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नक्सली रह चुकी इस महिला की कहानी उन लोगों के लिए सीख है जो हथियार उठाने के लिए बेताब हैं

पूर्व नक्सली भाग्यश्री- फाइल फोटो

वह कहती है, “भाग्यश्री की तरह रहना सरिताका की तरह रहने से ज्यादा संतुष्टि देता है।” 43वें होमगार्ड स्थापना दिवस पर `सारे जहां से अच्छा..` की धुन पर मार्च करती हुई पूर्व-नक्सली के. भाग्यश्री ने अपनी जिंदगी को भी नए सुरों से सजाने का प्रण लिया।

माओवादियों के इंदरवेली-दलम में पांच साल रहने के बाद, इचोडा मंडल के मनकापुर की भाग्यश्री ने 2002 में आत्मसमर्पण कर दिया। दल में उसे सरिताका के नाम से जाना जाता था। सरेंडर करने के अगले ही साल उसकी भर्ती होमगार्ड में हो गई। भाग्यश्री अब पुलिस की सांस्कृतिक-मंडली में शांति-गीत गाती हैं।

एक सामान्य नागरिक और जंगलों में अपने जीवन की तुलना करते हुए, वह उस .303 राइफल की ओर इशारा करती हैं जो वह परेड के लिए ले जा रही थीं। कहती हैं, “इससे पहले मैंने मारने के लिए हथियार उठाया था। अब मैं केवल बचाव के लिए राइफल उठाती हूं।”

भाग्यश्री ने माओवादियों से जुड़ने बाद तीन महीने तक हथियार चलाने का प्रशिक्षण लिया था। अपने पहले और अब के जीवन में तुलना करते हुए कहती हैं, “हमें इंसानों को निशाना बनाने के लिए सिखाया गया था। आग से बचने के तरीके भी सिखाए गए और आग लगने पर कवर कैसे लेना चाहिए, यह भी बताया गया था। पर यहां सब-कुछ बहुत अलग है। यहां किसी भी निर्दोष को निशाना नहीं बनाया जाता। यहां बच निकलने या भागने के लिए नहीं सिखाया जाता, बल्कि सामना करने के लिए सिखाया जाता है।”

होमगार्ड में प्रति माह 3,000 रूपए तनख्वाह मिलती है। इस स्थिर आमदनी ने भाग्यश्री के जीवन में भी एक ठहकाव ला दिया है। वह अपने इस जीवन में पहले वाली जिंदगी से ज्यादा खुश हैं, क्योंकि उनका एक खुशहाल परिवार है जहां उनको काम के बाद लौटकर आना होता है। याहां आकर वह सुकून की रोटी खा सकती हैं। कहती हैं, “शाम तक काम करने के बाद अपने परिवार के साथ रह सकते हैं।”

भाग्यश्री माओवादी-जीवन के बारे में सोचती हैं तो समझ आता है कि वह कितना कष्टकर था। कई दिनों तक भूखे–प्यासे रहना पड़ता था। बताती हैं, “हम बिना भोजन-पानी के चलते थे।” उन्होंने कहा, “जो भी नक्सलियों के रूप में काम कर रहे हैं, मैं उन सभी से अपील करती हूं कि शांति की जिंदगी चुन लें। भाग्यश्री होना, सरिताका होने से ज्यादा आसान है।”

भाग्यश्री का बदला हुआ जीवन उनकी तरह भटके ​​हुए लोगों के लिए एक सीख है।