पुण्यतिथि विशेष: धीरूभाई अंबानी की कामयाबी का मंत्र, “बड़ा सोचो, तेज सोचो, दूसरों से पहले सोचो और अपनी कीमत को समझो“

सन् 1966 में धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) ने मसालों का व्यापार छोड़ दिया और सूत का व्यापार करने लगे। उन्होंने नरोदा, गुजरात में वस्त्र-निर्माण इकाई आरंभ की। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

Dhirubhai Ambani

Dhirubhai Ambani Death Anniversary

गरीब परिवार से संबंध रखनेवाले धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) का जन्म सन् 1932 में जूनागढ़ (गुजरात) में एक गरीब शिक्षक हीराचंद अंबानी के घर हुआ। बचपन से ही उनका मन पढ़ाई-लिखाई में नहीं लगा। उन्होंने केवल दसवीं तक स्कूली शिक्षा प्राप्त की। सत्रह साल की उम्र में नौकरी की तलाश में वे यमन के शहर अदन आ गए और अ. बेससे नामक कंपनी में 300 रुपए के वेतन पर डिस्पैच क्लर्क की नौकरी करने लगे। वहीं से धीरूभाई के मन में व्यवसाय की बारीकियाँ जानने को लेकर उत्सुकता पैदा हुई। अ. बेससे में नौकरी करते हुए वे एक गुजराती व्यावसायिक कंपनी में भी काम करते थे और वहाँ से शिपिंग पेपर्स तैयार करना सीखा। उन्होंने लेखा-जोखा, वित्तीय विभाग का काम और उनका मन काम में नहीं लगता था। वे अकसर मन-ही-मन सोचते कि यहाँ जितने घंटे मैं काम करता हूँ, यदि उतने ही घंटे मैं अपने लिए काम करूँगा तो एक दिन में कितना कमा सकता हूँ और एक महीने में इतना तो एक साल में उतना।

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एक दिन उन्होंने अपना काम शुरू करने का फैसला कर लिया और भारत लौट आए। नौ साल बाद भारत लौटकर धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) ने अपनी पहली कंपनी ‘रिलायंस कॉमर्शियल’ की स्थापना की। सन् 1965 में उन्होंने चंपकलाल दमानी के साथ साझे में पंद्रह हजार की पूँजी लगाकर मसालों का व्यापार आरंभ किया, लेकिन जल्दी ही उन्हें एहसास हो गया कि यदि वे मसालों की बजाय सूत का व्यापार करेंगे तो इसमें उन्हें फायदा ज्यादा होगा।

सन् 1966 में धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) ने मसालों का व्यापार छोड़ दिया और सूत का व्यापार करने लगे। उन्होंने नरोदा, गुजरात में वस्त्र-निर्माण इकाई आरंभ की। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे दिन-रात मेहनत करते थे। अपनी मेहनत, लगन और बुद्धि से उन्होंने रिलायंस को देश की सबसे बड़ी कंपनी बना दिया। उन्होंने सन् 1977 में पूँजी बाजार में अपनी योजनाओं को वित्तीय रूप दिया। उन्होंने अपने दम पर भारतीय शेयर बाजार का नक्शा ही बदल दिया। मध्यम वर्गीय लोगों को अपना निवेशक बनाया। इस प्रकार धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) ने देश में एक नई निवेशक नीति आरंभ की। जिसमें आम जनता को उन्होंने अपने शेयर बेचे। रिलायंस ग्रुप ने देश में 500 कंपनियों का कॉर्पोरेशन तैयार किया, जो अपने आप में एक मिसाल है।

“बड़ा सोचो, तेजी से छोटी व सबसे पहले सोचो, विचारों पर किसी का एकाधिकार नहीं होगा,” की सोच रखने वाले रिलायंस कंपनी के संस्थापक धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) की सफलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने सन् 1959 में अपना बिजनेस मात्र 15,000 रुपए की पूंजी से आरंभ किया और सन् 2002 में जब उनकी मृत्यु हुई, उस समय रिलायंस ग्रुप की सकल संपत्ति 60,000 करोड़ के लगभग थी। धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) ने पॉलिस्टर, पैट्रोकेमिकल, तेल-शोधक कारखाने व तेल की खोज का अरबों डॉलर का कॉर्पोरेशन तैयार किया। 6 जुलाई, 2002 को उनका निधन हो गया।

धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) को अनेक पुरस्कार व सम्मान मिले। भारत सरकार द्वारा उनकी स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया गया एशियन बिजनेस लीडरशिप फोरम अवार्ड (ए.बी.एल.एफ, ग्लोबल एशियन अवार्ड) 2011 में मरणोपरांत सम्मानित। भारत में केमिकल उद्योग के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए ‘केमटेक फाउंडेशन एंड केमिकल इंजीनियरिंग वर्ल्ड’ द्वारा ‘ मैन ऑफ द सेंचुरी’ सम्मान, 2000। एशिया वीक पत्रिका द्वारा वर्ष 1996-1998 और 2000 में ‘पॉवर 50 : मोस्ट पावरफुल पीपल इन एशिया’ की सूची में शामिल। वर्ष 1998 में पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय द्वारा प्रति नेतृत्व के लिए ‘डीन मैडल’ प्रदान किया गया। वर्ष 2001 में ‘इकोनॉमिक टाइम्स अवार्ड्स फॉर कॉर्पोरेट एक्सीलेंस’ के अंतर्गत लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड। फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री, फिक्की द्वारा 20वीं सदी के महान भारतीय उद्योग का दर्जा दिया गया।

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