झारखंड: गिरिडीह में ग्रामीणों ने किया पुलिस पिकेट के निर्माण का विरोध, कहा- जान दे देंगे, जमीन नहीं देंगे

सभा में पुलिस पिकेट (Police Picket) के निर्माण पर विरोध दर्ज कराया गया और कहा गया कि इस इलाके में पुलिस पिकेट की कोई जरूरत नहीं है।

police picket

पुलिस पिकेट के निर्माण का विरोध करते ग्रामीण

ग्रामीणों ने सीएम हेमंत सोरेन को बताया है कि गिरिडीह के उपायुक्त के निर्देश पर जब तक पुलिस पिकेट (Police Picket) नहीं बन जाता है, तब तक गांव के विद्यालय को ही सीआरपीएफ पिकेट के रूप में तब्दील किया जाएगा। जिससे बच्चों की पढ़ाई में बाधा पैदा होगी और इस क्षेत्र में पुलिसिया जुल्म बढ़ेगा।

गिरिडीह: नक्सलियों के खिलाफ लगातार अभियान जारी है। इस बीच खबर सामने आई है कि ग्रामीणों ने पुलिस पिकेट (Police Picket) के निर्माण का विरोध जताया है। मांझी हडाम के नेतृत्व में ग्राम सभा की गई है, जिसमें कहा गया है कि जान दे देंगे, लेकिन जमीन नहीं देंगे। इसी के साथ ग्रामीण भारी संख्या में हरवे हथियार के साथ जमा हुए हैं।

मधुबन थाना क्षेत्र के टेसाफूली गांव में मांझी हडाम के नेतृत्व में फुटबॉल मैदान में एक ग्राम सभा हुई। इस ग्राम सभा में दर्जनों महिला और पुरुष हरवे हथियार के साथ जमा हुए।

सभा में पुलिस पिकेट (Police Picket) के निर्माण पर विरोध दर्ज कराया गया और कहा गया कि इस इलाके में पुलिस पिकेट की कोई जरूरत नहीं है, गांव के सामने ही लटकटो पुलिस पिकेट और मधुबन थाना और पारसनाथ पर्वत में सीआरपीएफ कैंप है। सभा में ये भी कहा गया कि सीएम को पत्र के माध्यम से इस मामले से अवगत कराया जाएगा।

ग्रामीणों ने इस मामले में सीएम हेमन्त सोरेन के नाम पर एक आवेदन तैयार किया है। इस आवेदन में कहा गया है कि 28 नवंबर को दैनिक जागरण अखबार के माध्यम से ग्रामीणों को पता चला है कि टेसाफुली गांव में सीआरपीएफ पुलिस पिकेट का निर्माण संभावित है। जिस जगह पर पिकेट बनाने के लिए सीआरपीएफ वालों ने सर्वे किया है वह जमीन रैयती प्लॉट है।

पत्र के माध्यम से ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को बताया है कि गिरिडीह के उपायुक्त के निर्देश पर जब तक पुलिस पिकेट नहीं बन जाता है, तब तक गांव के विद्यालय को ही सीआरपीएफ पिकेट के रूप में तब्दील किया जाएगा। जिससे बच्चों की पढ़ाई में बाधा पैदा होगी और इस क्षेत्र में पुलिसिया जुल्म बढ़ेगा।

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अब ग्रामीणों ने सीएम से गुहार लगाई है कि टेसा फूली में संभावित सीआरपीएफ कैंप का निर्माण रोका जाए। टेसाफुली गांव की रहने वाली संगीता देवी का कहना है कि हमारा गांव पहाड़ और जंगल के बीच में है, अगर हम लोग जंगल में लकड़ी चुनने या मवेशी को चराने जाते हैं और उस समय पुलिस जंगल में मिल जाती है तो वो हमसे और हमारी बहू बेटियों से अभद्र व्यवहार करती है। यही नहीं, कई बार वह हमें थाना ले जाने की धमकी देती है और मारपीट करती है। अगर हमारे गांव में सीआरपीएफ का कैंप बन जाता है तो पुलिस ग्रामीणों के साथ अत्याचार करेंगे, हमें यही डर सता रहा है।

इस मामले में ग्रामीण सॉरी देवी और सुकरमुनि देवी का कहना है कि जिस जगह सीआरपीएफ का कैंप संभावित है, वह रैयती जमीन है, इसमें हमारे मवेशी चरते हैं और बहू-बेटियां शौच करने जाती हैं। इस जमीन के अगल-बगल हमारे खेत-खलियान हैं। इसलिए हमारे दादा की इस जमीन पर हम सीआरपीएफ कैंप का निर्माण नहीं होने देंगे।

इसके अलावा ग्रामीण अजित सोरेन, सुनील सोरेन, चुड़का टुड्डू ने कहा कि इस जमीन पर हमारा हक है और हम इस जमीन के बदले जान दे देंगे, लेकिन सीआरपीएफ कैंप का निर्माण नहीं होने देंगे।

ग्रामीण निर्मल किस्कू ने कहा कि पहले सरकार द्वारा यह बताया जा रहा था कि इस क्षेत्र में अस्पताल का निर्माण करवाया जाएगा। इस खबर पर हमने खुशी जताई थी, लेकिन अचानक अखबार के माध्यम से यह पता चला कि इस जमीन पर सीआरपीएफ का कैंप निर्माण होगा, तब से हम ग्रामीण परेशान हैं।

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