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इस महिला नक्सली की कहानी है एक मिसाल, जला रही शिक्षा की मशाल

सुनीता (काल्पनिक नाम) जिस गांव में पैदा हुई, वहां लोकतंत्र की बजाए क्रांति के गीत ही गूंजते थे। ऐसे माहौल में दसवीं कक्षा में पढ़ने के दौरान ही उसने बंदूक थाम ली थी। खेलकूद में तेज थी। दसवीं तक पढ़ी थी। इसलिए नक्सली (Naxali) संगठन में उसे अक्षर ज्ञान से वंचित नक्सलियों को पढ़ाने की जिम्मेदारी भी मिली। इतना ही नहीं, वह नक्सलियों के उस स्कूल में भी पढ़ाती थी, जहां बच्चों को अक्षर ज्ञान के साथ क्रांति का भी पाठ पढ़ाया जाता था।

सुनीता आज भी पढ़ा रही है, लेकिन उसका मकसद अब बदल गया है।

सुनीता आज भी पढ़ा रही है, लेकिन उसका मकसद अब बदल गया है। जिन हाथों में गरजती बंदूकों से कभी वह मौत देती थी, उन्हीं हाथों में चॉक थामकर आज वह बच्चों को पढ़ाकर उनकी जिंदगी संवार रही है। वही लोग जो कभी उससे घृणा करते थे, आज सम्मान देते हैं। पिता की मौत के बाद नक्सली (Naxali) संगठन से उसका मोहभंग हो गया। वह मुख्यधारा में लौट आई और अपनी जिंदगी को एक नेक मकसद दिया। पिता की मौत के बाद जब उसने हिंसा छोड़ने का निर्णय लिया तो आगे का रास्ता तय करने में उसकी इच्छाशक्ति और नेक इरादे ने मदद की।

रेडियो पर समाचार के जरिए उसे सरकार की पुनर्वास नीति के बारे में पता चला। इसके बाद वह जंगल से भाग आई। सितंबर, 2018 में इस महिला नक्सली (Naxali) ने कोंडागांव एसपी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। 25 जून, 2019 को उसे गोपनीय सैनिक बना दिया गया, जिसमें एवज में उसे कुछ मानदेय मिलता है। आज वह शिक्षक और सैनिक की अपनी दोहरी भूमिका से बहुत खुश है। आत्मसमर्पण के बाद नक्सलियों के निशाने पर आ जाने से डर नहीं लगता? पूछने पर वह कहती है- मरना तो सभी को एक दिन है ही। वहां रहकर मरने और यहां रहकर मरने में बहुत फर्क है।

इस आत्मसमर्पित महिला नक्सली (Naxali) को आज इस बात का बड़ा सुकून मिलता है कि उसकी जिंदगी को एक मकसद मिल गया है। सुनीता आज करीब 50 बच्चों को पढ़ा रही है, जिसमें पुलिस लाइन के अलावा आसपास की बस्तियों के बच्चे भी आते हैं। कोंडागांव के पुलिस अधीक्षक सुजीत कुमार का कहना है कि काम के प्रति उसके लगन और समर्पण को देखते हुए उसे बच्चों को पढ़ाने का जिम्मा दिया गया है। आगे रायपुर की तर्ज पर कोंडागांव में भी पुलिस विभाग द्वारा विद्यालय खोला जाएगा। वहां उसे बतौर शिक्षक नियुक्त करेंगे।

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