छत्तीसगढ़ के घोर नक्सल प्रभावित बस्तर समेत पश्चिमी उड़ीसा के कालाहांडी जैसे आदिवासी अंचलों में भी कोरोना वायरस (Coronavirus) ने पैर पसार लिया है। देश में कोरोना संक्रमण के शुरुआती दिनों में इन इलाकों में स्थिति काफी नियंत्रण में थी लेकिन बाहर से आने वाले मजदूरों की आवाजाही ने इन रिमोट इलाके के स्वास्थ्य तंत्र को झकझोर कर रख दिया है।
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अभी तक बस्तर अंचल में नारायणपुर जिले में 98‚ बीजापुर में 18‚ दंतेवाड़ा में 51 और सुकमा में छह मरीज मिल चुके हैं। बस्तर जिले में 64 और आदिवासियों के प्रमुख अंचल सरगुजा जिले में 93 मरीज सामने आए हैं। बस्तर अंचल में संक्रमण की वजह बाहरी मजदूर हैं। खास करके तेलंगाना से आने वाले प्रवासी मजदूरों ने संक्रमण का फैलाव किया है। इस नक्सली इलाके में संक्रमण फैलने से नक्सली मूवमेंट में भी कमी आई है। बहुत से नक्सली (Naxali)जंगल छोड़कर इलाज कराने के लिए मुख्यधारा में लौट रहे हैं।
छत्तीसगढ़ से सटे कालाहांडी अंचल के नुआपड़ा जिले में मई में कोरोना (Coronavirus) ने कहर बरपाना शुरू किया। जिले में कोरोना संक्रमण का पहला मामला 23 मई को सामने आया था। बाद में महीने भर में कोरोना संक्रमितों की संख्या 81 तक पहुंच गई। खास बात रही कि 81 में से 78 मरीज ठीक हो गए। दूसरे राज्यों में ईटा भट्टी में काम करने वाले मजदूरों का परिवार जब लौटा तो क्वॉरेंटीन सेंटरों में ही संक्रमण के मामले आने शुरू हो गए थे। नुआपड़ा जिले में पांच नए कोरोना मरीज सामने आए हैं जिनमें एक बीएसएफ जवान भी है। इलाके में सामुदायिक संक्रमण जैसी स्थितियां अभी पेचीदा नहीं हुई है। तकरीबन सभी मरीजों की ट्रैवलिंग हिस्ट्री रही है। जिला प्रशासन गांव को सैनिटाइज कर रहा है। गांव में क्वॉरेंटीन सेंटर बनाने के अलावा कंटेनमेंट जोन भी बनाए जा रहे हैं। मरीजों में स्थानीय लोगों की संख्या बहुत कम है।
समूचे छत्तीसगढ़ में कोरोना (Coronavirus) मरीज साढ़े 4200 पार हो चुके हैं। आंकड़ों के मुताबिक एक साथ मिले 184 नए पॉजिटिव के साथ इनकी कुल संख्या बढकर 4265 हो गई है। इसमें 19 की मौत हो चुकी है। 1044 एक्टिव केस हैं। राजधानी रायपुर में भी सर्वाधिक मरीज मिल रहे हैं। कुल 824 गुना मरीज रायपुर में मिले हैं लेकिन खासियत यह है छत्तीसगढ़ में रिकवरी रेट 75 से 80 फीसदी के बीच है। गांव में शहरों के मुकाबले स्थितियां इसलिए भी बेहतर है क्योंकि वहां जगह की कमी नहीं है। इन दिनों चूंकि बरसात का मौसम है इसलिए उत्सव जैसी गतिविधियों से समूह संक्रमण की गुंजाइश भी काफी कम है। मगर खेतों में काम चल रहा है लिहाजा गांव-गांव में मुनादी होने का असर यह हुआ है कि ग्रामीण खुद डिस्टेंस मेंटेन करने लगे हैं। अमूमन हर चेहरे पर गमछा ढका हुआ नजर आता है जो संकेत है कि ग्रामीण कोरोना (Coronavirus) के लेकर भी जागरूक हैं।