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70 सालों से विश्व शांति के लिए तैनात हैं इंडियन आर्मी के जवान, जानिए किन विपरित परिस्थितियों में निभाते हैं फर्ज?

भारतीय सेना (Indian Army) की जांबाजी के किस्से तो सबने सुने होंगे। अपनी सरहद की निगहबानी के लिए जान की परवाह ना करने वाले सेना के दिलेर जवान बेगानी सरहदों पर भी किस कदर मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी को अंजाम देते हैं, इसका एक लंबा इतिहास है। बेगानी सरहदों पर ड्यूटी को अंजाम देने के सिलसिले के 70 साल पूरे हो गए हैं। 1950 में पहली बार भारतीय सेना (Indian Army) के जवानों ने संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशन में योगदान देना शुरू किया था।

 

1950 से लेकर अब तक भारतीय सेना (Indian Army) के जवानों ने संयुक्त राष्ट्र के कुल 71 शांति मिशन में हिस्सा लिया है। अब तक 10 लाख से ज्यादा भारतीय जवान संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में अपने फर्ज को अंजाम दे चुके हैं। फिलहाल, संयुक्त राष्ट्र के 10 शांति मिशन में 7000 से ज्यादा भारतीय सैनिक तैनात हैं। विश्व में शांति की स्थापना के लिए ये जवान दिन-रात काम करते हैं।

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भारतीय सेना (Indian Army) विश्व के उन इलाकों में तैनात है जो सबसे खतरनाक माने जाते हैं। वे वहां न केवल शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए काम कर रहे हैं, बल्कि वहां के नागरिकों की हर तरह से मदद भी करते हैं। उन इलाकों में कानून-व्यवस्था बहाल करने में मदद करते हैं। वहां काम कर रहे लोकल NGOs की भी मदद करते हैं।

2020 में भारत ने संयुक्त राष्ट्रसंघ में शांति स्थापना के 70 साल पूरे कर लिए हैं। यूएन इंट्रीम फोर्स इन लेबनान (UNIFIL) 1978 में इजराइल और लेबनान की सीमा पर स्थिति को नियंत्रित करने के लिए बनाई गई थी। भारत ने 1998 में UNIFIL ज्वॉइन किया था। इजराइल और लेबनान का सबसे बड़ा विवादित और सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्र सीबा है, जहां पिछले 20 सालों से भारतीय बटालियन ने स्थिति संभाला हुआ है।

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सीबा, सिरिया, इजराइल और लेबनान के ट्राइजंक्शन पर स्थित है। यहां इंडियन ट्रूप्स न केवल सीमा पर पहरा देते हैं बल्कि इसकी मेडिकल टीम हर हफ्ते 400 लोगों का फ्री इलाज करते हैं और दवाईयां भी देते हैं। कहां के एक स्थानीय नागरिक के मुताबिक, ‘हमें यहां पर किसी भी तरह की स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल पाती है। इसलिए जब हफ्ते में एक दिन मेडिकल कैंप लगता है तो लोगों की भीड़ लग जाती है।’

मरजयो हसबायाजिले के एमपी कहते हैं, ‘मैं और भी पीसकीपर्स से मिलता हूं, पर भारतीय पीसकीपर्स बिल्कुल अलग हैं। आप आस-पास जाकर देख सकते हैं कि कैसे स्थानीय महिलाएं, युवा और बच्चे उनसे घुले-मिले हैं। वे उनका स्वागत करते हैं, उनसे हाथ मिलाते हैं। युवाओं के साथ बातचीत करते हैं और अपने विचार साझा करतो हैं। वे यहां के लोगों को प्रोटेक्ट करते हैं। वे हमारे भविष्य के बारे में सोचते हैं और इसलिए हमें उनपर विश्वास है।’

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संयुक्त राष्ट्रसंघ के इतिहास में पहली बार भारतीय बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर के नेतृत्व में कजाकिस्तान की आर्मी को भारतीय जवानों के साथ तैनात किया गया है। दरअसल, कजाकिस्तान के सैनिकों की संख्या कम होने की वजह से संयुक्त राष्ट्रसंघ में उन्हें अलग बटालियन के तौर पर तैनात नहीं किया जा सकता था। इसलिए भारतीय बटालियन ने उन्हें अपने बटालियन के पार्ट के तौर पर तैनात होने के लिए प्रस्ताव रखा। यह ऑफर कजाकिस्तान की सरकार के पास भेजा गया और उन्होंने यह स्वीकार कर लिया और आज यह बटालियन बहुत ही अच्छा काम कर रही है।

संयुक्त राष्ट्रसंघ के मिलिट्री एटवाइजर लेफ्टिनेंट जनरल कार्लोस हम्बर्टो लोटे बताते हैं, ‘इंडियन बटालियन ने अपनी युनिट के कुछ पोजिशन्स कजाकिस्तान की आर्मी के लिए खाली कर दिए। यह शांति स्थापना में भारतीय बटालियन की निष्ठा को दिखाता है। एक ऐसा देश जो दूसरों के लिए काम करने और उनकी मदद करने के लिए हमेशा आगे रहता है।’

