Beating Retreat Ceremony: राष्ट्रपति भवन की सजावट, रंग-बिरंगे ऊंट, बैंड की धुन… सब कुछ होता है अद्भुत

Beating Retreat Ceremony

Beating Retreat Ceremony

हर साल गणतंत्र दिवस (Republic Day) मनाए जाने के बाद लोगों को बीटिंग रीट्रिट सेरेमनी (Beating Retreat Ceremony) का इंतजार रहता है। राजपथ पर 26 जनवरी को 71 वें गणतंत्र दिवस मनाए जाने के बाद अब अधिकतर लोग इस सेरेमनी का इंतजार कर रहे हैं। 29 जनवरी की शाम विजय चौक पर बीटिंग रीट्रिट समारोह का आयोजन होगा।

Beating Retreat Ceremony
राष्ट्रपति भवन की सजावट और बीटिंग रिट्रीट का हिस्सा बनने के लिए हजारों की संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं।

बीटिंग रीट्रिट सेरेमनी (Beating Retreat Ceremony) के लिए राष्ट्रपति भवन, नार्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक और संसद भवन को आकर्षक लाइटों से सजाया गया है। राष्ट्रपति भवन की सजावट और बीटिंग रिट्रीट का हिस्सा बनने के लिए हजारों की संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं।
यहां हम आपको बता रहे हैं बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी के बारे में-

क्‍या है बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी

बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी (Beating Retreat Ceremony) को मुख्य रूप से गणतंत्र दिवस का समापन समारोह कहा जाता है। यह सेना का अपने बैरक में लौटने का प्रतीक भी माना जाता है। बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी अंग्रेजों के समय से आयोजित होती आ रही है। यह दिल्ली के विजय चौक पर आयोजित की जाती है। इस मौके पर राष्ट्रपति भवन को रंग बिरंगी लाइटों से सजाया जाता है। यह सजावट अद्भुत होती है। परेड और बीटिंग रिट्रीट में शामिल किए जाने वाले इन ऊंटों का श्रृंगार दुल्हन की तरह किया जाता है। पांव से लेकर गर्दन और पीठ पर इनको सजाने के लिए सामग्रियां ररखी जाती है। उसके बाद इनके ऊपर बीएसएफ के जवान भी मूंछों पर ताव देते हुए और शाही वेश में बैठते हैं।

कार्यक्रम में ड्रमर बजाते हैं गांधीजी की प्रिय धुन

बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी (Beating Retreat Ceremony) के मुख्य अतिथि राष्ट्रपति होते हैं। इसका मुख्य आकर्षण तीनों सेनाओं का एक साथ मिलकर सामुहिक बैंड का कार्यक्रम प्रस्तुत करना होता है। परेड भी देखने लायक होती है। इस कार्यक्रम में ड्रमर ‘एबाइडिड विद मी’ धुन बजाते हैं जो महात्मा गांधी के सबसे प्रिय धुनों में से एक थी। इसके बाद रिट्रीट का बिगुल बजता है। इस दौरान बैंड मास्‍टर राष्‍ट्रपति के नजदीक जाते हैं और बैंड वापस ले जाने की अनुमति मांगते हैं। इसी के बाद यह माना जाता है कि समापन समारोह पूरा हो गया है। बैंड मार्च वापस जाते समय ‘सारे जहां से अच्‍छा गाने’ की धुन के साथ कार्यक्रम का समापन होता है। अंत में राष्‍ट्रगान गाया जाता है और इस प्रकार बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी (Beating Retreat Ceremony) के बाद गणतंत्र दिवस के आयोजन का औपचारिक समापन होता है।

राजपथ के बाद बीटिंग रिट्रीट में ऊंटों का दस्ता लेता है हिस्सा

26 जनवरी की परेड में राजपथ पर अपनी मस्त धुनों पर चलने वाले ऊंटों का दस्ता तीन दिन बाद यानि 29 जनवरी को होने वाली बीटिंग रिट्रीट सेरेमनी (Beating Retreat Ceremony) का भी हिस्सा बनते हैं। इस दौरान ऊंटों का यह दल रायसीना हिल पर उत्तर और दक्षिण ब्लॉक की प्राचीर पर खड़े दिखाई पड़ते हैं। दुनिया का यह इकलौता ऊंट दस्ता है जो न केवल बैंड के साथ राजपथ पर प्रदर्शन करता है बल्कि सरहद पर रखवाली भी करता है।

40 सालों से ऊंट दस्ता बढ़ा रहा है गणतंत्र दिवस की रौनक

ऊंटों के रंग-बिरंगे दस्ते का कोई जवाब नहीं है। करीब 40 सालों से यह ऊंट दस्ता परेड में शामिल होकर गणतंत्र दिवस की रौनक बढ़ा रहा है। पहली बार साल 1976 में 90 ऊंटों की टुकड़ी गणतंत्र दिवस का हिस्सा बनी थी, जिसमें 54 ऊंट सैनिकों के साथ और शेष बैंड के जवानों के साथ थे। बीएसएफ (BSF) देश का अकेला ऐसा फोर्स है, जिसके पास अभियानों और समारोह दोनों के लिए सुसज्जित ऊंटों का दल है। शाही और भव्य अंदाज में सजे ‘रेगिस्तान के जहाज’ ऊंट को सीमा सुरक्षा के लिए तैनात किया जाता है और पहली बार यह ऊंट दस्ता 1976 में इस राष्ट्रीय पर्व की झांकी का हिस्सा बना था। इससे पहले साल 1950 से इसकी जगह सेना का ऐसा ही एक दस्ता गणतंत्र दिवस परेड का हिस्सा था।

रंग-बिरंगे पोषाक समारोह में लगाते हैं चार चांद

चूंकि इन ऊंटों के दस्ते का प्रयोग अलग-अलग समारोहों के मौके पर भी किया जाता है इस वजह से इनके पास ड्रेस का भी खजाना होता है। अलग-अलग मौकों के लिए इनके पास लगभग 65 ड्रेसें मौजूद हैं। विदेशी राजनयिकों के आने पर ये उस तरह की ड्रेस पहनते हैं और गणतंत्र दिवस जैसे समारोह के लिए अलग ड्रेस पहनते हैं। और तो और इन ऊंटों पर बैठने वाले जवान भी खास होते हैं। इनकी ऊंचाई 6 फुट या उससे अधिक होती है। सीएसएफ ऐसे जवानों का चयन इस तरह के मौकों के लिेए करती है। ये जवान ऐसी परेड के मौकों पर दिख जाते हैं। इस ऊंट बटालियन की एक खास बात और है। इन ऊंटों पर बीएसएफ के जो जवान बिठाए जाते हैं उनकी मूंछें भी सामान्य नहीं होती है। सभी की मूंछें ऊपर की ओर उठी हुई होती है जिससे इनको पहचाना जाता है। इनके गालों पर बढ़ी मूंछों को गलमुच्छा भी कहा जाता है।

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