Hindi News (हिंदी समाचार), News in Hindi, Latest News In Hindi

महिला नक्सलियों के साथ रेप, मारपीट और पत्नियों की अदला-बदली आम, एक पूर्व महिला नक्सली की आपबीती

शोभा मांडी : पूर्व नक्सली (फाइल फोटो)

माओवादी शिविरों में महिलाओं की ज़िंदगी सबसे मुश्किल होती है। उनका वहां जमकर शारीरिक शोषण किया जाता है। शिविरों में कुछ दिन गुजरते ही वे तमाम सपने और आदर्श ताश के पत्तों की तरह भरभरा कर ढह जाते हैं जिनके चलते महिलाएं इन नक्सली (Naxal) संगठनों में शामिल होती हैं- यह कोई कहानी नहीं बल्कि एक महिला माओवादी की डायरी के हिस्से हैं।

‘एक माओवादीर डायरी (एक माओवादी की डायरी)’ शीर्षक से बांग्ला में लिखी इस किताब ने माओवादी शिविरों में महिला कामरेड्स की हालत का खुलासा कर दिया। इसकी लेखिका कोई और नहीं एक पूर्व नक्सली (Naxal) है। शोभा मंडी ऊर्फ उमा ऊर्फ शिखा जिसने 2010 में सेरेंडर कर दिया था।

अपनी किताब में शोभा ने लिखा है कि उनके साथी कमांडर्स ने सात साल तक कई बार उनके साथ रेप किया। यह तब हुआ जब वह 25-30 सशस्त्र नक्सलियों की कमांडर थीं। उनके मुताबिक नक्सलियों के बीच पत्नियों की अदला-बदली, साथी महिला नक्सलियों को मारना-पीटना और रेप करना बेहद आम है। वह साफ तौर पर कहती हैं कि उनके साथ जो कुछ हुआ वह अकेला मामला नहीं था। उनकी किताब के अनुसार, वरिष्‍ठ माओवादी नेता संगठन की ज्‍यादातर महिलाओं का शोषण करते हैं।

दोनों हाथों से हथियार चलाने में है माहिर, शादी के दिन खूंखार महिला नक्सली गिरफ्तार

वरिष्‍ठ महिला माओवादी नेताओं के भी कई सेक्‍शुअल पार्टनर होते हैं। इतना ही नहीं, माओवादी अपने साथियों की पत्नियों पर भी बुरी नजर रखते हैं। शोभा के मुताबिक, ‘अगर कोई महिला गर्भवती हो जाती थी तो उसके पास गर्भपात कराने के अलावा कोई और विकल्‍प नहीं बचता था। बच्‍चे को परेशानी के तौर पर देखा जाता था जो गुरिल्‍लाओं की जिंदगी में बाधा डाल सकता था।’

वहां महिलाओं को खुश्बूदार साबुन या कोई भी सेंटेड चीज लगाने की इजाजत नहीं होती। क्योंकि इससे वे पकड़ी जा सकती हैं। शोभा बताती हैं, ‘हर महिला को वस्‍तु के तौर पर देखा जाता था जो सभी पुरुष काडर की वासना को तुष्‍ट करने का साधन मात्र थी। मैं नक्‍सल (Naxal) आंदोलन में 2003 में शामिल हुई थी क्‍योंकि मुझे विश्‍वास दिलाया गया था कि यह एक ऐसी व्‍यवस्‍था है जहां स्‍त्री और पुरुष को समान समझा जाता है। लेकिन मैंने वहां जो कुछ भी भुगता वह ग्रामीण महिलाओं के साथ होने वाले उत्‍पीड़न से भी ज्‍यादा भयावह है।’

शोभा मांडी की लिखी किताब : एक माओवादी की डायरी।

झारग्राम की एरिया कमांडर रही शोभा मंडी का कहना है कि किशनजी जैसे कुख्यात नक्सली (Naxal) नेता तक इस तरह के शोषण में शामिल थे। शोभा ने लिखा है, ‘मैंने कुछ नेताओं की हरकत की शिकायत किशनजी से की, लेकिन मेरी बात सबको बुरी लगी। मुझे संगठन में पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया और चेताया गया कि यदि मैंने विरोध किया तो खतरनाक नतीजे भुगतने होंगे।’

बांकुड़ा जिले की कोएरपहाड़ी की जमादार मांडी की बेटी शोभा चार भाई-बहनों में दूसरे नंबर की है। शोभा पढ़ाई में अच्छी थी लेकिन गणित में कमजोर थी। वह दिन भर काम करती और रात को पढ़ाई। हालांकि वह दसवीं-बोर्ड की परीक्षा नहीं पास कर पाई।

यह 2002 की बात है। शोभा का छोटा भाई 8वीं में था, नक्सली उसे पहले ही उठा ले गए थे और अपने दल में शामिल कर लिया था। बाद में वह जेल चला गया। उसके पिता शराबी थे, जिसकी वजह से उन्हें टीबी हो गया था। इलाज के लिए पैसे नहीं थे। सारी जमीन बेच दी थी और कर्ज भी ले रखा था।

