
अंतर्राष्ट्रीय स्तर के जापानी फिल्म निर्देशक अकीरा कुरुसोवा ने 1980 के दशक में कहा था कि भारतीय सिनेमा, खासकर हिंदी सिनेमा, कभी मर नहीं सकता। आज कुरुसोवा का यह वक्यत्वय सौ फीसदी सही साबित हो रहा है। केवल 15 हजार रुपए की लागत से बनी पहली फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ से शुरू हुआ हिंदी सिनेमा आज दुनिया का सबसे बड़ा सिनेमा उद्योग बन चुका है। आज एक बड़े बजट की फिल्म बनाने पर 200-300 करोड़ रुपए या इससे भी अधिक खर्च किये जा रहे हैं। हिंदी फिल्म उद्योग का कारोबार 3 अरब डॉलर से भी अधिक का हो चुका है।
भारत में सिनेमा की शुरुआत का श्रेय दादा साहब फाल्के (Dadasaheb Phalke) को जाता है। उन्होंने 1912 में ‘राजा हरिश्चंद्र’ फिल्म बनाकर भारत में सिनेमा का श्रीगणेश किया। कुल 3700 फीट लंबी यह फिल्म 3 मई, 1913 को बंबई के कोरोनेशन सिनेमाघर में प्रदर्शित हुई तो वहां दर्शकों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी।
जीवन परिचय
दादा साहब फाल्के (Dadasaheb Phalke) का असली नाम धुंधिराज गोविन्द फाल्के था। उनका जन्म महाराष्ट्र के नासिक के निकट त्रयम्बकेश्वर में 30 अप्रैल 1870 में हुआ था। उनके पिता दाजी शास्त्री फाल्के संस्कृत के विद्धान थे। कुछ समय के बाद बेहतर जिंदगी की तलाश में उनका परिवार मुंबई आ गया। बचपन के दिनों से ही दादा साहब फाल्के का रूझान कला की ओर था और वह इसी क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते थे। साल 1885 में उन्होंने जे.जे. कॉलेज ऑफ आर्ट में दाखिला ले लिया। उन्होंने बड़ोदा के मशहूर कलाभवन में भी कला की शिक्षा हासिल की। इसके बाद उन्होंने नाटक कंपनी में चित्रकार के रूप में काम किया। साल 1903 में वह पुरात्तव विभाग में फोटोग्राफर के तौर पर काम करने लगे।
लेकिन दादा साहब फाल्के का मन फोटोग्राफी में नहीं लगा और उन्होंने ठाना कि वो बतौर फिल्मकार ही अपना करियर बनायेंगे। अपने इस सपने को साकार करने के लिए साल 1922 में वो फिल्म निर्माण की बारीकियां सीखने के लिए लंदन चले गए। फिल्म निर्माण की ट्रेनिंग लेने के बाद जब उनकी वतन वापसी हुई तो उनके साथ फिल्मों के निर्माण में उपयोगी कई मशीनें भी थीं, जिन्हें उन्होंने लंदन में ही खरीदा था। मुंबई आने के बाद दादा साहब फाल्के ने ‘फाल्के फिल्म कंपनी’ की स्थापना की और उसके बैनर तले ‘राजा हरिश्चंद्र’ नामक फिल्म बनाने का निश्चय किया।
हिंदी सिनेमा की रखी नींव
दादा साहेब फाल्के की फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ के बाद से ही देश में फीचर फिल्मों का चलन लगातार बढ़ने लगा। सिनेमा में उनके पैशन को देखते हुए दादा साहेब फाल्के (Dadasaheb Phalke) को इंग्लैंड से भी कई ऑफर मिले, लेकिन उन्होने भारत में रहकर फिल्मों का निर्माण करना चुना। दादा साहेब की राजा हरिश्चन्द्र में उन्होने ही नायक यानी हरिश्चन्द्र की भूमिका निभाई थी, लेकिन उस दौर में उन्हे फिल्म में काम करने के लिए कोई महिला नहीं मिली, इसका नतीजा यह हुआ कि फिल्म में सभी महिला किरदार पुरुषों द्वारा ही निभाए गए।
फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र ‘ की अपार सफलता के बाद दादा साहब फाल्के (Dadasaheb Phalke) नासिक आ गये और फिल्म ‘मोहिनी भस्मासुर’ का बनाने लगे। फिल्म के निर्माण में लगभग तीन महीने का समय लगा। फिल्म ‘मोहिनी भस्मासुर’ का भारतीय सिनेमा के इतिहास में काफी महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इसी फिल्म से दुर्गा गोखले और कमला गोखले जैसी अभिनेत्रियों को फिल्म जगत की पहली महिला अभिनेत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ था। यह फिल्म करीब 3245 फीट लंबी थी जिसमें दादा साहेब फाल्के ने पहली बार ट्रिक फोटोग्राफी का प्रयोग किया था। उनकी अगली फिल्म ‘सत्यवान-सावित्री’ साल 1914 में प्रदर्शित हुयी। इस फिल्म की अपार सफलता के बाद दादा साहब फाल्के की ख्याति पूरे देश में फैल गयी और दर्शक उनकी फिल्म देखने के लिये उमड़ने लगे।
दादा साहेब फाल्के (Dadasaheb Phalke) ने अपने फिल्मी करियर में कुल 125 फिल्मों का निर्माण किया, इसमें फुल फीचर लेंथ और शॉर्ट फिल्म दोनों शामिल हैं। साल 1937 में प्रदर्शित फिल्म ‘गंगावतारम’ दादा साहब फाल्के के सिने करियर की अंतिम फिल्म साबित हुयी। फिल्म टिकट खिड़की पर औंधे मुंह गिरी जिससे दादा साहब फाल्के को गहरा सदमा लगा और उन्होंने सदा के लिये फिल्म निर्माण छोड़ दिया।
दादा साहेब फाल्के पुरस्कार
सिनेमा के क्षेत्र में दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के (Dadasaheb Phalke) के नाम पर ही दादा साहेब फाल्के पुरस्कार के नाम से दिया जाता है। इस पुरस्कार को राष्ट्रिय फिल्म पुरस्कार समारोह में दिया जाता है। इस समारोह का आयोजन सूचना और प्रसारण मंत्रालय की तरफ से किया जाता है। दादा साहेब फाल्के पुरस्कार भारतीय सिनेमा के विकास में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है। इस प्रतिष्ठित पुरस्कार की शुरुआत 1969 में हुई थी। साल 1970 में अभिनेत्री देविका रानी फिल्म जगत का यह सर्वोंच्च सम्मान पाने वाली पहली कलाकार थी।
दादा साहब का निधन
करीब तीन दशकों तक अपनी फिल्मों के जरिये दर्शको को मंत्रमुग्ध करने वाले महान फिल्मकार दादा साहब फाल्के (Dadasaheb Phalke) बड़ी ही खामोशी के साथ 16 फरवरी 1944 को नासिक में इस दुनिया से सदा के लिये विदा हो गये।
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