BirdMan Death Anniversary: परिंदों से बात करने वाले डॉ. सलीम का चिड़ियों से था अनमोल रिश्ता

कुमाऊं के तराई क्षेत्र से डॉ. अली ने बया पक्षी की एक ऐसी प्रजाति ढूंढ़ निकाली जो लुप्त घोषित हो चुकी थी।

Salim Ali, BirdMan Salim ali Death Anniversary: चिड़ियों की भाषा जानते थे डॉ. सलीम

BirdMan Death Anniversary: चिड़ियों की भाषा जानते थे डॉ. सलीम

Bird Man Death Anniversary: भारत अपनी बेमिसाल प्रकृति, उत्कृष्ट वनस्पति और जीव जंतुओं के चलते दुनिया भर के लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करता है। चाहे दक्षिण के वेस्टर्न घाट हों या फिर बंगाल के सुंदरवन, यहां ऐसा बहुत कुछ है जो सबको मंत्र मुग्ध कर देगा है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक वन्य जीवों के मामले में भारत का किसी भी देश से कोई मुकाबला नहीं है। भारत में रहने वाले इन अनमोल जीव-जंतुओं की विरासत को संजोया डॉ. सलीम अली ने। आज इनकी पुण्यतिथि है। भारतीय वन्य जीवन पर डॉ. सलीम अली के योगदान अतुलनीय है। ‘द बर्ड मैन ऑफ इंडिया’ के नाम से सम्पूर्ण विश्व में मशहूर सलीम अली ने वो किया जिसकी कल्पना शायद हम और आप कभी न कर पाएं।

डॉ. सलीम अली ने अपना पूरा जीवन पक्षियों के लिए समर्पित कर दिया। ऐसा माना जाता है कि डॉ. सलीम मोइज़ुद्दीन अब्दुल अली परिंदों की ज़ुबान समझते थे। 1976 में पद्म विभूषण से सम्मानित डॉ. सलीम अली भारत के ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत भर में व्यवस्थित रूप से पक्षियों का सर्वेक्षण किया और पक्षियों पर लिखी उनकी किताबों ने भारत में पक्षी-विज्ञान के विकास में काफी मदद की। चील, बाज, हॉर्नबिल, चमगादड़, मैना, गौरैया, तोता, जंगली मुर्गी इन सब पर सलीम अली ने काम किया और उनके बारे में वो जानकारियां निकालीं जो कई मायनों में इंसान को हैरत में डाल दें।

इन सब के अलावा एक बात और जो सलीम ने बताई वो ये कि हर पक्षी अपने एक विशेष परिवेश में रहता है और अगर हम उसके परिवेश के साथ छेड़छाड़ करते हैं तो न सिर्फ प्रकृति में असंतुलन पैदा होता है बल्कि वो पक्षी भी हमें छोड़ कर दूर, बहुत दूर चले जाते हैं और फिर वापस नहीं आते हैं। उन्होंने अपना सारा शोध और अध्ययन इसी बिंदु को ध्यान में रखकर किया और बताया कि भले ही पक्षी एक दूसरे से मिलते जुलते लगें, मगर वो हर तरह से एक दूसरे से अलग हैं। सलीम अली का जन्म बॉम्बे के एक सुलेमानी बोहरा मुस्लिम परिवार में 12 नवम्बर, 1896 को हुआ था। वे अपने माता-पिता के सबसे छोटे और नौंवे बच्चे थे।

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जब वे एक साल के थे तब उनके पिता मोइज़ुद्दीन चल बसे और जब वे तीन साल के हुए तब उनकी माता ज़ीनत-उन-निस्सा की भी मृत्यु हो गई। सलीम और उनके भाई-बहनों की देख-रेख उनके मामा अमिरुद्दीन तैय्याबजी और चाची हमिदा द्वारा मुंबई की खेतवाड़ी इलाके में हुआ। सलीम अली ने प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज से ग्रहण की। पर कॉलेज का पहला साल ही मुश्किलों भरा था। जिसके बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और परिवार के व्यवसाय की देख-रेख के लिए टेवोय, बर्मा (टेनासेरिम) चले गए। यह स्थान सलीम के रुचि में सहायक सिद्ध हुआ क्योंकि यहां पर घने जंगले थे, जहां उनका मन तरह-तरह के परिन्दों को देखने में लगता।

