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Bijapur Sukma Encounter: मुठभेड़ में 2 भाई ले रहे थे नक्सलियों से लोहा, एक हो गया शहीद

हेमंत ने बताया कि मुठभेड़ (Bijapur Sukma Encounter) के दौरान नक्सली अंडर बैरल ग्रेनेड लॉन्चर का उपयोग कर रहे थे और आगे बढ़ना बेहद मुश्किल हो रहा था।

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बस्तर इलाके के बीजापुर-सुकमा सीमा पर नक्सली मुठभेड़ (Bijapur Sukma Encounter) हुई थी। इस मुठभेड़ में हमारे 22 जवान शहीद हो गए थे। इस मुठभेड़ में डीआरजी (DRG) के दो भाइयों ने हिस्सा लिया था, जिनमें एक शहीद हो गया। बीजापुर जिले के चेरलापल गांव के रहने वाले हेमंत ने साल 2012 में डीआरजी ज्वॉइन किया था जबकि बड़ा भाई किशोर डेढ़ साल पहले डीआरजी में शामिल हुआ था। नक्सलियों की इस मुठभेड़ में हेमंत ने अपने बड़े भाई किशोर को खो दिया।

दरअसल, मुठभेड़ के दौरान हेमंत आंद्रिक और उसके बड़े भाई किशोर अपनी-अपनी टीम के साथ नक्सलियों से लोहा ले रहे थे। इसी दौरान मुलाकात हुई। दोनों डीआरजी के जवान पिछले डेढ़ घंटों से नक्सलियों के घेरे से बाहर निकलने के लिए लगातार फायरिंग कर रहे थे।

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हेमंत के साथ चार सदस्यों का दल किसी तरह निचले इलाके से बाहर निकलने में सफल रहा था और एक पहाड़ी पर अराम कर रहा था, जब उन्होंने दूसरी ओर से किशोर को आते हुए देखा। किशोर के साथ भी 4 लोगों की टीम थी। हालांकि, करीब 350 जवान तब भी नक्सलियों के घेरे में फंसे हुए थे। कुछ पल के लिए ही दोनों भाइयों की मुलाकात हुई।

हेमंत की टीम नक्सलियों के घेरे को तोड़ने में कामयाब रही थी। हेमंत के मुताबिक, इस दौरान किशोर की टीम पहाड़ी के ऊपर थी और लगातार फायरिंग करते हुए उन्हें कवर कर रही थी। करीब 10 मिनट बाद बड़ा भाई किशोर अपनी टीम के साथ नीचे आया। हेमंत से उसकी मुलाकात हुई। हेमंत ने बड़े भाई को आगे बढ़ने और करीब 300 मीटर आगे मिलने को कहा। लेकिन किशोर को क्या पता था कि बड़े भाई से यह उसकी आखिरी मुलाकात है।

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दोनों भाइयों ने आगे एक झोपड़ी में मिलने का तय किया था, जहां वे अक्सर पानी पीने के लिए जाते थे। हेमंत ने गोलीबारी के बीच आगे बढ़ने की कोशिश की और इसी प्रयास में वह अपनी टीम से बिछड़ गया।

हेमंत ने बताया कि मुठभेड़ (Bijapur Sukma Encounter) के दौरान नक्सली अंडर बैरल ग्रेनेड लॉन्चर का उपयोग कर रहे थे और आगे बढ़ना बेहद मुश्किल हो रहा था। उसने भाई को आगे बढ़ने को कहा और किसी तरह घेरे से बाहर निकलने में कामयाब रहा, लेकिन इस भागमभाग में वह उस झोपड़ी से आगे निकल गया, जहां दोनों भाइयों ने मिलने का फैसला किया था।

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थोड़ी देर बाद किशोर झोपड़ी में पहुंचा और वहां मौजूद जवानों से अपने भाई के बारे में पूछा। हेमंत को वहां नहीं देख उसने सोच लिया कि उसे जरूर गोली लगी है। भाई को बचाने उसने दोबारा उसी घेरे में जाने का फैसला किया। जवानों ने किशोर को रोकने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माना।

करीब 3 बजे हेमंत तर्रेम कैंप पहुंचा। वहां हेलीकॉप्टर से घायल हुए जवानों को लाया जा रहा था। हेमंत अपने भाई का वहां इंतजार करता रहा। उसने दूसरे जवानों से किशोर के बारे में पूछा, लेकिन कुछ पता नहीं चल पाया। जवानों ने कहा कि हमले में सभी टीमें एक-दूसरे से बिछड़ गई हैं, हो सकता है कि किशोर किसी दूसरी टीम के साथ हो।

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हेमंत 9 बजे रात तक किशोर का इंतजार करता रहा। तब कुछ जवानों ने उसे बताया कि किशोर झोपड़ी में उसे ढूंढने आया था। किशोर को तब भी बड़े भाई के जिंदा बचने की पूरी उम्मीद थी। 4 अप्रैल की सुबह जब किशोर का शव बरामद हुआ, तब उसकी सारी उम्मीदें टूट गईं।

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शहीद किशोर की शादी हो चुकी थी और उसकी पत्नी पहले बच्चे की मां बनने वाली है। इस घटना के बाद से हेमंत अब तक सो नहीं पाया है। उसका दिल अब भी नहीं मान रहा कि किशोर अब इस दुनिया में नहीं रहा।