एक नेता जिसने अपने ससुर नेहरू से की बगावत, मजबूरन वित्त मंत्री ने दिया इस्तीफा

1958 में  फिरोज गांधी (Feroze Gandhi) को  दिल का दौरा पड़ा और उन्हें काफी दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा। ये वो वक्त था जब उनकी पत्नी अपने प्रधानमंत्री पिता जवाहर लाल नेहरू जी के साथ ही उनके आवास में रहती थीं।

Feroze Gandhi फिरोज गांधी

Feroze Gandhi Death Anniversary II फिरोज गांधी पुण्यतिथि

Feroze Gandhi Death Anniversary : भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, निडर पत्रकार और आजादी के बाद देश के सबसे प्रभावी लोकसभा सांसदों में से एक थे फिरोज गांधी (Feroze Gandhi)। एक ऐसा शख्स जिसके ससूर देश के पहले प्रधानमंत्री बने, जिनकी पत्नी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं, जिनका बड़ा बेटा देश का पहला युवा प्रधानमंत्री बना, जिनकी बहुओं और पोतों की गिनती आज देश के बड़े नेताओं में होती है। ऐसे व्यक्तित्व वाले शख्स को ये देश भूल गया है। फिरोज गांधी ने देश की कई नामी संस्थाओं का राष्ट्रीयकरण कराया। इनमें इंश्योरेंस सेक्टर की कंपनी एलआईसी भी शामिल है। भारत की आठ रत्न कंपनियों में से एक इंडियन ऑयल का पहला चेयरमैन उनको ही बनाया गया।

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Feroze Gandhi

 फिरोज गांधी का असली नाम फिरोज जहांगीर घंडी है। फिरोज गांधी (Feroze Gandhi) का जन्म 12 सिंतबर 1912 को मुंबई में एक पारसी परिवार में हुआ। फिरोज के पिता फरिदून जहांगीर घंडी एक मरीन इंजीनियर थे। उनकी माता का नाम रतिमई था। फिरोज के दो भाई और दो बहनें भी थीं, वो अपने माता-पिता के सबसे छोटे बेटे थे।

 1920 में फिरोज के पिताजी की मृत्यु हो गई। पति की अकास्मिक मृत्यु के दर्द से उबरने के लिए फिरोज की मां उन्हें लेकर अपनी बहन के पास इलाहाबाद आ गईं। फिरोज की माध्यमिक शिक्षा और स्नातक की पढ़ाई इलाहाबाद में ही हुई।

इंदिरा गांधी से फिरोज की पहली मुलाकात इलाहाबाद में ही एक महिला प्रदर्शन के दौरान हुई, जिसमें इंदिरा की मां कमला नेहरू बेहोश हो गईं थी और उन्हें अस्पताल पहुंचाने वाले फिरोज ही थे। सन 1930 में भारत में गांधी जी के नेतृत्व में स्वतंत्रा आंदोलन तेज हो गया था और यही वो समय था जब फिरोज ने अपनी पढ़ाई छोड़कर गांधी के बताए मार्ग पर चलने लगे।

इस दौरान फिरोज गांधी जी से इस कदर प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने नाम फिरोज जहांगीर घंड़ी में से घंडी को हटाकर गांधी रख लिया। ये ही वो वक्त था जब आंदोलन के कारण उनको लाल बहादुर शास्त्री के साथ 19 महीने जेल में भी रहना पड़ा।

 जेल से रिहा होने के बाद वो उत्तर प्रदेश में नेहरू के नेतृत्व में चल रहे कृषि पर लग रहे लगान का विरोध शुरू किया। जिसके कारण उन्हें दो बार और जेल जाना पड़ा। हालांकि इस दौरान वो नेहरू जी के काफी करीब हो गए थे।

