
यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी के खिलाफ बेल्लारी से लड़ा लोकसभा चुनाव। फाइल फोटो।
सुषमा स्वराज करिश्माई व्यक्तित्व वाली महिला थीं। बीजेपी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी की बेहद करीबी। यहां तक उन्हें आडवाणी का उत्तराधिकारी भी माना जाता था। पार्टी के लिए समर्पित सुषमा का कद उस वक्त बढ़ गया जब उन्होंने कर्नाटक की बेल्लारी सीट से यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा। हालांकि, वह सोनिया गांधी को हरा नहीं पाई थीं, लेकिन इसके बावजूद उनकी खूब सराहना हुई। उस वक्त सुषमा स्वराज ने दावा किया था कि अगर सोनिया गांधी देश की प्रधानमंत्री बन जाती हैं, तो वह अपना सिर मुंडवा लेंगी।
इससे पहले दिल्ली में संकट की स्थिति आने पर केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें दिल्ली की कमान सौंपी। वह दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। चुनाव भी उनके नेतृत्व में लड़े गए। लेकिन जब बीजेपी को दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार मिली, तब उन्हें फिर राष्ट्रीय राजनीति वापस बुला लिया गया। इसके बाद सन 1999 में सुषमा उस वक्त चर्चा में आ गई, जब उन्होंने कर्नाटक की बेल्लारी सीट पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा। यहां उन्होंने सोनिया गांधी को कड़ी टक्कर दी थी। एक समय ऐसा लग भी रहा था कि सुषमा स्वराज का पलड़ा भारी हो रहा है। सोनिया गांधी काफी कम अंतर से बेल्लारी की सीट निकाल पाई थीं।
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सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ने के बाद सुषमा का कद पार्टी के काफी बढ़ गया था। यही वजह रही कि हारने के बावजूद उन्हें सन 2000 में उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद चुना गया था। तब अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार में सुषमा स्वराज ने जनवरी 2003 तक सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय संभाला था। सुषमा स्वराज ने इस दौरान कई ऐसे फैसले किए, जिनसे उनका कद बढ़ता चला गया।
साल 2004 में कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी। ऐसे में सोनिया गांधी का प्रधानमंत्री बनना तय माना जा रहा था। तब सुषमा स्वराज का एक अलग ही रूप देखने को मिला। सुषमा ने घोषणा की थी कि अगर सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनती हैं, तो वह अपने पद से त्याग पत्र दे देंगी और अपना सिर मुंडवाकर पूरा जीवन एक भिक्षुक की तरह बिताएंगी। शायद ही किसी नेता ने इससे पहले ऐसी घोषणा की होगी। हालांकि, सुषमा स्वराज को ऐसा कुछ नहीं करना पड़ा, क्योंकि सोनिया गांधी की जगह डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया।
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