International Nurses Day 2021: 8 साल से नक्सल प्रभावित इलाके में लोगों का इलाज कर रहीं ये नर्स, हर रोज तय करती हैं 40 किलोमीटर का पैदल सफर

आज इंटरनेशनल नर्सेस डे है। नर्सेस के योगदान (Contribution) को याद करने और उनके प्रति सम्‍मान प्रकट करने के लिए हर साल 12 मई को इंटरनेशनल नर्सेस डे मनाया जाता है।

International Nurses Day 2021

फ्लोरेंस नाइटिंगेल (Florence Nightingale) के जन्मदिन को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस (International Nurses Day 2021) के तौर पर मनाया जाता है।

International Nurses Day 2021: आज इंटरनेशनल नर्सेस डे है। नर्सेस के योगदान (Contribution) को याद करने और उनके प्रति सम्‍मान प्रकट करने के लिए हर साल 12 मई को इंटरनेशनल नर्सेस डे मनाया जाता है। जनवरी, 1974 में इसे अंतरराष्ट्रीय दिवस के तौर पर मनाने की घोषणा हुई।

आधुनिक नर्सिंग की संस्थापक फ्लोरेंस नाइटिंगेल (Florence Nightingale) के जन्मदिन को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस (International Nurses Day 2021) के तौर पर मनाया जाता है। नर्सों के साहस और उनके सराहनीय योगदान, कार्यों के लिए सम्‍मान जताने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। आज हम एक ऐसी ही नर्स के बारे में बता रहे हैं, जो बेहद मुश्किल परिस्थितियों में अपना कर्तव्य इमानदारी से निभा रही हैं।

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छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के धुर नक्सल प्रभावित जिला नारायणपुर के ओरछा लाल आतंक का गढ़ है। यहां लोग मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। इस इलाके में न मोबाइल कनेक्टिविटी है और न ही सड़कें हैं।

ऐसे इलाके में नर्स कविता पात्र लोगों के लिए ‘डॉक्टर दीदी’ बन गई हैं। जाटलूर में पदस्थ कविता ANM हैं और पिछले 8 सालों से यहां के ग्रामीण इलाकों में अपनी सेवाएं दे रही हैं। इस काम में उनका साथ पुरुष स्वास्थ्य कर्मी भीमराव सोढ़ी देते हैं।

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इस इलाके में नक्सलियों ने जगह-जगह IED बिछा रखी है, तो कई जगहों पर स्पाइक्स होल भी बने हुए हैं। ऐसे में पैदल सफर करते हुए रोज इन्हें पार करना जान जोखिम में ही डालना है। ब्लॉक के लंका गांव तक पहुंचने के लिए दंतेवाड़ा और बीजापुर जिलों से होकर जाना पड़ता है। इसकी दूरी करीब 130 किमी है, लेकिन यहां के ग्रामीण पूरी तरह से कविता पर ही निर्भर हैं।

जाटलूर से वह गांवों के लिए निकलती हैं। ऐसे में रोजाना उन्हें 35 से 40 किमी का सफर पैदल ही तय करना पड़ता है। इस दौरान ग्रामीणों का इलाज करते-करते अक्सर शाम हो जाती है या पैदल लौटते हुए थक जाते हैं। ऐसे में नक्सलियों के इसी इलाके के जंगल उनके लिए आशियाना बनते हैं। ये एक बार नहीं, बल्कि कई बार हो चुका है। इन सबके बीच नक्सलियों के साथ-साथ जंगली जानवरों का डर भी हमेशा बना रहता है।

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नारायणपुर की रहने वाली 30 साल की कविता जाटलूर सहित पदमेटा, रासमेटा, कारंगुल, मुरुमवाड़ा, बोटेर, डूडी मरका और लंका के 10 हजार से अधिक ग्रामीणों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचा रही हैं।

इन गांवों तक पहुंचने के लिए कविता को नदी-नाले, घना जंगल, पहाड़ी और पथरीले रास्तों को पार करना पड़ता है। यहां कोई स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं है। ऐसे में गर्भवती महिलाओं की डिलीवरी, बच्चों को टीका और बीमार को दवाई देने का भी कविता ही करती हैं।

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कविता पात्र बताती हैं, “नक्सलगढ़ के जिन 8 गांवों की जिम्मेदारी मुझ पर है, वहां ग्रामीणों का प्यार भी मुझे भरपूर मिलता है। इलाके के ग्रामीण मुझे प्यार से डॉक्टर दीदी कह कर पुकारते हैं। ग्रामीणों के इसी प्यार की वजह से मैं पिछले 8 सालों से इनकी सेवा में लगी हूं।”

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