Jammu Kashmir: जम्मू कश्मीर की 149 साल पुरानी दरबार मूव परंपरा खत्म, राज्य को 200 करोड़ का होगा फायदा

Darbar Move: जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) की 149 साल पुरानी दरबार मूव की परंपरा को राज्यपाल मनोज सिंहा द्वारा खत्म कर दिया गया है।

Darbar Move

राज्यपाल मनोज सिन्हा

Darbar Move: जम्मू और कश्मीर दोनों सचिवालय पूरे साल यानी 12 महीने काम कर सकेंगे और हर साल दो बार राजधानी बदलने वाली परंपरा में खर्च होने वाले 200 करोड़ रुपए बचेंगे। 

Jammu Kashmir: जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) की 149 साल पुरानी दरबार मूव (Darbar Move) की परंपरा को राज्यपाल मनोज सिन्हा द्वारा खत्म कर दिया गया है। इसके अलावा बीते बुधवार को राज्य के अधिकारियों और कर्मचारियों के सरकारी आवास के आवंटन को भी रद्द कर दिया गया है और तीन हफ्ते के भीतर आवास खाली करने के निर्देश दिए गए हैं। राज्यपाल मनोज सिन्हा ने बीते 20 जून को ऐलान कर बताया था कि राज्य में ई ऑफिस का काम पूरा कर लिया गया है और प्रदेश में प्रशासन पूरी तरीके से ई ऑफिस में तब्दील हो गया है। जिसके बाद राज्य में हर साल दो बार होने वाली दरबार मूव की परंपरा खत्म हो गई है।

उन्होंने आगे कहा कि अब जम्मू और कश्मीर (Jammu Kashmir) दोनों सचिवालय पूरे साल यानी कि 12 महीने काम कर सकेंगे और हर साल दो बार राजधानी बदलने वाली परंपरा में खर्च होने वाले 200 करोड़ रुपए बचेंगे। जिसे वंचित तबकों के विकास में लगाया जाएगा।

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दरबार मूव परंपरा क्या है

इस परंपरा की शुरूआत साल 1862 में डोगरा शासक गुलाब सिंह के द्वारा की गई थी। दरअसल गर्मियों में जम्मू का मौसम बहुत गर्म होता है और सर्दी में श्रीनगर में भीषण ठंड पड़ती है। इसके कारण हुए जम्मू-कश्मीर की राजधानी को हर 6 महीने पर बदल दिया जाता था। जम्मू को ठंड के समय राज्य की राजधानी बनाई जाती थी और गर्मियों के मौसम में प्रशासनिक काम-काज श्रीनगर में होते थे। राजधानी बदलने के इसी प्रक्रिया को दरबार मूव कहा जाता था।

बचेंगे 200 करोड़ रुपए

हर साल दो बार राज्य की राजधानी बदलने के कारण राजभवन, सिविल सचिवालय, सभी प्रमुख विभागों और कार्यालय को जम्मू से कश्मीर शिफ्ट किया जाता था। जिस कारण कर्मचारियों के लिए दोनों जगहों पर सरकारी आवास की व्यवस्था की जाती थी। इन सारी प्रक्रियाओं में हर साल 200 करोड़ रुपए का खर्च आता था। एक बार राजधानी बदलने में 110 करोड़ रूपए खर्च होते थे। दरबार मूव की परंपरा को खत्म करने से राज्य कोष में 200 करोड़ रुपये की बचत होगी।

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