लगभग 7 साल बाद सलीम अली मुंबई वापस लौट गए और पक्षी शास्त्री विषय में प्रशिक्षण लिया और बॉम्बे के ‘नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी’ के म्यूज़ियम में गाइड के पद पर नियुक्त हो गये। बहुत समय बाद इस कार्य में उनका मन नहीं लगा तो अवकास लेकर जर्मनी जाकर पक्षी विज्ञान में उच्च प्रशिक्षण प्राप्त किया। जब एक साल बाद वह भारत लौटे, तब पता चला कि इनका पद ख़त्म हो चुका था। सलीम अली की पत्नी के पास कुछ रुपये थे। जिससे उन्होंने बॉम्बे बन्दरगाह के पास किहिम नामक स्थान पर एक छोटा सा मकान ले लिया। उन्होंने पक्षियों की अलग-अलग प्रजातियों के बारे में अध्ययन के लिए देश के कई भागों और जंगलों का दौरा किया।

कुमाऊं के तराई क्षेत्र से डॉ. अली ने बया पक्षी की एक ऐसी प्रजाति ढूंढ़ निकाली जो लुप्त घोषित हो चुकी थी। साइबेरियाई सारसों की एक-एक आदत की उनको अच्छी तरह पहचान थी। उन्होंने ही अपने अध्ययन के माध्यम से बताया था कि साइबेरियन सारस मांसाहारी नहीं होते, बल्कि वे पानी के किनारे पर जमी काई खाते हैं। वे पक्षियों के साथ दोस्ताना व्यवहार करते थे और उन्हें बिना कष्ट पहुंचाए पकड़ने के 100 से भी ज़्यादा तरीक़े उनके पास थे। पक्षियों को पकड़ने के लिए डॉ. सलीम अली ने प्रसिद्ध ‘गोंग एंड फायर’ और ‘डेक्कन विधि’ की खोज की। जिन्हें आज भी पक्षी विज्ञानियों द्वारा प्रयोग किया जाता है।

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सन 1930 में सलीम अली ने अपने अनुसंधान और अध्ययन पर आधारित लेख लिखे। इन लेखों के माध्यम से लोगों को उनके कार्यों के बारे में पता चला और उन्हें एक ‘पक्षी शास्त्री’ के रूप में पहचान मिली। लेखों के साथ-साथ सलीम अली ने कुछ पुस्तकें भी लिखीं। वे जगह-जगह जाकर पक्षियों के बारे में जानकारियां इकठ्ठी करते थे। उन्होंने इन जानकारियों के आधार पर एक पुस्तक तैयार की जिसका नाम था ‘द बुक ऑफ़ इंडियन बर्ड्स’। सन् 1941 में प्रकाशित इस पुस्तक ने रिकॉर्ड बिक्री की। इसके बाद उन्होंने एक दूसरी पुस्तक ‘हैण्डबुक ऑफ़ द बर्ड्स ऑफ़ इंडिया एण्ड पाकिस्तान’ भी लिखी, जिसमें सभी प्रकार के पक्षियों, उनके गुणों-अवगुणों, प्रवासी आदतों आदि से संबंधित अनेक रोचक और महत्वपूर्ण जानकारियां दी गई थीं।

डॉ. सलीम अली ने एक और पुस्तक ‘द फाल ऑफ़ ए स्पैरो’ भी लिखी, जिसमें उन्होंने अपने जीवन से जुड़ी कई घटनाओं का ज़िक्र किया है। डॉ. सलीम अली ने प्रकृति विज्ञान और पक्षी विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस दिशा में उनके कार्यों के लिए उन्हें कई प्रतिष्ठित सम्मान दिए गए। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और दिल्ली विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि दी। उनके महत्त्वपूर्ण कार्यों के लिए उन्हें भारत सरकार ने भी सन 1958 में पद्म भूषण और 1976 में पद्म विभूषण जैसे महत्वपूर्ण नागरिक सम्मानों से नवाजा।

20 जून, 1987 को 91 साल की उम्र में डॉ. सलीम अली का निधन मुंबई में हुआ। डॉ. सलीम अली भारत में एक ‘पक्षी अध्ययन व शोध केन्द्र’ की स्थापना करना चाहते थे। इनके महत्वपूर्ण कार्यों और प्रकृति विज्ञान और पक्षी विज्ञान के क्षेत्र में अहम् योगदान के मद्देनजर ‘बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी’ और ‘पर्यावरण एवं वन मंत्रालय’ द्वारा कोयम्बटूर के निकट ‘अनाइकट्टी’ नामक स्थान पर ‘सलीम अली पक्षी विज्ञान एवं प्राकृतिक इतिहास केन्द्र’ स्थापित किया गया।

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