Vijay Anand: The Director With the Golden Touch
हिंदी सिनेमा के बेहद चर्चित निर्देशकों में से एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी विजय आनंद (Vijay Anand) ऐसी हस्ती थे जिन्हें गाने फिल्माने में विशेष महारत हासिल थी और वह फिल्मों और पात्रों के जरिए सामाजिक समस्याओं में एक नई राह दिखाने का प्रयास किया करते थे।
फिल्मी परिवार से संबंध रखने वाले विजय आनंद (Vijay Anand) को सिनेमा के लिए जरूरी विभिन्न विधाओं की अच्छी जानकारी थी. चाहे वह डॉयलाग हो या संपादन/संगीत या निर्देशन। उनकी फिल्मों में कहानी जिस तरह से आगे बढ़ती है, वह सिनेमा के जिज्ञासुओं के लिए एक मिसाल है। चेतन आनंद और देव आनंद के छोटे भाई तथा गोल्डी के नाम से मशहूर विजय आनंद (Vijay Anand) ने कम उम्र में ही देव आनंद अभिनीत ‘टैक्सी ड्राइवर’ की स्क्रिप्ट लिखी। 22 जनवरी, 1934 को पंजाब के गुरदासपुर में जन्में गोल्डी ने बंबई विद्यालय से पढ़ाई की और फिल्मों की राह ली। निर्देशक के रूप में ‘नौ दो ग्यारह’ विजय आनंद (Vijay Anand) की पहली फिल्म थी, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे दो महीने से भी कम समय में पूरा कर लिया गया था। बॉक्स ऑफिस पर कामयाब इस फिल्म ने जता दिया कि हिंदी फिल्म उद्योग को एक बेहद प्रतिभाशाली निर्देशक मिल गया है। इस फिल्म का संगीत काफी हिट रहा और इसके कुछ गाने ‘हम हैं राही प्यार के, आंखों में क्या जी’ आदि आज भी लोकप्रिय हैं।
विजय आनंद (Vijay Anand) ने बाद में ‘काला बाजार’, ‘ तेरे घर के सामने’ आदि फिल्में बनाई। 1965 में उन्होंने ‘गाइड’ का निर्माण किया, जिसे हिंदी की कुछ क्लासिक फिल्मों में प्रमुखता से शुमार किया जाता है। प्रसिद्ध साहित्यकार आर. के. नारायण की कृति ‘द गाइड’ पर आधारित यह फिल्म अकेले ही उनकी क्षमता स्पष्ट करने के लिए काफी है। ‘गाइड’ विवाहेत्तर संबंधों पर आधारित फिल्म थी, जिसे भारतीय समाज आज भी स्वीकार नहीं कर सका है। इस विषय को आधार बनाकर कई फिल्में बनीं, लेकिन अधिकतर को दर्शकों ने सिरे से खारिज कर दिया। यह विजय आनंद (Vijay Anand) का ही कमाल था कि उन्होंने ऐसे विषय पर इतनी बेहतरीन फिल्म बनाई, जो दर्शकों को अंत तक बांधे रखती है। कई स्थानों पर दर्शकों को भावुक बनाते हुए फिल्म आगे बढ़ती है और बीच-बीच में चुनौतियों के लिए रास्ता भी दिखाती है। फिल्म की नायिका रोजी और उसके पति मार्कों के बीच अनबन और अंत में रोजी का पति को थप्पड़ मारना, घुंघरू पहनकर सड़क पर चलना, समाज का विद्रोह करते हुए नायक राजू द्वारा रोजी को अपने घर में शरण देना, उसकी कला का सम्मान करना ऐसे विषय हैं, जिनके माध्यम से निर्देशक समाज को एक रास्ता दिखाने का प्यास करता है। विजय आनंद (Vijay Anand) की फिल्मों में छोटे पात्रों के साथ भी पूरा न्याय देखने को मिलता है। उदाहरण के लिए ‘गाइड’ में रोजी उर्फ नलिनी और राजू के यहां काम करने वाले मणि को देखा जा सकता है। निर्देशक ने इस छोटी सी भूमिका का बेहतरीन इस्तेमाल किया है। इस फिल्म की अन्य खूबियों के अलावा अंत में नायक के मन में चल रहे अंतर्द्वंद का खूबसूरत चित्रण है। एक ओर नायक अपने निजी हित और जान बचाकर भागने के बारे में सोचता है तो दूसरी और लोगों के विश्वास भंग होने के बाद की स्थिति पर विचार करते हुए उलझता जाता है। विजय आनंद (Vijay Anand) शायद उन दृश्यों के माध्यम से आध्यात्मिकता की और अपने झुकाव का परिचय देते नजर आते हैं।
‘अल्ला मेघ दे पानी दे’ और ‘हे राम हे राम हमारे रामचंद’ जैसे गीतों से ईश्वर के प्रति उनकी आस्था दिखती है। अन्य फिल्मों में भी यह और उभरकर सामने आती है। शायद यही वजह रही कि बाद के दिनों में वह रजनीश की और आकर्षित हुए। विजय आनंद (Vijay Anand) की फिल्मों का आयाम बहुत बड़ा है और तमाम गंभीरता के बावजूद दर्शकों की दिलचस्पी बनी रहती है तथा कहीं से भी वह बोझिल नहीं लगती। उन्होंने कई फिल्में भी बनाई जो स्थापित लीक से हटकर रहस्य और रोमांच से भरपूर थीं। उनकी प्रमुख फिल्मों में ‘तीसरी मंजिल’, ‘राजपूत’, ‘राम बलराम’, ‘ब्लैकमेल’, ‘तेरे मेरे सपने’, ‘ज्वेल थीफ’, ‘हम दोनों’ आदि शामिल हैं। उन्होंने कई फिल्मों में अभिनय भी किया। ‘कोरा कागज’ तथा ‘मैं तुलसी तेरे आँगन की’ ऐसी फिल्में हैं जिन्हें विजय आनंद (Vijay Anand) के अभिनय के लिए याद किया जाता है। बाद के दिनों में उन्होंने ‘तहकीकात’ नाम के जासूसी धारावाहिक में भी काम किया। लेकिन उनकी प्राथमिकता निर्देशन में ही रही। वह कुछ समय के लिए सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष की भूमिका में भी रहे। लेकिन वयस्क फिल्मों के लिए अलग रेटिंग के अपने विचार पर सरकार के साथ मतभेद होने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया। विजय आनंद (Vijay Anand) 23 फरवरी 2004 को इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन वह विविधता के भरपूर इतनी फिल्में छोड़ गए हैं, जो सदा उनकी याद दिलाती रहेंगी।
इतिहास में आज का दिन – 22 जनवरी
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