छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की कैद से छूटने के बाद जवान राकेश्वर सिंह ने की बात, बताया- 6 दिन तक बंधे थे हाथ-पैर

छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुए नक्सली हमले के बाद नक्सलियों के चंगुल से रिहा हुए सीआरपीएफ के कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह मनहास ने अपने अनुभव के बारे में बताया है।

Rakeshwar Singh Manhas

Rakeshwar Singh Manhas

राकेश्वर (Rakeshwar Singh Manhas) ने बताया कि उनके हाथ-पैर 6 दिन के बाद खोले गए थे। इस बीच केवल खाना खाने के लिए उनके हाथ पैर खोले जाते थे।

जम्मू कश्मीर: छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुए नक्सली हमले के बाद नक्सलियों के चंगुल से रिहा हुए सीआरपीएफ के कोबरा कमांडो राकेश्वर सिंह मनहास (Rakeshwar Singh Manhas) ने अपने अनुभव के बारे में बताया है। उन्होंने कहा कि वह अपने उन दिनों की याद को भूलना चाहते हैं।

राकेश्वर ने बताया कि नक्सलियों ने उन्हें 6 दिनों में किसी एक जगह नहीं रखा बल्कि नक्सली लगातार ठिकाना बदलते रहे। उन्होंने बताया कि नक्सलियों ने उनकी आंखों पर पट्टी बांधी हुई थी और उनके हाथ-पैर बंधे हुए थे। राकेश्वर ने बताया कि इस दौरान नक्सलियों ने उन्हें यातनाएं नहीं दीं।

बता दें कि 3 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के बीजापुर-सुकमा बॉर्डर के पास नक्सलियों और सुरक्षाबलों के बीच मुठभेड़ हुई थी। इस दौरान 22 जवान शहीद हो गए थे और एक जवान लापता हो गया था। बाद में नक्सलियों ने बताया था कि लापता जवान उनके कब्जे में है और उसका नाम राकेश्वर सिंह मनहास है।

हालांकि 6 दिन बाद नक्सलियों ने राकेश्वर को रिहा कर दिया था। राकेश्वर (Rakeshwar Singh Manhas) ने बताया कि उनके हाथ-पैर 6 दिन के बाद खोले गए थे। इस बीच केवल खाना खाने के लिए उनके हाथ पैर खोले जाते थे। उनकी आंखों पर पट्टी रहती थी, इसलिए उन्हें नहीं पता कि उन्हें कहां-कहां ले जाया गया था।

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राकेश्वर ने बताया कि इन कठिन हालातों में भी उन्होंने हिम्मत नहीं खोई थी। जब वह कैद से छूटे तो ये उनके लिए बहुत राहत का समय था।

राकेश्वर ने कहा कि इस ऑपरेशन में शहीद हुए जवानों को याद करके बहुत दुख होता है। उनके परिजनों के दुख के बारे में सोचते हैं। उन्होंने कहा कि शहीद जवान हमारे हीरो हैं। उनके बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

राकेश्वर ने ये भी कहा कि ये मां की प्रार्थना और देश की जनता की दुआओं का असर है कि वे नक्सलियों की कैद से छूट पाए।

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