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बता दें कि भारत 1950 से ही विश्व शांति स्थापना के लिए काम कर रहा है। पहली बार कोरिया में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ की ओर से भारतीय जवान गए थे। तब से अब तक संयुक्त राष्ट्रसंघ 71 अभियानों में भारत ने भाग लिया है और 2 लाख 40 हजार से भी अधिक जवानों ने इसमें अपना योगदान दिया है, जो अब तक किसी भी देश से अधिक है।

वर्तमान में भारत संयुक्त राष्ट्रसंघ के 13 विश्व शांति मिशन में से 8 में भाग ले रहे है। इनके तहत भारतीय सेना (Indian Army) जवान लेबनान, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो, साउथ सुडान, गोलन हाइट्स, इजराइल, सिरिया, मिडिल इस्ट, एबिआय, वेस्टर्न सहारा और साइप्रस में तैनात हैं।साल 2000 से नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर यूएन पीसकीपिंग में विदेशी सैनिकों को ट्रेनिंग दी जा रही है। साल 2000 से अब तक इस सेंटर में 8000 से अधिक भारतीय और 1500 से अधिक विदेशी सैनिकों ने ट्रेनिंग ली है। जहां इन जवानों को मिशन के लिए हर जरूरी प्रशिक्षण दिया जाता है।

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संयुक्त राष्ट्रसंघ के शांति मिशन पर होना इतना भी आसान नहीं है। इसमें जवान अपना खून-पसीना लगाकर लोगों की सेवा करते हैं। अब तक 168 से भी अधिक भारतीय जवान इन अभियानों के दौरान अपने प्राणों की बलि दे चुके हैं। कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया ऐसे इकलौते जवान हैं जिन्हें संयुक्त राष्ट्रसंघ शांति मिशन के दौरान सर्वोच्च बलिदान देने के लिए भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र प्रदान किया गया है। उन्होंने 1961 में कॉन्गों में विद्रोहियों से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।

2007 में भारत विश्व का पहला ऐसा देश बना जिसने संयुक्त राष्ट्रसंघ शांति मिशन के लिए महिला जवानों की तैनाती लाइबेरिया में की। साल 2007 से 2016 तक महिला जवानों की तैनाती से गृह-युद्ध से जूझ रहे लाइबेरिया में शांति स्थापित करने में काफी मदद मिली। इसी तरह साउथ सुडान में भी भारतीय बटालियन के जवानों ने शांति स्थापित करने में काफी मदद की। आजादी के 5 साल बाद साउथ सुडान में भयंकर गृह-युद्ध शुरू हो गया। वहां आज भी संयुक्त राष्ट्रसंघ शांति मिशन के तहत जवान तैनात हैं। वहां कई जवानों की जानें जा चुकी हैं।

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इन जवानों ने किसी युद्ध में नहीं बल्कि वहां के आम लोगों की विद्रोहियों से रक्षा करने में अपनी जान कुर्बान कर दी। वहां जवानों को अति पिछड़े इलाकों में काम करना पड़ता है, जहां किसी भी तरह की कोई कनेक्टिविटि नहीं है। इन इलाकों में रास्ते हैं ही नहीं। जवान या तो हेलीकॉप्टर से वहां पहुंचते हैं या फिर नदी के रास्ते से।

और ऐसे हालात में मोर्चा संभालते हैं भारतीय सेना (Indian Army) के इंजिनियर्स। वे वहां के सड़क निर्माण कार्य प्रेजेक्ट्स में सहयोग करते हैं। और इसके लिए उन्हें सउथ सुडान के सबसे खतरनाक इलाकों नें हफ्तों या महीनों तक कैंप करना पड़ता है। वहां के ज्यादातर इलाके जंगली हैं। जहां जवानों को जंगली जानवरों का खतरा तो रहता ही है, वहां के स्थानीय विद्रोहियों का भी खतरा रहता है।

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यहां जवान हर रोज अपनी जान को जोखिम में डाल कर अपना कर्तव्य निभाते हैं। 2017 में साउथ सुडान में पैदा हुए हालात के बाद वहां के कोडोक शहर से 18-20 हजार लोग भाग गए। इलाके में स्थिति को सामान्य करने के लिए जावनों की तैनाती की गई। यहां भारतीय जवानों ने यहां 90 दिनों के अंदर एक अस्थाई बेस कैंप लगाया।

यहां 120 जवानों की एक कंपनी तैनात है। ये जवान यहां 50 डिग्री तापमान में भी टेंट में रहते हैं। यहां हर दिन 3-4 सांप निकलते है, उनसे भी जवानों को सामना करना पड़ता है। चुकी यहां रोड कनेक्टिविटि नहीं है, इसलिए 2 हफ्तों में एक बार हेलीकॉप्टर से राशन आता है। कभी-कभी कुछ कारणों से राशन आने में भी लेट हो जाता है। ऐसी स्थिति से भी जवानों का सामना होता है।

दुनिया भर के कई देशों के ऐसे इलाकों में लोगों का जीवन स्तर सुधारने के लिए और कनेक्टिविटि के लिए जवानों ने काफी काम किया है। मेडिकल सहायता, रोजगार से लेकर वहां के लोगों और महिलाओं का सुरक्षा के लिए भारतीय जवानों ने सराहनीय काम किया है।