देशभर में CAA-NRC पर हिंसा फैला रहे अर्बन नक्सली हुए बेनकाब

कर्नाटक में हाल के समय में कथित बौद्धिकों जिनमें साहित्यकार, अभिनेता, कॉरपोरेट दिग्गज, पुराने वामपंथी, कुछ नये तकनीकविद् और नरेंद्र मोदी से विद्वेश पाले लोग शामिल हैं, ने दुखद आचरण दिखाया। मुहावरे में कहें तो मुंह की भी खाई जब उन्हें खून से रंगे हाथों के साथ पकड़ा गया। ये वही लोग हैं जो अर्बन नक्सल (Urban Naxal) को प्रसारित-प्रचारित कर रहे हैं।

Urban Naxal

अर्बन नक्सल (Urban Naxal) के रूप में उभरे इन लोगों ने केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित सीएए-एनआरसी कानूनों के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। दिसंबर के तीसरे हफ्ते में दो दिनों तक अर्बन नक्सल (Urban Naxal) जो बीजेपी केंद्र सरकार या मोदी की आलोचना का रंच भर मौका भी नहीं छोड़ते, कर्नाटक के बेंग्लुरू, मेंगलुरू, उडुपी, गुलवर्ग, हुवली, धारवाड़ और अन्य स्थानों पर तोड़फोड़ पर उतारू रहे। लोगों को विश्वास दिलाने में जुटे रहे कि सीएए व एनसीआर, आपस में जुड़ी और भारतीय-विरोधी भी नीतियां हैं। इनके जाने-बूढे दुष्प्रचार से राज्य में खासकर सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील मेंगलुरू-उडुपी जैसे इलाकों और तटीय पटी में बड़े स्तर पर हिंसा भड़की। ये क्षेत्र उकसाने भर से सांप्रदायिक हिंसा में सुलग उठने के लिए जाने जाते हैं। मेंगलुरू में हिंसा के बाद पुलिस की गोली से दो प्रदर्शनकारी मारे गए। इस घटना से अर्बन नक्सलों को दर्शाने का मौका हाथ लग गया कि सीएए-एनसीआर जन-विरोधी हैं, और इनके विरोध में ही बड़ी संख्या में लोग हिंसा पर उतारू हुए। इस घटना को उठाते हुए अर्बन नक्सल (Urban Naxal) चाहते थे कि कानून तत्काल वापस लिए जाए। ऐसा नहीं हुआ तो और हिंसा भड़केगी, और मौतें होगी। इतना ही नहीं, अर्बन नक्सलियों ने यहां तक आरोप लगा दिया कि राज्य में आसीन बीजेपी सरकार के  निर्देश पर पुलिस ने गोली चलाई।

भारतीय संविधान और मानवाधिकार के शांतिपूर्ण हामियों के विरोध प्रदर्शनों पर बर्बर हिंसक कार्रवाई की। राज्य में बड़े स्तर पर हुई अप्रत्याशित हिंसा से सरकार तक को शायद लगने लगा कि कानून में कुछ गलत हो गया है और करीब दो दिनों तक हिंसा पर कोई टिप्पणी किए बिना वह खोल में दुबक सी गई। लेकिन पुलिस विभाग द्वारा एक वीडियो फुटेज जारी किए जाने पर पूरा परिदृश्य ही बदल गया। पता चला कि अपने मंसूबे पूरा करने के लिए अर्बन नक्सल (Urban Naxal) किस हद तक जा सकते हैं। वीडियो से पता चलता है कि हिंसा पूर्व-नियोजित थी। इसमें नकाबपोश प्रदर्शनकारी सीसीटीवी नष्ट करते दिखलाई पड़ रहे हैं, पेट्रोल बम फेंकते और लोहे की छड़े हाथों में लहराते दिख रहे हैं। वे जानबूझकर अल्पसंख्यकों की दुकानें और दफ्तरों को नष्ट कर रहे थे ताकि लगे कि हमलों के पीछे हिंदू थे। इस बात का ध्यान रखते हुए वे चुन-चुन कर अल्पसंख्यकों की दुकानों और प्रतिष्ठानों को नुकसान पहुंचाने में जुटे थे।

दो दिन तक चली हिंसा के दौरान अनेक सरकारी बसों, पुलिस वाहनों, दुपहियों और सार्वजनिक संपत्ति को आग के हवाले कर दिया गया। वीडियो के प्रकाश में आने और स्थानीय न्यूज चैनलों पर लगातार दिखाए जाने पर अर्बन नक्सली छिप गए। उन्हें अल्पसंख्यक समुदायों का ही डर नहीं सता रहा था, बल्कि यह भय भी लग रहा था कि कहीं आम लोग, जिन्हें बेवजह हिंसा का शिकार होना पड़ा, उनके खिलाफ हिंसक न हो उठें। सीधी सी बात है कि शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों ने नकाब क्यों डाले थे। सार्वजनिक संपत्ति को आग के हवाले क्यों किया। पुलिस को मुख्य सड़कों पर आने से रोकने के लिए सड़कों पर अवरोध क्यों लगाए।

इतिहास में आज का दिन – 7 जनवरी

अकेले दिखे पुलिसकर्मियों पर हमले कयों किए? इन सवालों के जवाब देने के बजाय अर्बन नक्सल (Urban Naxal), जिन्हें पूर्व मुख्यमंत्रियों सिद्धारमैया और एचडी कुमारस्वामी जैसे विपक्ष के राजनेताओं का पूरा समर्थन हासिल है, ने कहा कि शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों की छवि खराब करने के लिए बीजेपी शासित सरकार ने ही हिंसा करवाई। वीडियो मिलने के बाद पुलिस ने कार्रवाई करते हुए कुछ प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया। राज्य सरकार को यह जानकर झटका लगा कि गिरफ्तार किए गए लोगों में अनेक पड़ोसी राज्य केरल के हैं और पॉप्यूलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) से जुड़े हैं। राज्य सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को पीएफआई को प्रतिबंधित किए जाने के लिए लिखा है। यह वीडियो सार्वजनिक होने के तत्काल बाद कांग्रेस और जनता दल नेता प्रदर्शनकारियों को समर्थन देने से पीछे हट गए हैं। अर्बन नक्सलियों को सख्ता संदेश देने के लिए राज्य सरकार की तरह ही कार्रवाई करने की सोच रही है। चाहती है कि हिंसा की जमीन तैयार करने वालों से हिंसा में हुए सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की वसूली की जाए।

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