डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस। (फाइल फोटो)
डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस (Dwarkanath Kotnis) अपनी पोस्ट-डॉक्टोरल डिग्री कर रहे थे, तभी उनके पास एक फोन कॉल आई, जिसके बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई।
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद चल रहा है। बॉर्डर पर अभी भी तनाव का माहौल बना हुआ है। हालांकि, एक समय ऐसा भी था, जब चीन के लोग भारतीयों की बहुत इज्जत करते थे, एक भाईचारे का माहौल हुआ करता था। इन सब का कारण डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस (Dwarkanath Kotnis) थे। जिनके इलाज की वजह से हजारों चीनी सैनिकों और नागरिकों की जान बची थी।
ये बात उस समय की है जब चीन में युद्ध के दौरान घायल सैनिकों और लोगों के इलाज के लिए डॉक्टरों की कमी हो गई थी तब भारत से पांच डॉक्टरों की टीम का मध्य चीन भेजा गया था। वहां पर डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस ने 2000 से ज्यादा लोगों को सर्जरी कर उन्हें ठीक किया था। इसके बाद चीन में डॉ. कोटनिस और भारतीयों को लेकर अच्छी तस्वीर बन गई थी।
कौन थे डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस: डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस (Dwarkanath Kotnis) का जन्म महाराष्ट्र को सोलापुर जिले में हुआ था। कोटनिस बॉम्बे यूनिवर्सिटी के जीएस मेडिकल कॉलेज में मेडिकल साइंस की पढ़ाई की थी। इसके बाद वो अपनी पोस्ट-डॉक्टोरल डिग्री कर रहे थे, तभी उनके पास एक फोन कॉल आई, जिसके बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई।
और बदल गई उनकी जिंदगी: साल 1938 में चीन और जापान के बीच युद्ध चल रहा था, चीन में जापानी सैनिकों की घुसपैठ की थी। जिसमें चीन के कई सैनिक घायल हो गए थे। चीन में डॉक्टरों और चिकित्साकर्मियों की बेहद कमी थी, लेकिन चीन में ऐसा कोई नहीं था जो इसका इलाज कर सकता हो.चीन के नेता झू डे ने इंडियन नेशनल कांग्रेस से मदद मांगी थी। भारत की तरफ से डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस (Dwarkanath Kotnis) को भेजा गया था।
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जब भेजा गया चीन: जवाहर लाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस ने पांच डॉक्टरों की टीम को चीन भेजा था, जिसमें से एक डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस भी थे। चीनी न्यूज एजेंसी शिन्हुआ के अनुसार, नॉर्थ चाइना मार्टियर्स मेमोरियल सिमेट्री के शोधकर्ता लोउ यू ने डॉ. कोटनिस पर रिसर्च किया था, जिसमें उन्हें पता चला कि वो लोग अभी जिंदा है, जिनका इलाज डॉ. कोटनिस ने किया था। डॉ. कोटनिस एक ऐसे डॉक्टर थे कि जब वो घाव सिलते समय कोशिश करते थे कि ज्यादा दर्द न हो।
लगातार 72 घंटे तक की सर्जरी: लोउ ने बताया कि साल 1940 में डॉ. कोटनिस (Dwarkanath Kotnis) ने लगातार 72 घंटे सर्जरी की थी, इस दौराना उन्होंने 800 मरीजों का ऑपरेशन किया था। इसके अलावा लगातार 13 दिन तक बिना रुके सैनिकों और लोगों का इलाज करते रहे। इस दौरान उनके पिता की मौत हो गई लेकिन डॉ. कोटनिस चीन में ही रुके और घायल सैनिकों का इलाज करते रहे।
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चीनी उन्हें कहते थे ‘ओल्ड के’: चीन के लोग उन्हें प्यार से ‘ओल्ड के’ यानी डॉ. थॉटफुल कहते थे। साल 1941 डॉ. कोटनिस को बेथुने इंटरनेशनल पीस हॉस्पिटल का निदेशक बनाया गया। इस अस्पताल का नाम कनाडाई सर्जन नॉर्मन बेथुने के नाम पर रखा गया था, यहां पर डॉ. कोटनिस 2000 से ज्यादा लोगों का इलाज किया था।
एपिलेप्टिक सीजर का अटैक के कारण हुआ था निधन: डॉ. कोटनिस (Dwarkanath Kotnis) ने चीन में रहने के दौरान चीन की महिला गुओ क्वंगलान से शादी कर ली। वहां उन्हें एक बेटा हुआ, जिसका नाम था यिनहुआ रखा। डॉ. कोटनिस साल 1942 में सर्जरी को लेकर एक किताब लिख रहे थे तभी उन्हें एपिलेप्टिक सीजर का अटैक आया और 32 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। उस समय की चीनी नेता माओ ने कहा था कि चीन की सेना ने मददगार हाथ खो दिया है, चीन ने अपना दोस्त खो दिया है।
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चीन में लगाई गई है उनकी प्रतिमा: डॉ. द्वारकानाथ कोटनिस (Dwarkanath Kotnis) को आज भी उनके काम के लिए चीन में याद किया जाता है। उनकी सफेद समाधि पर आज भी चीन के लोग जाकर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उत्तर चीन के एक मेडिकल कॉलेज के बाहर उनकी प्रतिमा भी लगाई गई है। डॉ. कोटनिस के नाम पर हेबेई प्रांत के शिजियाहुआंग के दिहुआ मेडिकल साइंस सेकेंडरी स्पेशलाइज्ड स्कूल भी है।
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