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छत्तीसगढ़: नक्सली दलदल में फंसी दो महिलाओं ने छोड़ा हिंसा का रास्ता, 7 साल बाद परिजनों से लिपटकर खूब रोईं

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित नारायणपुर जिले में लोन वर्राटू अभियान का व्यापक असर देखने को मिल रहा है। नक्सली दलदल में फंसे आदिवासी समुदाय के लोग अब हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में लौटना चाह रहे हैं। इसी का परिणाम है कि राज्य में रोज कोई ना कोई नक्सली आतंक की राह छोड़ सामान्य जीवन-यापन के लिए सरेंडर कर रहा है। इसी कड़ी में सात सालों से नक्सली दलदल में फंसी दो महिला नक्सलियों (Women Naxali) ने भी पुलिस के सामने सरेंडर किया है।  

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नारायणपुर जिला के पुलिस अधिक्षख उदय के अनुसार, दोनों महिलाओं के नाम बत्ती उसेण्डी और नमनी मंडावी है। ये दोनों महिला नक्सली पिछले सात सालों से आदरे जनमिलिशिया संगठन के सदस्य के तौर पर जुड़ी हुई थीं और इनकी तैनाती अबूझमाड़ इलाके के जंगली ग्रामीण क्षेत्र में थी।

गौरतलब है कि अलग-अलग काम के लिए नक्सलियों ने अपने अलग-अलग संगठन बना रखे हैं। आदरे जनमिलिशिया ऐसा ही एक संगठन है जिसका कार्य संगठन में कार्य करने वाले नक्सलियों के लिए भोजन की व्यवस्था करना है। साथ ही गांव में किसी भी अनजान शख्स की मौजूदगी की सूचना फौरन संगठन तक पहुंचाना है। इसके अलावा संगठन के मुखिया के आदेश पर किसी व्यक्ति विशेष की निगरानी करना,  नक्सली साहित्य, पोस्टर और पंपलेट को लोगों में वितरित करना भी है।

जनमिलिशिया के सदस्यों का काम ग्रामीणों को नक्सली मीटिंग में उपस्थित होने की सूचना देना, बाजारों से दैनिक उपयोग की सामग्री खरीद कर नक्सलियों तक पहुंचाना और दूसरे लोगों में नक्सली विचारधारा का प्रचार करना है।

हालांकि अब इन दोनों महिला नक्सलियों (Women Naxali) ने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया है। एसपी उदय ने सरेंडर करने वाले इन दोनों महिलाओं को प्रोत्साहन राशि के तौर पर 10-10 हजार रुपए का चेक प्रदान किया। दोनों महिला नक्सलियों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए देश और राष्ट्र का सम्मान करने की शपथ भी दिलाई गई।

दरअसल, छत्तीसगढ़ के सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित बस्तर जिले में पुलिस नक्सलियों के सरेंडर के लिए अभियान चला रही है। बस्तर संभाग के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सलवाद से निपटने और आदिवासियों के दिलों को जीतने के लिए पुलिस गोंडी बोली का सहारा ले रही है। नारायणपुर में आदिवासी, गोंडी सहित हल्बी भाषा में बातचीत करते हैं। इसे देखते हुए पुलिस भी अब स्थानीय गोंडी भाषा पर जोर दे रही है। इन दोनों महिला नक्सलियों (Women Naxali) को भी पुलिस ने गोंडी बोली में शपथ दिलाकर उन्हें मुख्यधारा में जोड़ने की शुरुआत की है।

जनमिलिशिया संगठन में काम कर रही ये दोनों महिला नक्सली पिछले सात सालों से अपने माता-पिता से नहीं मिली थीं। सरेंडर करने के बाद पुलिस ने इन दोनों को उनके परिजनों से जब मिलवाया तो दोनों महिलायें भावुक होकर रोने लगीं।