विक्रम साराभाई जयंती: इनके ही अथक प्रयास से भारत को इसरो जैसा संस्थान और वैश्विक पहचान मिली

विक्रम (Vikram Sarabhai) साहसी कारनामे भी खूब करते। उनके घर के पास एक तालाब था। उसमें वह अपने नौकर तथा कुछ बच्चों के साथ नाव चलाया करते थे। लेकिन एक बार तो गजब हो गया। नाव एकाएक उलट गई।

Vikram Sarabhai

Vikram Sarabhai Birth Anniversary

डॉ. विक्रम अंबालाल साराभाई (Vikram Sarabhai) का जन्म 12 अगस्त 1919 को गुजरात राज्य के प्रमुख औद्योगिक शहर अहमदाबाद में एक प्रतिष्ठित उद्योगपति परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम अंबालाल और माता का नाम सरलादेवी था। वह आठ भाई-बहन थे।

अंबालाल साराभाई अहमदाबाद के प्रसिद्ध उद्योगपति और समाजसेवी थे। उनके यहां गुरु रवींद्रनाथ टैगोर, पं. मोती लाल नेहरू, पं. जवाहर लाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, मौलाना आजाद, सर सी-वी रामन् जैसे प्रतिष्ठित लोगों का खूब आना-जाना था। गांधीजी भी जब कभी अहमदाबाद जाते तो उनके यहां ही ठहरते। स्वाभाविक था कि ऐसी महान विभूतियों की छाप बालक विक्रम पर पड़ती। जब विक्रम (Vikram Sarabhai) दो वर्ष का ही था, तभी गुरुदेव टैगोर ने भविष्यवाणी की थी कि एक दिन विक्रम प्रसिद्ध व्यक्ति बनेगा।

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आगे चलकर यही विक्रम (Vikram Sarabhai) भारत के महान वैज्ञानिक हुए। स्वतंत्र भारत में विज्ञान के विकास के लिए जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया हो, ऐसे गिने चुने वैज्ञानिकों में डॉ. साराभाई एक थे। उन्होंने ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान की नींव डाली।

विक्रम (Vikram Sarabhai) बचपन से ही बहुत चंचल, साहसी और मेधावी थे। एक बार उनका पूरा परिवार शिमला गया। वहां विक्रम ने देखा कि उनके पिताजी के नाम रोज ढेर सारी चिट्ठियां आती हैं, लेकिन उनके नाम कोई चिट्ठी नहीं आती। कुछ दिनों बाद उन्हें भी चिट्ठियां मिलने लगीं। पिताजी के कारण पूछने पर विक्रम ने बताया, “मैं स्वयं आप के दफ्तर से लिफाफे और टिकट लेकर अपने नाम चिट्ठियां लिखता हूं।” यह सुनकर पिताजी काफी देर तक हंसते रहे ।

विक्रम (Vikram Sarabhai) साहसी कारनामे भी खूब करते। बचपन में उन्होंने साइकिल चलानी सीख ली थी और उस पर तरह-तरह के करतब दिखाया करते। उनके घर के पास एक तालाब था। उसमें वह अपने नौकर तथा कुछ बच्चों के साथ नाव चलाया करते थे। लेकिन एक बार तो गजब हो गया। नाव एकाएक उलट गई। सब डूबने लगे, चीखने-चिल्लाने लगे। सौभाग्यवश किनारे के बाग में एक माली था। चीखें सुनकर उसने पानी में कूदकर सबकी जान बचाई। ऐसे चंचल थे विक्रम। इस सबके बावजूद वह पढ़ाई में सबसे आगे रहते थे।

विक्रम (Vikram Sarabhai) की प्रारंभिक शिक्षा अहमदाबाद में हुई। आगे की पढ़ाई के लिए वह इंग्लैंड गए और 1947 में नाभिकीय भौतिकी में डॉक्टरेट की उपाधि ली। कैंब्रिज से लौटने पर उन्होंने देश को अपनी वैज्ञानिक सेवाएं अर्पित कीं। 1965 में वह अहमदाबाद की भौतिक अनुसंधानशाला (Physical Research Lab, PRL) के निदेशक नियुक्त हुए।

कॉस्मिक किरणों पर विक्रम साराभाई (Vikram Sarabhai) ने महत्त्वपूर्ण कार्य किया। 1966 में डॉ. भाभा की मृत्यु के बाद उन्हें परमाणु ऊर्जा आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। थुंबा में उनके ही निर्देशन में रॉकेट प्रक्षेपण केंद्र स्थापित हुआ। 1971 के दिसंबर माह में साराभाई ने थुंबा केंद्र पर युवा वैज्ञानिकों का मार्ग-दर्शन किया। वहां वह एक होटल में ठहरे थे। हमेशा की तरह सबसे बातचीत की और सोने चले गए। फिर वह कभी नहीं उठे। विज्ञान-साधना में ही रात उन्होंने 52 वर्ष की आयु में 29 दिसंबर, 1971 को अपना शरीर त्याग दिया।

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