
Chhattisgarh : इस राज्य का एक गौरवान्वित इतिहास रहा है। यहां का प्राचीनतम उल्लेख प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्मवेनसांग के यात्रा विवरण में मिलता है। उनकी यात्रा विवरण में लिखा है कि दक्षिण-कौसल की राजधानी सिरपुर थी। बौद्ध धर्म की महायान शाखा के संस्थापक बोधिसत्व नागार्जुन का आश्रम सिरपुर (श्रीपुर) में ही था। महाकवि कालिदास का जन्म भी छत्तीसगढ़ में माना जाता है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर छत्तीसगढ़ पर्यटकों के लिए हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहा है, यहां देश-विदेश से लाखों सैलानी हर साल आते हैं।
नवागढ़, कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान, चित्रकोट एवं तीरगढ़ वाटर फाल्स, रतनपुर, राजिम, सिविक सेंटर, महामाया, बमबलेश्वरी एवं जतमई मंदिर, तत्तापानी, मम फन सिटी, हाज़रा, चंपारन, तेलीबांधा, कांकेर महल, कैलाश और कूटुमसर गुफा, दलपत सागर झील, मैत्रीबाग चिड़ियाघर जैसे सैकड़ों प्राकृतिक सुंदरता से भरे हुए पर्यटन क्षेत्र हैं, जो क्षेत्र की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं।
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इतना सब कुछ होने के बावजूद छत्तीसगढ़ पर्यटन (Chhattisgarh Tourism) देसी सैलानियों को आकर्षित करने में उस हद तक कामयाब नहीं हो पा रहा है। पिछले पांच सालों का लेखा-जोखा देखें, तो छत्तीसगढ़ में विदेशी पर्यटकों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है, जो देसी सैलानियों की कमी की भरपाई तो कर रहा है। फिर भी देसी सैलानियों की संख्या बढ़ाने की दिशा में और भी ठोस कदम उठाए जाने की जरुरत है।
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बस्तर के चित्रकोट व तीरथगढ़ जैसे पर्यटन स्थलों पर हर साल आने वाले सैलानियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। विदेशी पर्यटकों की बात करें तो पिछले पांच सालों में इनकी संख्या लगभग दुगनी हो गई है। हर साल करीब दस हज़ार से अधिक विदेशी सैलानी छत्तीसगढ़ घूमने आते हैं।
पर्यटन स्थलों पर सैलानियों की संख्या बढ़ाने में विकास कार्यों की बहुत अहम भूमिका होती है। अगर मूलभूत ढांचा बेहतर नहीं होगा तो पर्यटकों की संख्या को बढ़ा पाना मुश्किल होगा। ऐसे में विदेशी सैलानियों की साल दर साल बढ़ती संख्या ये कहानी तो बयां करती है कि विकास कार्य हो रहे हैं, लेकिन इनकी रफ्तार और तेज करने की जरुरत है क्योंकि पर्यटन स्थलों के लिहाज से छत्तीसगढ़ बेहद समृद्ध राज्य है।
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