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जब मुंबई में दौड़े नक्सल प्रभावित इलाकों के युवा, लोग देखते रह गए

नक्सल क्षेत्र के युवाओं ने लगाई मुंबई मैराथन में दौड़

Mumbai Marathon: 20 जनवरी को मुंबई में मैराथन दौड़ का आयोजन किया गया। वैसे तो 2004 से हर साल जनवरी के तीसरे रविवार को इस मैराथन का आयोजन होता आ रहा है। पर इस बार इसमें कुछ खास था। इस साल मैराथन में पहली बार नक्सल इलाकों के युवाओं ने हिस्सा लिया। गोंदिया और गढ़चिरौली जैसे नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के 151 आदिवासी युवाओं ने इस बार इस चर्चित रेस में भाग लिया। इन 151 लोगों में 34 महिलाएं थीं।

दरअसल पुलिस अधिकारियों की पहल पर ये युवा इस मैराथन में हिस्सा ले सके। इसके लिए गढ़चिरौली रेंज के डीआईजी अंकुश शिंदे, गोंदिया के एसपी हरीश बैजल और मुंबई के पूर्व डीसीपी, ट्रैफिक ने पहल की थी। गढ़चिरौली रेंज के डीआईजी अंकुश शिंदे को धावक कविता राउत की कहानी ने प्रेरणा दी। जब वह नासिक में तैनात थे उस दौरान उन्हें कविता की सफलता के बारे में पता चला कि किस तरह कविता पहाड़ी पर रोज 3 किलोमीटर चढ़ाई कर के पानी ले आती थीं। इससे रनिंग में उनकी रूचि जगी। फिर कोच विजेंद्र सिंह ने उनकी क्षमता को पहचाना और नासिक ले जाकर उन्हें ट्रेनिंग दी। ट्रेनर्स का भी कहना है कि कठिन परिस्थितियों में रहने की वजह से आदिवासी युवाओं की स्टैमिना काफी अच्छी होती है। नेचुरली ये स्ट्रांग और उच्च क्षमता वाले रनर होते हैं। अगर इनको सही ट्रेनिंग दी जाए और अच्छा माहौल मिले तो ये अपनी क्षमता का लोहा मनवा सकते हैं।

मुंबई मैराथन के लिए इन युवाओं के सेलेक्शन और मैराथन में इनकी एंट्री को लेकर आई कठिनाई के बारे में हरीश बैजल ने बताया कि उन्होंने प्रोकैम के जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर विवेक सिंह से बात की। प्रोकैम एक संस्था है जो इस तरह के मैराथन आयोजित करवाती है। उनके सुझाव पर उन्होंने पहले गोंदिया में ही एक मैराथन आयोजित किया। जिसमें इन लोगों की टाइमिंग और क्षमता देखी गई। इसके लिए 6 किलोमीटर की फुल, हाफ और मिनी मैराथन आयोजित की गई, जिसमें 7000 लोगों ने हिस्सा लिया। टाइमिंग के मुताबिक इन 7,000 लोगों में 151 धावक चुने गए। इसमें से 47 लोगों ने मुंबई मैराथन के 42 किलोमीटर की रेस में, 17 लोगों ने 21 किलमीटर रेस में और 87 लोगों ने 10 किलोमीटर रेस में भाग लिया। प्रोकैम ने इन सभी लोगों की रजिस्ट्रेशन फीस माफ कर दी थी। ऐसे मैराथन और रेस में लोगों को इनाम मिलता है लेकिन इस मैराथन का हिस्सा बनना ही इन युवाओं के लिए इनाम जैसा था। इसमें कई लोग तो ऐसे भी थे, जिन्होंने पहली बार मुंबई देखा।