जयंती विशेष: भगत सिंह की फांसी को रोकने के लिए क्या महात्मा गांधी ने कोशिश की थी? यहां जानें पूरा सच

महात्मा गांधी तो हिंसा के सख्त खिलाफ थे। कहा जाता है कि अगर महात्मा गांधी चाहते तो भगत सिंह (Bhagat Singh), राजगुरू (Rajguru) और सुखदेव (Sukhdev) को फांसी से बचाया जा सकता था।

Bhagat Singh

भगत सिंह (Bhagat Singh) को फांसी मिलने के बाद गांधी जी को भारी विरोध का सामना भी करना पड़ा। भगत सिंह की फांसी के तीन दिन बाद, कांग्रेस के कराची अधिवेशन हुआ।

आज शहीद भगत सिंह (Bhagat Singh) की जयंती है। 28 सितंबर, 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में (अब पाकिस्तान में) उनका जन्म हुआ था। महज 23 साल की उम्र में उन्होंने देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया। भगत सिंह ने अपने पीछे क्रांति और निडरता की वह विचारधारा छोड़ गए जो आज तक युवाओं की प्रेरणा है।

कहा जाता है कि सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह (Bhagat Singh) एक ही विचारधारा के थे, जबकि गांधी (Mahatma Gandhi) और नेहरू उनसे थोड़ा अलग मत रखते थे। महात्मा गांधी तो हिंसा के सख्त खिलाफ थे। कहा जाता है कि अगर महात्मा गांधी चाहते तो भगत सिंह,  राजगुरू और सुखदेव को फांसी से बचाया जा सकता था।

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दरअसल, पूर्ण स्वराज को लेकर गांधी और भगत सिंह (Bhagat Singh) के रास्ते बिलकुल अलग थे। गांधी अहिंसा को सबसे बड़ा हथियार मानते थे और उनका कहना था कि “आंख के बदले में आंख पूरे विश्व को अंधा बना देगी”, जबकि भगत सिंह का साफ मानना था कि बहरों को जगाने के लिए धमाके की जरूरत होती है।

एक का रास्ता केवल राजनीतिक सत्ता के हस्तांतरण पर केंद्रित था जबकि दूसरे की दृष्टि स्वतंत्र भारत को एक समाजवादी और एक समतावादी समाज में बदलने की थी। 1931 में जब भगत सिंह को फांसी दी गई थी तब तक उनका कद भारत के बाकी सभी नेताओं की तुलना में बड़ा हो गया था। पंजाब में तो लोग महात्मा गांधी से ज्यादा भगत सिंह को पसंद करते थे।

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यही वजह है कि भगत सिंह (Bhagat Singh) को फांसी मिलने के बाद गांधी जी को भारी विरोध का सामना भी करना पड़ा। भगत सिंह की फांसी के तीन दिन बाद, कांग्रेस के कराची अधिवेशन हुआ। उस वक्त देश भर में भगत सिंह की फांसी का विरोध नहीं करने के लिए गांधी के खिलाफ गुस्से का माहौल था।

जब गांधी अधिवेशन में शामिल होने के लिए पहुंचे, तो नाराज युवाओं द्वारा काले झंडे दिखाकर उनके खिलाफ नारेबाजी की गई। ”डाउन विद गांधी” लिखा हुआ प्लेकार्ड उन्हें दिखाया गया। यह वह वक्त था जब भगत सिंह युवाओं के प्रतीक बन गए थे।

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अब सवाल ये है कि क्या गांधी जी ने भगत सिंह (Bhagat Singh) को बचाने का प्रयास नहीं किया? दरअसल, गांधीजी ने भगत सिंह को बचाने की कोशिश की थी। गांधी और भगत सिंह का आजादी पाने को लेकर रास्ता भले ही अलग रहा हो और इसको लेकर दोनों के बीच मतभेद भी थे, लेकिन अंतिम अवस्था तक आते-आते गांधी को भगत सिंह के प्रति बहुत अधिक सहानुभूति हो चली थी।

जब भगत सिंह को तय समय से एक दिन पहले ही फांसी दिए जाने की खबर मिली तो गांधी काफी देर के लिए मौन में चले गए थे। महात्मा गांधी ने 23 मार्च, 1928 को एक निजी पत्र लिखा था और भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी पर रोक लगाने की अपील की थी। इस बात का जिक्र ‘My Life is My Message’ नाम की किताब में है।

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उन्होंने पत्र में वायसराय इरविन को लिखा था, ”शांति के हित में अंतिम अपील करना आवश्यक है। हालांकि आपने मुझे साफ-साफ बता दिया है कि भगत सिंह और अन्य दो लोगों की मौत की सजा में कोई भी रियायत की आशा न रखूं लेकिन डा सप्रू कल मुझे मिले और उन्होंने बताया कि आप कोई रास्ता निकालने पर विचार कर रहे हैं।”

गांधी जी ने पत्र में आगे लिखा, ” अगर फैसले पर थोड़ी भी विचार की गुंजाइश है तो आपसे प्रार्थना है कि सजा को वापस लिया जाए या विचार करने तक स्थगित कर दिया जाए। गांधी जी ने आगे लिखा, ”अगर मुझे आने की आवश्कता होगी तो आऊंगा। याद रखिए कि दया कभी निष्फल नहीं जाती।”

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गांधी जी द्वारा लिखे इस खत से साफ पता चलता है कि आखिरी समय तक उन्होंने भगत सिंह (Bhagat Singh) और उनके साथियों की सजा कम करवाने और उन्हें माफी दिलाने का प्रयास किया।

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भगत सिंह (Bhagat Singh) को श्रद्धांजलि देते हुए गांधी ने 29 मार्च, 1931 को गुजराती नवजीवन में लिखा था- ”वीर भगत सिंह और उनके दो साथी फांसी पर चढ़ गए। उनकी देह को बचाने के बहुतेरे प्रयत्न किए गए, कुछ आशा भी बंधी, पर वह व्यर्थ हुई। भगत सिंह अहिंसा के पुजारी नहीं थे, लेकिन वे हिंसा को भी धर्म नहीं मानते थे। इन वीरों ने मौत के भय को जीता था। इनकी वीरता के लिए इन्हें हजारों नमन।”

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