फिरोज ने 1933 में पहली बार इंदिरा गांधी को प्रपोज किया था, लेकिन इंदिरा की मां कमला नेहरू को ये रिश्ता पसंद नहीं था। 1936 में गंभीर बीमारी के कारण कमला जी की मृत्यु हो गई। जिसके बाद इंदिरा लंदन चली गईं, इसी दौरान फिरोज को भी लंदन जाने का मौका मिल गया और दोनों में प्रेम प्रगाण होता गया। लंदन से भारत लौटकर 1942 में दोनों ने हिंदु रीति-रिवाज से शादी कर ली। हालांकि शुरुआत में नेहरू जी को ये रिश्ता पसंद नहीं था और उन्होंने गांधी जी से इस मामले में दखल देने की दरखास्त की थी। लेकिन गांधी जी के समझाने पर वो मान गए।

 1946 में फिरोज को लखनऊ में नेशनल हेराल्ड समाचार पत्र के संपादक  का पदभार सौंपा गया। 1950 में देश की आजादी के बाद फिरोज को 2 साल के लिए प्रांतीय संसद का सदस्य बनाया गया और यहीं से उनका राजनीति में प्रवेश हुआ। 1952 में हुए आम चुनावों में फिरोज ने रायबरेली सीट से जीत हासिल की। इस बीच फिरोज ने लखनऊ छोड़कर अपनी पत्नी और ससुर के साथ प्रधानमंत्री आवास में रहने लगे। लेकिन यहां इंदिरा जी का ज्यादातर समय अपने प्रधानमंत्री पिता के इर्द-गिर्द ही था। 1956 में फिरोज ने प्रधानमंत्री आवास और पत्नी को छोड़कर एक साधारण से सांसद आवास में रहने लगे। 1957 में हुए आम चुनावों में वो एक बार फिर से रायबरेली सीट से चुने गए।

ये वो वक्त था जब सरकार के कामकाज में देश के नामी कारोबारियों की दखल होने लगी। तत्कालिन संसद के कई नेता भ्रष्टाचार में लिप्त थे। फिरोज गांधी (Feroze Gandhi) से ये सब देखा नहीं गया और उन्होंने इस भ्रष्टाचार के लिए अपने ससुर की ही सरकार को आड़े हाथों लेना शुरू कर दिया। फिरोज ने प्रधानमंत्री के विदेश नीति की भी कड़ी आलोचना की। सन 1958 में लोकसभा में उन्होंने सरकारी नियंत्रण की एलआईसी बीमा कंपनी के भ्रष्टाचार में शामिल होने का मुद्दा उठाया था। इससे नेहरू के साफ-सुथरी सरकार को बहुत बड़ा झटका लगा। नतीजन सरकार के वित्त मंत्री टी.टी. कृष्णामचारी को इस्तीफा देना पड़ा। इतना ही नहीं उन्होंने अपने पारसी कारोबारी टाटा इंजिनियर और टेल्को के राष्ट्रीकरण के लिए आवाज उठाई क्योंकि ये दोनो कंपनियां रेल इंजन के लिए सरकार से जापानी कंपनी की तुलना में दोगुने दाम वसूलते थे। फिरोज के इस कदम से पूरे पारसी समाज में हलचल मच गई थी।

1958 में  फिरोज गांधी (Feroze Gandhi) को  दिल का दौरा पड़ा और उन्हें काफी दिनों तक अस्पताल में रहना पड़ा। ये वो वक्त था जब उनकी पत्नी अपने प्रधानमंत्री पिता जवाहर लाल नेहरू जी के साथ ही उनके आवास में रहती थीं और सरकार के काम से तब वो भूटान गईं थी। जब इंदिरा जी को फिरोज की बीमारी के बारे में पता चला तो वो उनसे मिलने अस्पताल गईं थीं। थोड़े ही दिनों बाद फिरोज स्वस्थ्य होकर वापस अपने काम में लग गए। लेकिन 1960 में उन्हें दोबारा दिल का दौरा पड़ा और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। विडंबना तो ये रही कि इस बार भी इंदिरा जी महिला सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए केरल गईं थी। जैसे ही उन्हें फिरोज के बारे में ज्ञात हुआ वो फौरन वापस दिल्ली आईं। लेकिन इस बार फिरोज को बचाया नहीं जा सका और मौजूदा गांधी परिवार का जनक 8 सितंबर, 1960 को देश की राजनीति और लोगों की स्मृति पटल से हमेशा-हमेशा के लिए ओझल हो गया।

 

 

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