पुण्यतिथि विशेष: कुशल राजनीतिज्ञ होने के अलावा बेहतरीन कवि भी थे पूर्व PM अटल बिहारी वाजपेयी, यहां पढ़ें कविताएं

अटल बिहारी बाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) ने स्वयं अपने जीवन के लिए कभी कोई मार्ग निर्धारित नहीं किया। उनका बस एक ही मार्ग था, जनकल्याण।

Atal Bihari Vaypayee अटल बिहारी वाजपेयी

Atal Bihari Vaypayee Death Anniversary II अटल बिहारी वाजपेयी पुण्यतिथि

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) ने कई कविताएं लिखीं। उनकी कविता ‘हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा’ काफी लोकप्रिय है। आज भी लोग इस कविता को पढ़कर अपना आत्मविश्वास बढ़ाते हैं और जीवन के प्रति एक नई आशा से भर जाते हैं।

Remembering Atal Bihari Vajpayee: जन-जन के चहेते, विश्वभर में लोकप्रिय भारत के यशस्वी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज पुण्यतिथि है। अटल राजनैतिक शुचिता के एकमात्र प्रतीक बनकर भारतीय राजनीति के आकाश पर किसी जाज्वल्यमान नक्षत्र की भांति जगमगा रहे हैं। कविहृदय अटल (Atal Bihari Vajpayee) से वैचारिक भिन्नता के बावजूद आलोचक भी इनके सामने नतमस्तक हो उठते थे। मानव जीवन की एक अनिवार्यता है, यह कभी न कभी, कहीं न कहीं जाकर रुकती है। इनमें कुछ लोग ऐसे होते हैं जो काल के महासागर में कहीं विलीन हो जाते हैं। इनमें कुछ ऐसे भी महामानव होते हैं जो अपने जीवन काल में ही एक मिथक बन जाते हैं।

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अटल (Atal Bihari Vajpayee) का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में रहने वाले एक विनम्र स्कूल शिक्षक के परिवार में हुआ। निजी जीवन में प्राप्त सफलता उनके राजनीतिक कौशल और भारतीय लोकतंत्र की देन है। पिछले कई दशकों में वह एक ऐसे नेता के रूप में उभरे जो विश्व के प्रति उदारवादी सोच और लोकतांत्रिक आदर्शों के प्रति प्रतिबद्धता को महत्व देते थे।

महिलाओं के सशक्तिकरण और सामाजिक समानता के समर्थक वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) भारत को सभी राष्ट्रों के बीच एक दूरदर्शी, विकसित, मजबूत और समृद्ध राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ते हुए देखना चाहते थे। वह ऐसे भारत का प्रतिनिधित्व करते थे जिस देश की सभ्यता का इतिहास 5000 साल पुराना है और जो अगले हजार वर्षों में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है।

16 अगस्त 2018 को लंबी बीमारी के बाद अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) का निधन हो गया था। अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बने और उनकी सरकार सिर्फ 13 दिनों तक ही चल पाई थी। 1998 में वह दूसरी बार प्रधानमंत्री बने, तब उनकी सरकार 13 महीने तक चली थी। 1999 में तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और 5 सालों का कार्यकाल पूरा किया। 2004 के बाद तबीयत खराब होने की वजह से उन्होंने राजनीति से दूरी बना ली थी। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी को 2014 में देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था।

करोड़ों जीवन, जिनके महान कृत्यों से सुख और शांति प्राप्त करते हैं, जिनके महान कार्यों को सम्पूर्ण राष्ट्र नमन करता है और जो जीवित रहते ही वंदनीय हो जाते हैं, अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) भी उन श्रेष्ठ महापुरुषों में से एक थे। उन्होंने स्वयं अपने जीवन के लिए कभी कोई मार्ग निर्धारित नहीं किया। उनका बस एक ही मार्ग था, जनकल्याण। जनकल्याण के मार्ग के मार्ग पर चलते चलते नियति ने उन्हें जहां मोड़ा वे मुड़ गए। ‘रार नहीं ठानूंगा, हार नहीं मानूंगा…’ अपने पथ पर अनवरत यात्रा, कोई जिद्द नहीं कोई संघर्ष नहीं। बस नियति की इच्छा ही सर्वोपरि थी उनके लिए।

वे श्रेष्ठतम कविता करते थे लेकिन उन्होंने कभी कवि बनना नहीं चाहा। कविता उनके लिए मां सरस्वती का वरदान थी जो उनके होंठो से स्वतः फूट पड़ती थी। इसलिए उन्होंने कविताओं को अपने हृदय की अनकही भावनाएं व्यक्त करने का माध्यम बन लिया।

यहां पढ़िए अटल की 6 कविताएं-

1- सूर्य एक सत्य है

जिसे झुठलाया नहीं जा सकता

मगर ओस भी तो एक सच्चाई है

यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है

क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊं?

कण-कण में बिखरे सौन्दर्य को पिऊं?

सूर्य तो फिर भी उगेगा,

धूप तो फिर भी खिलेगी,

लेकिन मेरी बगीची की

हरी-हरी दूब पर,

ओस की बूंद

हर मौसम में नहीं मिलेगी।

 

2-  खून क्यों सफेद हो गया?

भेद में अभेद खो गया.

बंट गये शहीद, गीत कट गए,

कलेजे में कटार दड़ गई.

दूध में दरार पड़ गई.

खेतों में बारूदी गंध,

टूट गये नानक के छंद

सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है.

वसंत से बहार झड़ गई

दूध में दरार पड़ गई.

अपनी ही छाया से बैर,

गले लगने लगे हैं ग़ैर,

ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता.

बात बनाएं, बिगड़ गई.

दूध में दरार पड़ गई.

 

3- क्षमा करो बापू! तुम हमको,

बचन भंग के हम अपराधी,

राजघाट को किया अपावन,

मंज़िल भूले, यात्रा आधी।

जयप्रकाश जी! रखो भरोसा,

टूटे सपनों को जोड़ेंगे।

चिताभस्म की चिंगारी से,

अन्धकार के गढ़ तोड़ेंगे।

 

4-  कौरव कौन

कौन पांडव,

टेढ़ा सवाल है।

दोनों ओर शकुनि

का फैला

कूटजाल है।

धर्मराज ने छोड़ी नहीं

जुए की लत है।

हर पंचायत में

पांचाली

अपमानित है।

बिना कृष्ण के

आज

महाभारत होना है,

कोई राजा बने,

रंक को तो रोना है।

 

5- ठन गई!

मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,

मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,

यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,

ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,

लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूं?

तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ,

सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,

शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,

दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,

न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,

आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,

नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है।

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,

देख तेवर तूफां का, तेवरी तन गई।

ठन गई!

मौत से ठन गई!

6- दो अनुभूतियां

-पहली अनुभूति

बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं

लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं

पीठ मे छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं

-दूसरी अनुभूति

गीत नया गाता हूं

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात

प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूं
गीत नया गाता हूं

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,

काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं

राजनीति भी उनके लिए किसी पद तक पहुंचने का मार्ग नहीं रही। पद की परवाह उन्हें थी भी कहां। उन्होंने जब यह देखा कि कोई व्यक्ति राष्ट्र के साथ अन्याय कर रहा है तो उन्होंने विरोध करने में कोई कोताही नही की, चाहे वो व्यक्ति कोई भी रहा हो। जब उन्हें यह लगा की सत्ता ने देश के लिए अच्छा कार्य किया है तो सत्ता चाहे जिसकी भी रही हो उसकी प्रशंसा भी खुले दिल से की।

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