कुलभूषण जाधव ही नहीं यह सभी भी पाकिस्तान की जेलों में बिता चुके हैं कई साल…

इसी तरह भारत के एक युवा हामिद अंसारी को उन्होंने बिना किसी बात के छह साल कड़ी कैद में रखा। बाद में बहुत एहसान जताकर उसे छोड़ा गया।

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कुलभूषण की तरह ही सरबजीत सिंह और चमेल सिंह की कहानी भी।

पाकिस्तान की जेल में बंद कुलभूषण जाधव के मामले में 17 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय अदालत ने अपना फैसला सुनाया। यह फैसला भारत के पक्ष में रहा और जाधव की फांसा पर रोक लगा दी गई। लेकिन यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान ने इस तरह की घटिया हरकत की है। कुलभूषण जाधव अकेले ऐसे भारतीय नहीं हैं जिन्हें पाक में इस तरह गैरकानूनी ढंग से कैद किया गया है और जासूस होने का आरोप लगाया है। पहले भी ऐसे कई मामले थे जिनमें भारतीय नागरिकों को पाकिस्तान ने गैरकानूनी ढंग से कैद कर लिया था। सरबजीत सिंह और चमेल सिंह, जिनको उनके कोर्ट ने बरी कर दिया था, उन्हें पाकिस्तानी स्टेट ने कैद में ही मार डाला था।

पंजाब के किसान सरबजीत को भी पाकिस्तान में आतंकवाद के झूठे आरोपों में फंसा दिया गया था। वह अनजाने में अगस्त, 1990 को सीमापार पाकिस्तानी इलाके में पहुंच गए थे। सरबजीत पर लाहौर और फैसलाबाद में बम विस्फोट करने का आरोप लगाया गया और इस आरोप में पाकिस्तान की स्थानीय अदालत ने उन्हें 1991 में मौत की सजा सुना दी। इसके बाद पाकिस्तान की शीर्ष अदालत ने भी उनकी सजा बरकरार रखी। उनको अपना जुर्म कबूल करने के लिए न जाने कितनी यातनाएं दी गईं। जबकि बम विस्फोट के संबंध में पाकिस्तान के पास उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं था। हालांकि क्षमा याचिका दाखिल किए जाने पर उनकी मौत की सजा बार-बार टलती रही।

इस दौरान भारत बार-बार उनको रिहा करने की मांग करता रहा। भारत इस रुख पर कायम रहा कि वह कोई जासूस नहीं थे। सरबजीत की बहन दलबीर कौर ने इसके लिए बहुत ही संघर्ष किया था। फिर बाद में उन्हें बरी कर दिया गया था और वह पाकिस्तान की कैद से रिहा होकर वतन वापस आने ही वाले थे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। रिहाई से पहले सरबजीत पर अप्रैल, 2013 को लाहौर की कोट लखपत जेल में कैदियों ने बर्बरता से हमला कर उनको जख्मी कर दिया था। हालांकि इस हमले के मामले में पाकिस्तानी जेल के अधिकारियों पर संदेह जताया गया था। अस्पताल में उनसे मिलने के लिए गए उनके परिवार के सदस्यों ने बताया कि हमले में जेल के अधिकारी भी शामिल थे।

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पाकिस्तान सरकार ने दो मई 2013 को घोषणा की थी कि घायल होने के कारण सरबजीत की मौत हो गई। पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ता अंसार बर्नी ने उन्हें इंसाफ दिलाने की पूरी कोशिश की, लेकिन सेना और कट्टरपंथी इस्लामी गुट के दबाव में पाकिस्तान सरकार ने उनकी आवाज को नजरंदाज कर दिया। सरबजीत का पाकिस्तान में पकड़ा जाना और उनको मौत की सजा सुनाए जाने का मामला जाधव जैसा ही था। हालांकि सरबजीत के मामले में भारत ने अंतर्राष्ट्रीय अदालत का दरवाजा नहीं खटखटाया था। लेकिन जाधव के मामले में भारत ने मामले को अंतर्राष्ट्रीय अदालत में चुनौती दी है।

इसी तरह भारत के एक युवा हामिद अंसारी को उन्होंने बिना किसी बात के छह साल कड़ी कैद में रखा। बाद में बहुत एहसान जताकर उसे छोड़ा गया। इसके अलावा दिल्ली स्थित हजरत निजामुद्दीन दरगाह के प्रमुख मौलवी पाकिस्तान गए थे। उन्हें भी आईएसआई अगवा करके कहीं ले गया। तीन चार दिन उनके साथ बहुत मार-पीट की गई। इन सभी घटनाओं से जाहिर होता है कि भारतीय नागरिक पाकिस्तान में असुरक्षित हैं। यह भारतीय नागरिकों की सुरक्षा का सवाल है, जो गलती से या किसी कारण से पाकिस्तान में पहुंचे जाते हैं। यही कुलभूषण जाधव के मामले में भी हुआ है। कहते हैं कि किसी चरमपंथी गुट ने ईरान से कुलभूषण जाधव का अपहरण करके आईएसआई को बेच दिया था।

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