डॉ भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी (फाइल फोटो)
Father’s Day 2021: पिता की अहमियत जिंदगी में क्या होती है, इसे शब्दों में बताना बहुत मुश्किल है। ये एक ऐसी भावना है, जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है।
नई दिल्ली: देशभर में आज यानी 20 जून को फादर्स डे (Father’s Day 2021) मनाया जा रहा है। इस मौके पर सभी अपने पिता के लिए प्यार जता रहे हैं। सोशल मीडिया पर पिता के लिए पोस्ट किए गए संदेशों की बाढ़ आ गई है। ट्विटर पर भी #Fathersday ट्रेंड कर रहा है।
पिता की अहमियत जिंदगी में क्या होती है, इसे शब्दों में बताना बहुत मुश्किल है। ये एक ऐसी भावना है, जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। फादर्स डे के मौके पर आज हम आपको उन महापुरुषों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने एक पिता की भूमिका में देश के लिए अमूल्य योगदान दिया।
राजा राममोहन राय
राजा राममोहन राय को आधुनिक भारत का पिता (Father of Modern India) कहा जाता है। उन्होंने भारतीय समाज की कुरीतियों पर उस जमाने में उंगली उठाने का प्रयास किया था, जब सामाजिक और धार्मिक पहलू पर बहस करना असंभव बात थी। इन्होंने पूरी जिंदगी समाज सुधार और महिलाओं के हक के लिए काम किया। इनके प्रयासों की वजह से ही सती प्रथा और बाल विवाह पर चर्चा होना शुरु हुआ और यह कालिख हमारे समाज से खत्म हुई।
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मोहनदास करमचंद गांधी
आज अगर हम आजादी की सांस ले रहे हैं, तो उसमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का महान योगदान है। राष्ट्रपिता गांधी ने इस देश का हाथ उस समय थामा, जब सबसे ज्यादा जरूरत थी। महात्मा गांधी ने ही देश के नागरिकों का मार्गदर्शन किया और लोगों को समझाया कि बिना हिंसा के भी अपने हक के लिए लड़ा जा सकता है। एक पिता अपने बच्चे को यही समझाता है कि सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलो, जिसे बापू ने बखूबी अंजाम दिया।
डॉ भीमराव अंबेडकर
डॉ भीमराव अंबेडकर को भारतीय संविधान का पिता कहा जाता है। जब देश आजाद हुआ था तो मुल्क को अनुशासन की दरकार थी। जैसे किसी भी घर को पिता अनुशासित करता है, वैसे ही अंबेडकर ने देश के भीतर संविधान का मसौदा पेश कर देश में अनुशासन के नियम कानून तैयार तय किए। अंबेडकर संविधान सभा के प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। वह आजाद भारत के पहले कानून मंत्री भी बने। उन्होंने साल 1951 में हिंदू महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए हिंदू कोड बिल संसद में पेश किया। इस बिल को समर्थन ना मिलने और पास ना होने से आहत होकर उन्होंने स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।
ताराबाई शिंदे और सावित्रीबाई फुले
इन्हें भारत में नारीवाद का जनक कहा जाता है। ताराबाई शिंदे ने 19वीं शताब्दी में पितृसत्ता और जातिवाद का विरोध किया था। साल 1882 में ताराबाई ने स्त्री-पुरूष तुलना के नाम से एक मराठी पुस्तक लिखी थी, जिसे महिलावाद का पहला पाठ माना जाता है। वहीं सावित्रीबाई फुले को भारत की पहली महिला शिक्षिका और समाज सुधारक के रूप में जाना जाता है। ताराबाई शिंदे और सावित्रीबाई सहयोगी थे जिन्होंने महिला सुधार के लिए मिलकर काम किया। साल 1852 में सावित्रीबाई ने लड़कियों के लिए पहले स्कूल की स्थापना की थी।
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