
1962 की जंग में 13वीं कुमाऊंनी बटालियन की ‘सी’ कंपनी ने रेजांग ला दर्रे में चीनी सैनिकों का सामना किया था, जिसका नेतृत्व मेजर शैतान सिंह कर रहे थे।
आज के दिन यानी 18 नवंबर को लद्दाख को बचाने वाले रणबांकुड़े की शहादत हुई थी। महज 37 साल की उम्र में शहीद होने वाले भारत मां के उस वीर सपूत का नाम है मेजर शैतान सिंह (Major Shaitan Singh)। 1962 की जंग में 13वीं कुमायूं बटालियन की ‘सी’ कंपनी ने रेजांग ला दर्रे में चीनी सैनिकों का सामना किया था, जिसका नेतृत्व मेजर शैतान सिंह कर रहे थे।
साल 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के दौरान चुशूल सेक्टर में रेजांग ला चौकी पर तैनात भारतीय जवानों ने अपनी बहादुरी की जो मिसाल पेश की थी, वह सदियों याद रखी जाएगी। 13वीं कुमायूं बटालियन की ‘सी’ कम्पनी चुशूल सेक्टर में तैनात थी। बटालियन में 120 जवान थे, जवानों ने अपने सीमित हथियार और गोला-बारूद के साथ चीनी सेना का जमकर मुकाबला किया और सभी सैनिक युद्ध लड़ते हुए शहीद हो गए। इस युद्ध में भाग ले रहे सभी सैनिकों के शव तीन माह बाद बर्फ पिघलने पर मिले थे। 18 नवंबर, 1962 की सुबह साढ़े चार बजे चीनी सैनिकों ने हमला बोल दिया। मेजर शैतान सिंह (Major Shaitan Singh) के नेतृत्व वाली 13 कुमाऊं की एक टुकड़ी चुशुल घाटी की हिफाजत पर तैनात थी।
बर्फीले तूफान के बीच भारतीय जवानों के पास सर्दी से बचाव के पूरे कपड़े भी नहीं थे। सत्रह हजार फीट की ऊंचाई वाले इस दर्रे में इतनी अधिक सर्दी पड़ रही थी कि तेज बर्फीली हवा में वहां खड़े रह पाना मुश्किल था। भारतीय टुकड़ी के पास 300-400 राउंड गोलियां और 1000 हथगोले ही थे। ऊपर से बीच में एक चोटी दीवार की तरह खड़ी थी जिसकी वजह से हमारे सैनिकों की मदद के लिए भारतीय सेना की ओर से तोप और गोले भी नहीं भेजे जा सकते थे। वहीं, चीनी सैनिकों की संख्या दो हजार थी। अब 120 जवानों को अपने दम पर चीन की विशाल फौज और हथियारों का सामना करना था। मेजर शैतान सिंह (Major Shaitan Singh) ने वायरलेस पर सीनियर अधिकारियों से बात कर मदद मांगी।
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सीनियर अफसरों ने कहा कि अभी मदद नहीं पहुंच सकती। आप चौकी छोड़कर पीछे हट जाएं। अपने साथियों की जान बचाएं। मेजर इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने अपनी टुकड़ी के साथ एक मीटिंग की। सिचुएशन के बारे में जानकारी दी और कहा कि अगर कोई पीछे हटना चाहता हो तो हट सकता है लेकिन हम लड़ेंगे। ठंड की वजह से जवानों के शरीर जवाब दे रहे थे। चीन से लड़ पाना नामुमकिन था। लेकिन बटालियन ने अपने मेजर के फैसले पर भरोसा दिखाया। दूसरी तरफ से तोपों और मोर्टारों का हमला शुरू हो गया। मेजर शैतान सिंह (Major Shaitan Singh) ने एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हुए अपने जवानों का हौसला बनाए रखा। शीघ्र मदद मिलने की उम्मीद नहीं थी।
