छोटे नक्सली बड़ा काम! प्रशासन के लिए सिरदर्द हैं हर जिले में मौजूद बाल नक्सली दस्ता

एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि झारखंड के लगभग हर जिले में नक्सलियों का एक बाल दस्ता मौजूद है।

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नक्सली ज्यादातर 10-16 साल की उम्र के बच्चों को संगठन में बहला कर शामिल करते हैं। सांकेतिक तस्वीर। फोटो सोर्स- यूट्यूब वीडियो स्क्रीन शॉट।

निश्चित तौर से यह खबर प्रशासन और सरकार को बेचैन करने वाली है। नक्सलियों से लोहा ले रही पुलिस के लिए बाल नक्सली (Naxali) चुनौती बन सकते हैं। जी हां, इस संबध में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि झारखंड के लगभग हर जिले में नक्सलियों का एक बाल दस्ता मौजूद है।

वैसे तो खूंखार नक्सली (Naxali) इन नक्सलियों को हथियार चलाने की ट्रेनिंग देते ही हैं लेकिन अब जो खुलासा हुआ है उससे पता चला है कि यह नक्सली (Naxali) कई और दूसरे काम भी इन बाल नक्सलियों से लेते हैं। ऐसे ही 2 बाल नक्सलियों ने इस बारे में बड़ा खुलासा किया है। इन छोटे नक्सलियों के बारे में हम आपको विस्तार से बताएंगे लेकिन पहले हम आपको बताते हैं कि कैसे यह छोटे नक्सली संगठन के लिए बड़ा काम कर रहे हैं।

छोटे नक्सली काम बड़े

जानकारी के मुताबिक नक्सली (Naxali) ज्यादातर 10-16 साल की उम्र के बच्चों को संगठन में बहला कर शामिल करते हैं। वो इन्हें एके-47 से लेकर तमाम घातक हथियार चलाने की बखूबी ट्रेनिंग देते हैं। कभी-कभी वो इन छोटे नक्सलियों को खून-खराबे में भी शामिल करते हैं। लेकिन यह बाल दस्ता संगठन के लिए आईडी इंस्टॉलेशन तथा पुलिस की गतिविधियों का पता लगाने का भी काम करता है। नक्सलियों के हथियारों को ढोना, खाने-पीने के लिए भोजन सामग्री की व्यवस्था करना तथा कभी-कभार नक्सली वारदातों में शामिल होना भी इनका काम होता है। जानकार सूत्रों के हवाले से बताया जाता है कि झारखंड के हर एक जिले में नक्सलियों का एक बाल दस्ता है जो कम पढ़े-लिखे होते हैं। जिनमें अधिकार गरीब, आदिवासी एवं दलित परिवार से संबंध रखने वाले वैसे बच्चे शामिल हैं जिनके माता-पिता भी नक्सली हैं अथवा पूर्व नक्सली (Naxali) थे जिनकी मौत एनकाउंटर में हो चुकी है। सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक, इन बाल नक्सलियों के लिए कई नक्सली संगठनों ने शुरुआती शिक्षा देने की व्यवस्था भी की है ताकि वह अपना नाम पता इत्यादि लिख सकें। इन्हें थोड़ा-बहुत पढ़ा कर नक्सली इन बच्चों से धमकी भरे पोस्टर तथा लेवी के लिए खत लिखवाते हैं।

बाल नक्सलियों ने बयां किया दर्द

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी के सोन गंगा जोनल क्षेत्र में संगठन के बाल दस्ते में शामिल एक नक्सली ने बताया कि उसके पिता भी नक्सली (Naxali) थे। जब पुलिस मुठभेड़ में उनकी मौत हो गई तब नक्सलियों ने उसके दिमाग में पुलिस के प्रति इतना जहर भर दिया कि वह पुलिस से बदला लेने के लिए संगठन में शामिल हो गया। अब इस छोटे नक्सली के लिए खूंखार नक्सलियों के बीच से निकल पाना भी बेहद मुश्किल है। इसी तरह चतरा जिले में नक्सलियों के साथ संगठन के लिए कार्य कर रहे एक बाल नक्सली के मुताबिक उसके माता-पिता की मौत के बाद उसके लिए दो जून की रोटी जुटा पाना भी भारी हो रहा था। एक दिन गांव की अपनी टूटी-फूटी झोपड़ी से उसे कुछ नक्सली उसके घर के सामने से गुजरते नजर आए। इसके बाद भूख और गरीबी से तड़प रहा यह मासूम उन नक्सलियों के साथ चल पड़ा। लेकिन फिर कभी वो मुख्यधारा में लौट नहीं पाया। बजाए इसके कि नक्सली इनके बचपन को सुधारें उन्होंने इन्हें बंदूक थमा दिया।

हालांकि, प्रशासन के आंकड़ें बताते हैं कि पिछले 10 सालों में कई बड़े नक्सलियों ने सरेंडर किया है। वो सरकार के द्वारा नक्सलियों के पुनर्वास के लिए चलाई जा रही ‘नई दिशा’ नीति से प्रभावित होकर ऐसा कर रहे हैं। दरअसल सुदूर गांवों में पुलिस-प्रशासन की पहुंच और नक्सलियों के खिलाफ समुचित अभियान का यह असर हुआ है कि कई नक्सली सरेंडर कर मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं। इतना ही नहीं कई बाल नक्सलियों को भी प्रशासन ने अपने प्रयासों से नर्क भरी जिंदगी से बाहर निकाला है।

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