छत्तीसगढ़ में हुए नक्सली हमले के बाद उठ रहे हैं कई सवाल, इन मुद्दों पर है सोचने की जरूरत

हमारे बुद्धिजीवी और मीडिया कहता है कि ऐसे हमलों के पीछे हमलावरों (Naxalites) का अलग नजरिया और जमीनी कारण हो सकते हैं। सामाजिक और आर्थिक कारण हो सकते हैं।

Naxalites

सांकेतिक तस्वीर

पहली समस्या नक्सली (Naxalites) विचारधारा की है, जो भारत के संविधान और लोकतंत्र को नहीं मानती। दूसरी समस्या ये है कि ये विचारधारा (नक्सली) ये देखने में नाकाम रही है कि छत्तीसगढ़ के जंगलों के लिए सामाजिक और आर्थिक अभाव नया नहीं है।

नई दिल्ली: नक्सलियों (Naxalites) के खिलाफ भारत में बीचे 5 दशकों से अभियान चलाया जा रहा है। हालही में छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के तेकुलगुडम गांव के आसपास हुए नक्सली हमले से ये बात भी सामने आ गई है कि ये सिलसिला अभी रुकने वाला नहीं है।

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, जंगल में हुए इस नक्सली हमले में सुरक्षाबलों के खिलाफ नक्सलियों ने एक बड़ी रणनीति बनाई थी। इस हमले में छत्तीसगढ़ पुलिस और सीआरपीएफ के 22 जवान शहीद हो गए थे। इस दौरान कितने नक्सली मारे गए, इस बारे में पक्का कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि नक्सलियों को हमसे ज्यादा नुकसान हुआ और ये आंकड़ा हमारे आंकड़े से दोगुना भी हो सकता है।

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हमारे बुद्धिजीवी और मीडिया कहता है कि ऐसे हमलों के पीछे हमलावरों का अलग नजरिया और जमीनी कारण हो सकते हैं। इसके पीछे सामाजिक और आर्थिक कारण हो सकते हैं। और इस तरह से वह नक्सल मूवमेंट का सपोर्ट करते दिखते हैं। वहीं कुछ लोग इसे चुनावी नजरिए से देखते हैं और कहते हैं कि ये हमारे राज्य की नाकामी है कि वह नक्सली क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों को आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय नहीं दे सके हैं। इन बातों ने नक्सली आंदोलनों को हवा दी है और इसे 5 दशकों से जिंदा कर रखा है। इसके अलावा कई एक्सपर्ट्स ऐसे हैं, जो विकास और बातचीत की थ्यूरी पर जोर देते हैं।

इस अप्रोच के साथ कई तरह की समस्या हैं। जिसमें पहली समस्या नक्सली (Naxalites) विचारधारा की है, जो भारत के संविधान और लोकतंत्र को नहीं मानती। दूसरी समस्या ये है कि ये विचारधारा (नक्सली) ये देखने में नाकाम रही है कि छत्तीसगढ़ के जंगलों के लिए सामाजिक और आर्थिक अभाव नया नहीं है। देश के कई हिस्से इन परेशानियों से जूझ रहे हैं। एक समस्या ये है कि इस आंदोलन को बनाए रखने में बाहरी ताकतों की भूमिका को जानबूझकर कम आंका गया है। समस्या ये भी है कि नक्सली क्रांति की जो झूठी तारीफ की जाती है, उसके पीछे की घिनौनी जमीनी हकीकत को छिपाया गया है।

जो नक्सली तथाकथित क्रांतिकारी बने घूमते हैं, उनके द्वारा नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जबरन वसूली की जाती है। ये एक ऑर्गनाइज्ड एक्टॉरशन रैकेट है।

एक बड़ी समस्या ये भी है कि हम उस इकोसिस्टम के बारे में शायद ही कभी बात करते हैं, जो जंगल में इन तथाकथित क्रांतिकारियों को व्यापक, वैचारिक, आर्थिक और तार्किक सुविधाएं देते हैं।

समस्या ये भी है कि हर बार नक्सलियों और सुरक्षाबलों की मुठभेड़ में जब नक्सली मारे जाते हैं तो उसे मीडिया और न्यायिक व्यवस्था के द्वारा कोल्ड-ब्लडेड मर्डर तक कह दिया जाता है। जिससे इसे बढ़ावा मिलता है। और ये सब ओवरग्राउंड नेटवर्क के जरिए किया जाता है। ऐसे में हमें इस बात पर ध्यान देने की बहुत जरूरत है कि नक्सलियों को खत्म करने से पहले उन लोगों के मन में बसी विचारधारा को कैसे खत्म किया जाए।

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