Milkha Singh (File Photo)
साल 1960 में मिल्खा (Milkha Singh) को पाकिस्तान से बुलावा आया था, मगर मिल्खा पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे। दरअसल, विभाजन के दौरान की कठोर यादें उनके जेहन में थीं।
“मैं चाहूंगा कि मेरे दुनिया छोड़ने से पहले एक और मिल्खा भारत का नाम रोशन करे”- ये ख्वाहिश थी भारत के ‘फ्लाइंग सिख’ मिल्खा सिंह (Milkha Singh) की। मगर अफसोस कि उनकी ये इच्छा पूरी न हो सकी और वो 91 वर्ष की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह कर चले गए।
उन्हें कोरोना हो गया था। हालांकि, इलाज के बाद उनकी रिपोर्ट निगेटिव आई थी। पर, कोविड-19 के बाद पैदा हुई जटिलताओं के कारण मिल्खा सिंह की हालत गंभीर हो गई थी। तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में भर्ती किया गया था, जहां 18 जून को उनका निधन हो गया। वैसे तो मिल्खा सिंह से जुड़े कई किस्से हैं, मगर एक किस्सा ऐसा है जो उनके सरल व्यक्तित्व को उजागर करता है।
जवाहर लाल ने पूछा, ईनाम में क्या चाहिए
साल था 1958 का, भारत नया-नया आजाद हुआ था। मिल्खा अपने पहले पदक के इंतजार में थे। मिल्खा ने उस साल के राष्ट्रमंडल खेलों में अपने प्रतिद्वंदी मैल्कम स्पेंस को 440 गज की दौड़ में हराकर स्वर्ण पदक जीता। इंग्लैड की महारानी ने उन्हें गोल्ड मेडल पहनाया और जब उन्होंने भारतीय तिरंगे को ऊपर लहराते देखा तो वो अपने जज्बात पर काबू नहीं कर पाए और उनकी आंखों से आंसू छलक गए थे।
उसके बाद ब्रिटेन में भारत की उच्चायुक्त विजय लक्ष्मी पंडित दौड़ती हुई उनके पास पहुंची और बोलीं भारत से प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का संदेश आया है कि मिल्खा ईनाम में क्या लेना चाहेंगे। उस वक्त मिल्खा को कुछ समझ नहीं आया और उन्होंने कहा कि इस जीत के मौके पर पूरे भारत में एक दिन की छुट्टी कर दी जाए। और जिस दिन मिल्खा भारत की सरजमीं पर पहुंचे, प्रधानमंत्री नेहरू ने अपना दिया वादा पूरा किया।
मिल्खा सिंह का शुरुआती जीवन
20 नवंबर, 1929 को गुलाम भारत में जन्में मिल्खा (Milkha Singh) का शुरुआती जीवन मुश्किलों से भरा था। वह 15 भाई-बहन थे, जिनमें से 8 की मृत्यु विभाजन से पहले ही हो गई थी। बाद में भारत-पाकिस्तान का विभाजन भी उनकी जिंदगी में बड़ा भूचाल लेकर आया। बंटवारे के दौरान दंगों ने उनके माता-पिता, दो बहनों और एक भाई की जिंदगी छीन ली और मिल्खा अनाथ हो गए। साल 1947 में वो भारत आ गए।
जब मिली ‘फ्लाइंग सिंह’ की उपाधि
साल 1960 में मिल्खा (Milkha Singh) को पाकिस्तान से बुलावा आया था, मगर मिल्खा पाकिस्तान नहीं जाना चाहते थे। दरअसल, विभाजन के दौरान की कठोर यादें उनके जेहन में थीं। मगर नेहरू के कहने पर वो तैयार हो गए और पाकिस्तान के सर्वश्रेष्ठ धावक अब्दुल खालिक को केवल 20.7 सेकेंड में ही हरा दिया। जिसके बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खां ने मिल्खा से कहा था- “तुम दौड़े नहीं उड़े हो।” अयूब खां ने ही मिल्खा सिंह को ‘फ्लाइंग सिख’ का खिताब दिया था।
जब पत्नी निर्मल से मिले मिल्खा सिंह
साल 1955 में सीलोन में मिल्खा सिंह की निर्मल से मुलाकात हुई और 1962 में दोनों ने शादी कर ली। निर्मल बॉलीबॉल के महिला टीम की पूर्व कप्तान थीं। मिल्खा की तीन बेटियां और एक बेटा है। निर्मल, मिल्खा को सरदार जी कहकर पुकारा करती थीं। वहीं मिल्खा अपनी पत्नी को मामा कहकर बुलाते थे।
दोनों का साथ इतना मजबूत था कि मिल्खा और उनकी पत्नी ने दुनिया को अलविदा भी साथ-साथ किया। बीते 13 जून को मिल्खा सिंह की पत्नी का इंतकाल हुआ और उसके महज 5 दिन बाद 18 जून को मिल्खा खुद इस दुनिया को छोड़कर चले गए। बता दें कि उनके जीवन पर फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ बनाई गई है। इस फिल्म में फरहान अख्तर ने मिल्खा सिंह का किरदार निभाया था।
मिल्खा सिंह को मिले ये अवॉर्ड-
मिल्खा सिंह को साल 1959 में ‘पद्म श्री’ से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा,
• साल 1958 में 200 मीटर के एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता।
• साल 1958 में ही 400 मीटर के एशियन गेम्स में फिर से गोल्ड मेडल अपने नाम किया।
• 1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स में देश के लिए गोल्ड लेकर आए।
• 1962 में दो अलग-अलग कैटेगरी में एक बार फिर से एशियन गेम्स में भारत का नाम रोशन किया और गोल्ड जीता।
• 1964 के कोलकाता नेशनल गेम्स में सिल्वर मेडल अपने नाम किया।
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