ऐसे में हमारे जांबाजों ने एक-एक गोली का बहुत सावधानी के साथ उपयोग किया। सुबह से रात हो गई, लेकिन भारतीय जवान डटे रहे। इस दौरान कई गोलियां लगने के कारण मेजर शैतान सिंह (Major Shaitan Singh) बुरी तरह से घायल हो गए। मेजर खून से सने हुए थे। दो सैनिक घायल मेजर शैतान सिंह (Major Shaitan Singh) को एक बड़ी बर्फीली चट्टान के पीछे ले कर गए। मेडिकल हेल्प वहां मौजूद नहीं थी। इसके लिए बर्फीली पहाड़ियों से नीचे उतरना पड़ता था। मेजर से सैनिकों ने मेडिकल हेल्प लेने की बात की लेकिन उन्होंने मना कर दिया। उन्होंने सैनिकों को आदेश दिया कि एक मशीन गन लेकर आओ। मशीन गन आ गई। उन्होंने कहा कि गन के ट्रिगर को रस्सी से मेरे एक पैर से बांध दो।
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उनके दोनों हाथ लथपथ थे। उन्होंने रस्सी की मदद से अपने एक पैर से फायरिंग करनी शुरू कर दी। उन्होंने दोनों जवानों से कहा कि सीनियर अफसरों से फिर से संपर्क करो। दोनों सैनिक वहां से चले गए। मेजर वहां लड़ते रहे। इस टुकड़ी के बारे में भारतीय सेना को कुछ पता ही नहीं लग पाया। तीन माह बाद क्षेत्र में बर्फ पिघलने पर एक चरवाहे ने दर्रे में बड़ी संख्या में सैनिकों के शव पड़े होने की सूचना सेना को दी। इस पर सेना की एक अन्य टुकड़ी वहां पहुंची। वहां का दृश्य देख वे सभी हतप्रभ रह गए। उस जगह उनका शव मशीन-गन के साथ मिला। पैरों में अब भी रस्सी बंधी हुई थी। बर्फ की वजह से उनका शरीर जम गया था।
उनके साथ उनकी टुकड़ी के 114 जवानों के शव भी मिले। सभी भारतीय जवान युद्ध की पोजिशन लिए हुए थे। किसी जवान का हाथ बन्दूक के ट्रिगर पर था तो किसी के हाथ में हथगोला। वहीं सामने करीब एक हजार चीनी सैनिकों के शव भी बर्फ में दबे मिले। चीनी सैनिकों के शवों की संख्या के आधार पर अनुमान लगाया गया कि यहां पर कितना भीषण युद्ध हुआ होगा। संख्या बल में कम होने के बावजूद भारतीय जवानों ने अपनी जान की बाजी लगा शत्रु सेना को आगे नहीं बढ़ने दिया। बाकी लोगों को चीन ने बंदी बना लिया था। हालांकि भारत युद्ध हार गया था। लेकिन चीन की सेना का सबसे ज्यादा नुकसान रेजांग ला पर ही हुआ था।
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चीन के करीब 1300 सैनिक इस जगह मारे गए थे। यह एकमात्र जगह थी जहां भारतीय सेना ने चीनी सेना को घुसने नहीं दिया था। मेजर शैतान सिंह (Major Shaitan Singh) के पार्थिव शरीर को जोधपुर स्थित उनके पैतृक गांव ले जाया गया, जहां पूरे सैनिक सम्मान के साथ उन्हें अंतिम विदाई दी गई। मेजर शैतान सिंह भाटी का जन्म 1 दिसंबर, 1924 को जोधपुर, राजस्थान में हुआ था। उनका संबंध सैन्य परिवार से था। उनके पिता आर्मी अफसर लेफ्टिनेंट कर्नल हेम सिंह भाटी थे। उनको 1 अगस्त, 1949 को कुमाऊं रेजिमेंट में कमीशन मिला था। 1962 के भारत-चीन युद्ध में उनको अपना पराक्रम दिखाने का मौका मिला और उन्होंने साबित कर दिया कि भारतीय सैनिक फौलाद हैं।
मेजर शैतान सिंह (Major Shaitan Singh) की इस बहादुरी के लिए सरकार ने उन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता सम्मान ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया। वहीं इसी बटालियन के आठ अन्य जवानों को वीर चक्र, चार को सेना मेडल और एक को मैंशन इन डिस्पेच का सम्मान प्रदान किया गया था। इसके अलावा 13 कुमायूं के कमांडिंग अफसर (सीओ) को एवीएसएम से नवाजा था। भारतीय सैन्य इतिहास में कभी भी किसी एक बटालियन को एक साथ बहादुरी के इतने पदक नहीं मिले। बाद में सरकार ने इस कंपनी का नाम ‘रेजांग ला कंपनी’ कर दिया।
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