Bhagat Singh

देश 23 मार्च का दिन शहीद दिवस (Shaheed Diwas) के रूप में मनाता है। इसी दिन भगत सिंह (Bhagat Singh) अपने साथियों सुखदेव (Sukhdev) और राजगुरु (Rajguru) के साथ हंसते हुए शहीद हो गए थे।

फांसी से पहले भगत सिंह (Bhagat Singh) करीब 1 साल 350 दिन जेल में रहे थे। लेकिन फांसी से पहले उनके चेहरे पर कोई उदासी नहीं थी। वह खुश थे।

फांसी से ठीक पहले लिखे अपने आखिरी पत्र में भगत सिंह ने लिखा, ‘मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं कि कैद होकर या पाबंद होकर न रहूं।'

शहीद-ए-आजम भगत सिंह (Bhagat Singh) का पुश्तैनी मकान स्मारक बनाने के लिए बेचा जाएगा। पाकिस्तान (Pakistan) का फैसलाबाद जो पहले लायलपुर था, वहां भगत सिंह का पुश्तैनी गांव बंगा है।

महात्मा गांधी तो हिंसा के सख्त खिलाफ थे। कहा जाता है कि अगर महात्मा गांधी चाहते तो भगत सिंह (Bhagat Singh), राजगुरू (Rajguru) और सुखदेव (Sukhdev) को फांसी से बचाया जा सकता था।

शहीद -ए-आज़म भगत सिंह (Bhagat Singh) की जिंदगी से जुड़ी ऐसी कहानियां जो प्रेरणा का स्रोत हैं। भगत सिंह के जीवन के तमाम पहलुओं की कहानी संजीव श्रीवास्तव की ज़ुबानी।

खुद को देशभक्ति के जज्बे से भरने के लिए उनका नाम ही काफी है। अंग्रेजों के बढ़ते हुए अत्याचार से सबसे पहले भगत सिंह ने लौहार में सांडर्स की गोली मार कर हत्या कर दी।

शहीद -ए-आज़म भगत सिंह की जिंदगी से जुड़ी ऐसी कहानियां जो प्रेरणा का स्रोत हैं। भगत सिंह के जीवन के तमाम पहलुओं की कहानी संजीव श्रीवास्तव की ज़ुबानी।

फांसी से ठीक पहले लिखे अपने आखिरी पत्र में भगत सिंह ने लिखा, ‘मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं कि कैद होकर या पाबंद होकर न रहूं।'

भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल, 1929 को सेंट्रल असेम्बली के अंदर बम फेंका। बम फेंकने के अपराध में सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 7 अक्तूबर, 1930 को फांसी की सजा सुना दी गई।

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