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बमबारी के तुंरत बाद ही स्थानीय प्रशासन के लोग पहुंच गए थे। मगर इससे पहले सेना ने इस जगह को अपने कब्जे में ले लिया था। पुलिस को भी अंदर जाने की इजाजत नहीं थी। एंबुलेंस के मेडिकल स्टाफ से मोबाइल भी ले लिए गए थे- यह चश्मदीदों के अनुसार उस रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है जो रोम के एक पत्रकार ने स्थानीय लोगों से बात करने के बाद तैयार किया है।
भारतीय वायुसेना ने बालाकोट में स्थित जैश-ए-मोहम्मद के मदरसे तलीम-उल-कुरान में बनी 4 इमारतों को निशाना बनाया था। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में भी यह बात कही गई है। सूत्रों के मुताबिक, टेक्नीकल इंटेलिजेंस की सीमाओं और खुफिया जानकारी की कमी के कारण हमले में मारे गए आतंकियों की संख्या का सही आकलन नहीं हो सकता। मिराज-2000 विमानों ने मुजफ्फराबाद, चकोटी और बालाकोट में 1000 किलो बम गिराए थे। मीडिया रिपोर्ट्स में 350 आतंकियों के मारे जाने की बात कही गई थी।
रोम के पत्रकार के रिपोर्ट के मुताबिक, इस हमले में कर्नल सलीम मारा गया था और कर्नल जरार जकरी घायल हुआ था। दोनों ही आईएसआई के पूर्व अधिकारी थे। जैश-ए-मोहम्मद के मुफ्ती मोइन और उस्मान गनी का भी यही हाल हुआ। मोइन आतंकियों को प्रशिक्षण देता था जबकि गनी विस्फोटक विशेषज्ञ था। इस हमले में दोनों आतंकी भी मारे गए।
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हालांकि, चश्मदीदों की बातचीत से दो तरह की बातें सामने आईं। कुछ का कहना था कि जैश-ए-मोहम्मद के 12 आतंकी लकड़ी से बने मकान में ट्रेनिंग ले रहे थे। सभी इस हवाई हमले में मारे गए। जबकि कुछ का कहना था कि ऐसा कुछ नहीं हुआ। कुछ आम लोग जरूर घायल हुए थे। ऑस्ट्रेलिया के स्ट्रैटेजिक पॉलिसी इंस्टीट्यूट के नैथन रुसर ने इस हमले का सैटेलाइट एनालिसिस किया। उनकी एनालिसिस के अनुसार, हमले के स्थान पर बहुत ज्यादा नुकसान होने के निशान नहीं मिले। यह हमले में हुए नुकसान के भारतीय दावे को साबित नहीं करते हैं।
गौर करने वाली बात है कि आखिर पाक आर्मी ने हमले के बाद मदरसा सील क्यों कर दिया? पत्रकारों और पुलिस को वहां जाने क्यों नहीं दिया गया? रडार से मिले सबूतों से पता चलता है कि बिल्डिंग का इस्तेमाल गेस्टहाउस के तौर पर होता था। इसमें जैश सरगना मसूद अजहर का भाई रहता था। एल आकार की इस बिल्डिंग का इस्तेमाल वे लोग भी करते थे, जिन्हें आतंकी बनने की ट्रेनिंग दी जाती थी।
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