Birth Anniversary: कबीर और नजीर की परंपरा का अलहदा शायर इब्ने इंशा

अपने अलबेलापन वाले मिजाज के लिए इंशा जी मशहूर थे। उनकी लिखी ‘उर्दू की आखिरी किताब’ व्यंग्य-साहित्य का बेजोड़ नमूना है।

Ibn-e-insha, urdu poet, famous shayar, top shayari, urdu ghazal, best shayari, kavya charcha, amar ujala, ibn e insha books, ibn e insha family, ibn e insha ka safarnama in urdu, ibn e insha quotes, ibn e insha rekht, ibn e insha funny poetr, ibn-e-insha stories, ibn e insha ke mazameen pdf, sirf sach, sirfsach.in

इब्ने इंशा अपने अलबेलापन के लिए मशहूर थे।

उर्दू के करिश्माई सूफी शायर इब्ने इंशा का आज जन्मदिन है। इब्ने इंशा अपने आप में एक अलहदा शायर और कवि थे जो ‘कबीर’ और ‘नजीर’ की परम्परा से आते हैं। उनके कलाम में आप स्वयं को तलाश सकते हैं। उनकी नज्मों और कविताओं में सादगी झलकती रहती है। यही कारण है कि जो भी उन्हें पढ़ता है, खिंचा चला आता है। अपने अंदाज-ए-बयां के लिए ही इंशा मशहूर हुए। इंशा ख़ामोशी को ज़ुबान देने वाले शायर थे। अपनी खास किस्म के व्यंग्य से आवाम के हर मसले को हज़ारों दिलों तक पहुंचा देते थे। गुलाम अली और जगजीत ने तो इनकी शायरी और गजलों को खूब गाया है। इब्ने इंशा का असली नाम शेर मुहम्मद खान था।

इनका जन्म पंजाब के जालंधर जिले की फिल्लौर तहसील में 15 जून, 1927 को हुआ था। उनके पिता राजस्थान से थे। उन्होंने 1946 में पंजाब यूनिवर्सिटी से बीए और 1953 में कराची यूनिवर्सिटी से एमए की पढ़ाई की। 12-15 साल की उम्र से ही उन्होंने खुद को इंशा जी कहलवाना और इब्ने इंशा लिखना शुरू कर दिया था। लुधियाना में उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई और विभाजन से पहले वो ऑल इंडिया रेडियो में कार्यरत रहे। विभाजन के बाद वे कराची चले गए और पकिस्तान रेडियो में मुलाजिम हो गए। लिखने-पढ़ने और किताबों से उनके इश्क ने उन्हें पकिस्तान के कौमी किताब-घर का डायरेक्टर बनाया और यूनेस्को में भी उन्होंने कुछ अरसा अपने सेवाएं दीं।

अपने अलबेलापन वाले मिजाज के लिए इंशा जी मशहूर थे। उनकी लिखी ‘उर्दू की आखिरी किताब’ व्यंग्य-साहित्य का बेजोड़ नमूना है। इसे भारत में अब्दुल बिस्मिल्लाह ने अनुमोदित किया है। वो इस किताब के बारे में लिखते हैं- ‘इंशा जी के व्यंग्य में जिन बातों को लेकर चिढ़ दिखाई देती है, वो छोटी-मोटी चीजें नहीं हैं। मसलन विभाजन, हिन्दुस्तान-पकिस्तान की अवधारणा, मुस्लिम बादशाहों का शासन, आजादी का छद्म, शिक्षा व्यवस्था, थोथी नैतिकता, भ्रष्ट राजनीति आदि।

सुनें इब्ने इंशा की गजल:

अपनी सारी चिढ़ को वो बहुत गहन और गंभीर ढंग से व्यंग्य में ढालते हैं। ताकि पाठकों को लज्जत भी मिले और लेखक की चिढ़ में वो खुद को शामिल महसूस करें। जो इनके नाम से परिचित नहीं, उन्हें बता दूं कि ‘कल चौदहवीं की रात थी, शब भर रहा चर्चा तेरा…’ इन्हीं की क़लम से है, जिसे ग़ुलाम अली ने गाकर अमर कर दिया। जगजीत सिंह ने भी गाया है इन्हें, ख़ासतौर पर ‘हुज़ूर आपका भी एहतराम करता चलूं, इधर से गुज़रा था सोचा सलाम करता चलूं…’। 11 जून, 1978 को लंदन में इनका निधन हो गया। उर्दू रचनाओं की जब भी बात होगी इब्ने इंशा हमेशा याद किए जाएंगे।

यह भी पढ़ें: देशभक्ति गीतों के उस्ताद थे प्रेम धवन, इनकी लोरी आज भी हर जुबान पर मौजूद

Hindi News के लिए हमारे साथ फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब पर जुड़ें और डाउनलोड करें Hindi News App

यह भी पढ़ें