ऐसे में एक दिन नक्सली-दल के कुछ सदस्य उसके घर आए। माओवादियों ने उसके परिवार को भरोसा दिलाया कि नक्सली (Naxal) संगठन में शामिल होने के बाद शोभा का जीवन बेहतर हो जाएगा। बकौल शोभा, ”हम गरीब थे। उनकी बातों में आकर मैं संगठन में शामिल हो गई। लेकिन वह जीवन का एक खौफनाक अनुभव रहा।”

Jinaza-e-Karobar: Mechanics of Funeral Procession of Militants

करीब सात साल तक इस खौफनाक दौर से गुजरने के बाद आखिर नक्सली (Naxal) शोभा ने तय किया कि अब बहुत हो गया। उसने पुलिस के आला अधिकारियों से संपर्क किया और हथियार डाल दिए। किताब में सीपीआई (माओवादी) संगठन और उसके ढांचे के बारे में काफी सूचनाएं हैं। शोभा ने लिखा है कि शीर्ष माओवादी नेता किशनजी संगठन में महिला काडरों के शोषण पर कोई ध्यान नहीं देता था।

उसने लिखा है, ”किशनजी ने एक खास राजनीतिक दल से जुड़े किसी व्यक्ति की हत्या करने का निर्देश दिया था। हमें कभी यह नहीं बताया गया कि आखिर बेकसूर लोगों की हत्या से क्या मिलेगा।” इसमें यह भी खुलासा किया गया है कि नवंबर 2011 में मारा गया किशनजी एक प्रमुख राजनीतिक दल का प्राथमिक सदस्य भी था। वह उस पार्टी के कई गहरे राज जानता था। इसीलिए कुछ राजनेताओं ने उसे मरवा दिया और इसे गौरवशाली ऑपरेशन का नाम दे दिया गया।

पढ़ें: जिस पुलिस को दुश्मन मानती थीं, वही संवार रही है जिंदगी

शोभा पुलिस के मोस्ट-वांटेड लिस्ट में थी। 2009-2010 के बीच हुए कई बड़े नक्सली (Naxal) हमलों में उसका हाथ था। 2007 में झारखंड के एमपी सुनील महतो के मर्डर में भी वह सस्पेक्ट थी। बापी महतो जैसे पीसीपीए के सदस्यों को भी उसने ही प्रशिक्षण दिया था। झारग्राम में उसने अकेले ही पीसीपीए को खड़ा किया था।

वहां वह दीदी के नाम से जानी जाती थी। उसकी संगठन-क्षमता देखकर माओ-नेताओं ने उसे पश्चिम मिदनापुर में आदिवासी-महिलाओं को संगठित करने की जिम्मेदारी दी थी। एक नक्सली साथी की पत्नी ने उसे उमा नाम दिया था, क्योंकि उसे वह उमा भारती जैसी दिखती थी।

शोभा ने साल 2010 में हथियार डालने के बाद सीपीआई (माओवादी) के राज्य सचिव कंचन समेत कई शीर्ष माओवादी नेताओं के खिलाफ रेप की एफआईआर कराई थी। शोभा मांडी की किताब का आना नक्सली (Naxal) आंदोलन के इतिहास में पहला मौका था, जिसमें किसी माओवादी नेता ने संगठन पर इस प्रकार के आरोप लगाए थे।

उसके बाद तो जैसे सिलसिला ही शुरू हो गया। झारखंड की ही रश्मि महली नाम की पूर्व माओवादी की आपबीती भी ऐसी है। इसके अलावा एक महिला नक्सली (Naxal) ने तो यहां तक बताया था कि उसके पति को जिंदा रखने के एवज में बड़े नक्सली नेता उसका यौन-शोषण करते रहे।

पूर्व नक्सली शोभा मांडी : सरेंडर के बाद अब स्कूल में पढ़ाती हैं

फिलहाल, शोभा रांची के पास अपने पैतृक गांव मिदनापुर के पुलिस लाइन में प्राइमरी-टीचर हैं। सेरेंडर करने के बाद वह मुख्यधारा में शामिल हुईं। सेकेंड्री और हायर-सेकेन्ड्री की पढ़ाई पूरी की। बाद में वहीं टीचर की नौकरी करने लगीं। उन्होंने शादी कर ली और उनका एक बच्चा भी है।

कहती हैं, “जो हुआ, सो हुआ। मैं खुश हूं। अब मेरा परिवार और स्टूडेंट्स ही मेरी जिंदगी हैं। मैं अपने बच्चे को भी अच्छी शिक्षा देना चाहती हूं।” स्कूल के हेडमास्टर कहते हैं कि वह बहुत मेहनती हैं। कभी कोई शिकायत का मौका नहीं दिया। रोज स्कूल आती हैं। आज उन्हें देखकर कोई नहीं कह सकता कि उनका अतीत ऐसा रहा होगा। वह बच्चों को पढ़ाती हैं और शांतिपूर्ण जीवन बिता रही हैं।

पढ़ें: फिल्मों जैसी है इस पूर्व नक्सली की लव स्टोरी, पढ़िए कैसे पहुंचाया अपने प्यार को शादी के अंजाम तक