महाराष्ट्र: गढ़चिरौली में 13 नक्सलियों को मौत के घाट उतारने वाले जांबाज C-60 कमांडोज के बारे में कितना जानते हैं आप?

महाराष्ट्र (Maharashtra) के गढ़चिरौली में 21 मई तड़के C-60 कमांडोज (C-60 Commandos) की बड़ी कार्रवाई में 13 नक्सली (Naxalites) मारे गए। महाराष्ट्र में नक्सलियों (Naxals) की नकेल कसने में इस फोर्स का अहम योगदान है।

C-60 Commandos

C-60 Commandos (File Photo)

जंगल में नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन के अलावा C-60 कमांडोज (C-60 Commandos) का काम नक्सली लोगों का सरेंडर और उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ना भी है।

महाराष्ट्र (Maharashtra) के गढ़चिरौली में 21 मई तड़के C-60 कमांडोज (C-60 Commandos) की बड़ी कार्रवाई में 13 नक्सली (Naxalites) मारे गए। महाराष्ट्र में नक्सलियों (Naxals) की नकेल कसने में इस फोर्स का अहम योगदान है। C-60 में स्थानीय आदिवासी युवाओं को ट्रेनिंग देकर कमांडो बनाया जाता है। C-60 कमांडोज महाराष्ट्र पुलिस की खास फोर्स है जिन्हें नक्सिलयों से लड़ने के लिए खास तरीके से प्रशिक्षित किया गया है।

C-60 कमांडो का कॉन्सेप्ट तत्कालीन अतिरिक्त महानिदेशक केपी रघुवंशी लेकर आए थे जब वह 1989-90 में गढ़चिरौली जिले में एसपी थे। उन्होंने ही इस कमांडो फोर्स का गठन किया। C-60 नाम पड़ने का कारण है कि जब दल का गठन किया गया था तब इसमें केवल 60 कमांडो थे

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इन कमांडोज को उसी इलाके से चुना गया था, जहां से नक्सली अपने फाइटर भर्ती करते थे। उसी इलाके से होने की वजह से ऑपरेशन के दौरान C-60 कमांडोज (C-60 Commandos) को राज्य की दूसरी यूनिट के मुकाबले एडवांटेज रहता था क्योंकि वे इलाके से पूरी तरह से वाकिफ थे। C-60 कमांडो जंगल में तेजी से मूवमेंट करते थे और लोकल लोगों से भी उनका अच्छा संपर्क था।

C-60 फोर्स के जवानों को नक्सलियों के खिलाफ जंगल में चलाए जाने वाले ऐसे ऑपरेशन के लिए विशेष रूप से ट्रेनिंग दी जाती है। C-60 कमांडो घने जंगलों और पहाड़ी क्षेत्रों में ऑपरेशन के लिए ट्रेन किए जाते हैं। C-60 कमांडो की ट्रेनिंग देश के बेहतरीन संस्थानों जैसे- नेशनल सिक्योरिटी गार्ड कैंपस, मानेसर, पुलिस ट्रेनिंग सेंटर, हजारीबाग, जंगल वॉरफेयर कॉलेज, कांकेर और अनकंवेशनल ऑपरेशन ट्रेनिंग सेंटर, नागपुर में की जाती है।

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जंगल में नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन के अलावा C-60 कमांडोज (C-60 Commandos) का काम नक्सली लोगों का सरेंडर और उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ना भी है। इसके लिए C-60 कमांडो की यूनिट नक्सलियों के परिवार से मिलती है और उन्हें पूर्व में नक्सली रहे लोगों के लिए सरकार की स्कीमों के बारे में बताती है।

एक औसत गश्त पर एक कमांडो अपनी पीठ पर 15 किलो तक भार रखता है। इसमें उसके हथियार, भोजन, पानी, रोजाना इस्तेमाल की चीजें, फर्स्ट एड जैसे जरूरे सामान शामिल हैं। C60 कमांडो अब टेक्नोलॉजी पर निर्भर हैं। गढ़चिरौली पुलिस ने 4K हाई-डेफिनिशन इमेज रिजॉल्यूशन वाले ड्रोन इस्तेमाल करते हैं जिनका इस्तेमाल गश्त के दौरान किया जाता है।

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ड्रोन 500 मीटर से अधिक क्षेत्रों के दृश्य लेते हैं और कम से कम शोर के साथ उड़ान भर सकते हैं। ड्रोन से जांच में मदद मिलती है कि आगे कोई संदिग्ध हरकत तो नहीं है। इसका इस्तेमाल आमतौर पर खुफिया सूचनाओं के लिए किया जाता है। कमांडो के काम आने वाली दूसरी आधुनिक तकनीक जीपीएस है। वे गश्त शुरू करने से पहले GPS कोऑर्डिनेट्स सेट करते हैं क्योंकि जंगल के अंदर सही दिशा का पता लगाना बहुत मुश्किल है।

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