्न मनाते हुए भांगड़ा किया और वन्दे-मातरम् गाया।

गदर पार्टी की स्थापना 1 नवम्बर 1913 को हुई थी। हरदयाल (Lala Har Dayal) इसके मार्ग-दर्शक थे। वे अमेरिकी पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए और तत-पश्चात् छूटने पर उन्होंने स्विट्जरलैंड जाकर फ्रायड हाउसवर्थ के साथ रहने की सोची। पर इसके बदले में फ्रायड हाउसबर्थ खुद अमेरिका आ धमकी और हरदयाल के साथ रहने की बजाय उसने उनसे औपचारिक रूप से तलाक लेकर एक अन्य हिन्दुस्तानी सारंगधर दास के साथ शादी कर ली।

4 अगस्त 1914 को प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ गया युद्ध के आरम्भिक वर्षों में हरदयाल (Lala Har Dayal) ने जर्मनी और तुर्की में अपना समय ‘मुक्ति वाहिनी’ की सहायता से हिंदुस्तान पर हमला करने की योजना में बिताया। वे इतने न भोले थे कि यह मान बैठे कि जर्मन लोग हिंदुस्तान को एक स्वतंत्र देश के रूप में देखना चाहते हैं। लेकिन उन लोगों के टालमटोल रवैए को देखकर उनकी यह मान्यता टूट गई, पर इसमें वक्त काफी लग गया और तब से वे जर्मन और तुर्कों के तीखे आलोचक बन बैठे। बाद में उन्होंने यह कहा कि तुर्कों के पास दिमाग नहीं होते… बतौर एक राष्ट्र मुसलमान देशों के नेता के रूप में उन्हें मानना सर्वथा अनुपयुक्त होगा। जर्मन लोग, जिन्होंने उनकी गतिविधियों के लिए धन मुहैया करवाया था, के बारे में उन्होंने लिखा कि वे चरित्रहीन… लालची हैं यह सच है कि वे मेहनती और देशभक्त होते हैं और शायद यही उनके पास एकमात्र अच्छाई है। वे ब्रिटिश के यह कहते हुए प्रशंसक बन गए कि वे सच्चे लोग हैं, जिनके पास भारत में एक नैतिक और ऐतिहासिक मिशन है। ब्रिटिश सरकार ने उनके इन उद्गारों को हिन्दी में अनुवाद कराकर पूरे हिंदुस्तान में मुफ्त बंटवाया था।

हरदयाल (Lala Har Dayal) के पास किसी एक तटस्थ देश में जाने के अतिरिक्त कोई और विकल्प नहीं बचा था। इस हेतु उन्होंने स्वीडन को चुना। उसने स्वीडन की एक महिला ‘अगदा एरिक्सन’ से सम्बन्ध बनाए और मामूली-सी दिक्कतों के बाद स्वीडन देश का वीजा पाने में सफल रहे। वे सालों-साल स्वीडन में रहे और स्वीडिश भाषा के अलावा उन्होंने 13 और भाषाएं भी सीखीं। वे अगदा के साथ रहे, जो कि स्वयं को श्रीमती हरदयाल कहा करती थीं उन्होंने कई किताबें लिखीं, जिनमें हिंट्स ऑन सेल्फ कल्चर’ सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है और आज भी इसकी प्रतियाँ बिकती देखी जा सकती हैं उन्हें इंग्लैंड वापस आने की इजाजत मिल गई और ब्रिटिश सरकार ने उन्हें आखिरकार क्षमादान प्रदान करते हुए हिंदुस्तान जाने की इजाजत दे दी। लेकिन दरअसल यह ऐसा कभी नहीं हो पाया। अमेरिका में अपनी व्याख्यान यात्रा के दौरान 4 मार्च, 1939 को फिलाडेल्फिया में सोते हुए ही उनकी मृत्यु गई। उस समय वे केवल 54 साल के थे।

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